योजना-----

आजकल किसी को फोन करने पर खांसी सहीत सचेत करने की बात सामने
आती हैं। कोरोना वायरस। जी, हां अच्छी पहल हैंऔर विज्ञापन भी अच्छा हैं।
पहली बार जब खाँसी की अवाज सुनी तो चौंकी थी। लगा जिन्हें फोन मिलाया
है उन्हें कहीं खाँसी तो नहीं हुई। पर, थोड़ी ही देर में खुद पर हंसी आई थी।
खैर ,इसके कुछ दिन बाद किस कार्यवश अपने जान पहचान के यहां फोन
मिलाया था। इस बार विज्ञापन के बाद हलो सुनने को तैयार थी। पर ये क्या
खाँसी का विज्ञापन खत्म होते ही दुसरा विज्ञापन शुरु हो गया।
ओह....आह.....आऊच.....किसी भी दर्द और पीड़ा से राहत पाने के लिये
अचूक मलहम। मलहम योजना से जुड़े और राहत पाये।
थोड़ी देर में दिमांक में कई बातें घुम सी गई। मैरे कमर-घुटनों में जो दर्द रह
ता है। इतने में उधर से हंसी की अवाज आई।
क्यों ,मैडम जी मलहम योजना से जुड़ना है?
अच्छा ,आप है...मैं तो....हैरान.....
वो फिर हंसी...
.भाभी जी, ये मलहम का क्या चक्कर हैं। मैने पूछा....
न्यूज देखा करिये और अखबार पढ़ा करें फिर अपना दिमांक लगाये तो कुछ
-कुछ समझ आ जायेगा।
पहेली ना बुझाये....बताईये न...
वो बिच में ही बोल पड़ी.....मैडम जी, दिवारों के कान होते है पर आजकल फोन के भी कान निकल आये है। फोन पर इस योजना के बारे में समझाने लगी तो मुझे इस योजना से न जुड़ना पड़े।समझी। ......खैर, बताये फोन क्यों मिलाया था।
मैं जरा चूप रही फिर बोली-आपके मजाक के चक्कर में मैं तो भूल ही गई
फोन क्यें मिलाया था। ...अभी रखती हूँ बाद में ध्यान आया तो फोन मिलाती
हूँ। ...चलो अभी रखती हूँ। ओके....बाय......