क्या है....? गुल्लक वाले का नाम.....? (द्धितीय वर्ष 2020)---

बात हम सभी जानते हैं कि कांग्रेस के झंड़े तले भारत की स्वाधीनता की लड़ाई हिन्दु व मुस्लिम के मेल-जोल से लड़ी गई थी। 1857 को प्रथम् स्वतंत्रता संग्राम हिन्दुओं और मुस्लमानों ने मिल कर लड़ा। आजादी के लिए
दोनों सम्प्रदाय के लोगों ने अपना खुन बहाया और देश को अंग्रेजों से आजादी दिलवाई।
हिन्दुओं और मुस्लमानों के मेल-जोल को अंग्रेजों से सहा नहीं गया। इसलिए वे भारत छोड़ते वक्त अपनी कूटनीतिक चाल से दोनों सम्प्रदाय के बीच फूट डाल गये। जाते-जाते कूटनीति की अमिट छाप छोड़ गये......
इतिहास बताता हैं भारत में साम्प्रदायिकता का विष-वृक्ष अंग्रेजों ने बोया। अंग्रेजों के काल में भी छोटी-मोटी साम्प्रदायिक घटनाऐं होती थी परन्तु उनके चले जाने के बाद, आजाद भारत में अंग्रेजों द्धारा बोये गये विष-वृक्ष अधिक फैला। कारण भारत छोड़ते वक्त वे हमारे साथ गंदा खेल, खेल गये। सेम्प्रदायिक का...
आज भी हमारे देश में कितने सालों पूराना विष-वृक्ष फलफूल रहा हैं। देश में ऐसे कई लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिए समयानुसार इसमें जाति-धर्म रुपी पानी डाल. इसको सिंचते हैं। समाज व देश में इस विष-वृक्ष को फैलाते रहते
हैं ताकि लोग इसमें उलझे रहे और वे अपना स्वार्थ पूरा कर सके। ऐसा विषैला वातावरण तैयार करते है कि सामान्य घटना दंगे का रुप ले लेती हैं। और इन साम्प्रदायिक दंगों में गरीब, कमजोर,लाचार, निरपराध बलि हो जाते
 हैं। इन दिनों ऐसा ही होते दिखाई दे रहा है।
पिछले कुछ सालों से अंग्रेजों का बोया हुआ विष-वृक्ष को देखने से लगेगा यह काफी फल-फूल रहा हैं।
हमने देखा जिंदा लोगों को जलाया गया, पीट-पीट कर हत्या की गई, घर फूंके गये, जरुरतमंदों को सरकार की योजनाओं से बंचित किया गया।
 धर्म-जाति के नाम पर अपशब्दों का प्रयोग किया जा रहा है, इलजाम लगाये जा रहे हैं, जलिल किये जा रहे हैं, डराया धमकाया जा रहा हैं और न जाने क्या-क्या जुल्म किये जा रहे है विष-वृक्ष के एक-एक डाल पर बैठकर.....
दुनियां में इन दिनों कोरोना का महामारी संकट आ पड़ा हैं, जिस कारण अन्य देशों के साथ-साथ हमारे देश में पिछले 50 दिनों से लॉकडाउन चल रहा हैं। सब बंद है। रोजगार के सारे रास्ते फिलहाल बंद हैं। इस वजह से सरकार के साथ-साथ समर्थवान लोग, जरुरतमंद लोगों को क्षमतानुसार सहायता कर 
रहे हैं। अपने हिसाब से इसमें योगदान कर रहे हैं। ताकि कोरोना से मुकाबला हो सके...
ऐसे में एक पत्रिका द्धारा पता चला, किसी पंचायत क्षेत्र का 5 बर्षीय एक  मुस्लिम बालक ने अपने गुल्लक को मुख्यमंत्री राहत कोष में दान दिया हैं। अपने पिता के माध्य से....। जन्म से अब तक की यानी 5वषों में उसके 
गुल्लक में जमा हुई धनराशी दे दी....।
बालक के पिता एक डॉक्टर है। उसने अपने पिता से कोरोना के बारे में जितना भी सुना और समझा अपनी इस छोटी सी उम्र में , उससे गुल्लक देने का फैसला लिया और अपने पिता के हाथों लाकर दे दिया। पिता अपने
बेटे के निर्णय से खुश थे। परिवार वाले भी खुश व गर्वित थे।
पिता ने वहां के विडियों ऑफिसर को बेटे का गुल्लक ले जाकर दिया। विडियों ऑफिसर को जब बच्चे के उम्र के बारे में पता चला तो वे चकित हुए...और सोचने लगे बच्चा-बच्चा आज कोरोना के इस जंग के खिलाफ
कितना जागरुक हैं.....
परन्तु मैनें जब इस 5 बर्षीय मुस्लिम बच्चे के गुल्लक दान के बारे में पढ़ा तो सोच में पढ गई....
बालक ने अपने पिता से कोरोना के बारे में सुना, पर उसे विष-वृक्ष के बारे में पता नहीं....
असल में जहां फूड डेलिवरी वॉय का नाम पूछकर खाना कैंसल करवा दिया जाता हैं.....जहां सबजी वाले का नाम पूछ कर उससे सबजी खरीदने को कहा जाता है....वही अगर मदद लेने से पहले मदद करने वाले 
का नाम पूछा जाय तब.... गुल्लक वाले का नाम पूछे तब.....?