जिंदगी जीने नहीं दिया........

शादी के बाद स्वीटी भाभी मेरी पक्की सहेली बन गई थीं। वो कानपुर से थीं और मैं भोपाल से...। मेरी शादी उसी महिने हुईं थी जिस महिने उनकी..।
फर्क सिर्फ आठ-दस दिन का था। एकही ब्लोक के बिल्डिंग में दोनों की शादी हुई थी। हम करीब हम उम्र के थे। 
मेरी शादी उनके बाद हुई थी। इसलिए वो मेरी शादी अटेंड करने आई थी। नई-नवेली, स्वीट सी स्वीटी भाभी से मेरा परिचय मेरी सासू मां ने करवाया था। और तब से आज तक वो मेरी नज़रों में बसी है। 
         अब हमारी शादी के पांच साल हो गए। हम एक-एक बच्चे की मां भी बन गये हैं पर तब से अब तक हमारी दोस्ती बरकरार हैं। हम जहां भी जाते हैं अधिकांश साथ ही जाते हैं। सब्जियां लेने, शोपींग करने, बच्चों के लिए कुछ लाने, इवनिंग- वाक करने या मंदिर कहीं भी जाएं साथ जाते हैं।
सहेली और बहनों की तरह एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। हम रोज मिलते हैं। अगर किसी कारणवश न मिल पाए तब फोन पर मिलना हो जाता है। वो मुझे बहुत अच्छी लगती है। 
हम दोनों के परिवार वाले कभी-कभार हमारी दोस्ती का भयंकर मजाक उड़ाते हैं। और मजे लेते हैं। पर उन्हें हमारी दोस्ती पसंद हैं.....।
इसी बीच एक दिन हम मंदिर गये। जाते में पैदल गये और सोचा लौटते में सब्जी खरीदते हुए रिक्शा कर लेंगे।
घर से थोड़ी दूर मेन रोड़ की ओर मंदिर था सो हम वहां आधे घंटे में पहुंच गए। 
दर्शन कर आरती देखा फिर मंदिर की दो सिढियों के नीचे थोड़ी देर के लिए बैठ गये। और इधर-उधर की बात करने लगे। जीवन में ग्रहस्थ जीवन जो चल रहा था। 
कोरोना के चलते मंदिर में गिने-चुने लोग ही नजर आ रहे थे। 
बातों के बीच एक महिला की ओर ध्यान गया। 20-25साल की उम्र होगी....। वह हमारे दो सिढी ऊपर एक तरफ उदास व हतास बैठी नजर आई। चेहरे और हावभाव से अच्छे परिवार की लग रही थी पर कपड़े तथा बाल उसके व्यक्तित्व से मैच नहीं कर रहे थे। बहुत परेशान और अस्थीर लग रही थी शायद चुपके-चुपके रो भी रही थी। उन्हें देख लग रहा था जैसे भीतर ही भीतर छटपटा रही हो।
उन्हें देखते हुए अचानक पंडित जी पर नजर गई। जो उस महिला को ध्यान से देख रहे थे। अचानक वे महिला के पिछे रखी दान पेटी के ऊपर से दक्षिणा की थाल उठा अंदर ले गए। मैंने स्वीटी भाभी से कहा- देखा, पंडित जी को.... कुछ समझी...?
सिर हिलाकर हां कहती हुई बोली- भगवान के घर भी बुराई पिछा नहीं छोड़ती। दरअसल बुराई जब आती है तब चारों ओर से आती हैं।.... लगता है इनके साथ भी ऐसा ही कुछ है। 
दयाभाव से भाभी बोली, चलिए उनसे उनकी परेशानी पूछ्ते है। शायद हम उनके कोई काम आ  सके.....।
दोनों उनके पास गए और उनकी बगल में थोड़ा हटकर बैठ गये। वह हमें देख सिमट सी गई। जैसे घोंघा टच से अपने कवच (खोल)के भीतर चला जाता है।
मैंने पूछा- आप कुछ परेशान सी लग रही है....क्या बात है....हम आपकी कोई मदद कर सकते हैं....?
वो अपना सिर हिलाकर नहीं बोली।
पर स्वीटी भाभी ने उन्हें यूं नहीं छोड़ा और बोली- हम भी आपकी तरह महिला ही हैं।आप हमें अपनी परेशानी बाता सकती हैं शायद हम कुछ काम आये। कब कौन किसके काम आए कोई नहीं कह सकता। आज भगवान् ने हमें आपके पास भेजा है हो सकता है कल को आप हमारे कोई काम आए।
हम मंदिर में मिले हैं, शायद भगवान चाहते है हम आपका साथ दे....।
     इतने में वह फफक-फफक कर रो दी। नहीं.... नहीं..... भगवान की बात न करें। उन्होंने ये जिंदगी दी है पर जीने नहीं दे रहे।आप लोग भगवान की बात न करें। 
दिन के बाद रात आती है और रात के बाद दिन। लेकिन मेरी जिंदगी में रात ही रात है दिन आता ही नहीं।
रोती हुई भगवान की ओर हाथ उठाती हुई बोली, ये बहुत कठोर है, निष्ठुर है। इन्हें हम पर जरा भी दया नहीं आती। और ये आप लोगों को मेरी सहायता के लिए भेजेंगे.....कभी नहीं.....। ये हमें जीने नहीं दे रहे।
उनकी बातें दर्दों से भरी थी।
स्नेह से स्वीटी भाभी उनसे पूछी- आपके घर पर कौन-कौन हैं....?
अपने दोनों हाथों को छाती पर लगाये हुई बोली- मेरे पति हैं। सिर्फ पति....।जरा रुक कर फिर से, रुक-रुक कर बोलने लगी- पांच महीने का एक बेटा था। तीन महीने पहले वह भी हमें छोड़ चला गया। भगवान ने उसे भी छीन लिया। 
   उनकी बातें सुन हम दोनों की आंखें छलक आई।
मेरे मुंह से एकाएक निकला- कैसे..... क्यों.....। मैंने कहा ना, वो जिंदगी तो दे देते है पर किसी-किस को जीने नहीं देते। उन्होंने बचपन में मुझसे मेरे मां-बाप को छीन लिया। चाचा जी के पली बड़ी। उनके दो बच्चों के साथ अच्छे से रखा। थोड़ा बहुत पढ़ाया-लिखाया भी पर न जाने क्यों अपनापन नहीं पाया। समाज, रिश्तेदार, पड़ोसी सब मिले......पर सब मुझ पर करुणा करते थे। आत्मा में यह बात चुभती थी। चाचा जी ने पढ़ाया-लिखाया न होता तो ऐसा फिल न होता सिर्फ कष्ट ही होता। कष्ट के साथ और बातें जुड़ जाये तब जिंदगी बोझ बन जाती है। भगवान ने मेरी जिंदगी में न जाने और क्या-क्या लिखा हैं....।
उनकी बातों से लग रहा था वो दिल का बोझ कम कर रही थी। जिसे इतने दिनों से दबा रखा था।
आपकी शादी कब हुई....? कुछ रुक कर मैंने पूछा।
एक गहरी सांस लें बोली- करीब दो साल पहले।
इस बार बिना रोए लेकिन दर्द भरे स्वर में बोली- दूर के रिश्ते में कोई, चाचा जी के पास मेरा रिश्ता लाये थे। उन्होंने ने ही बताया था कि लड़का कैब ड्राइवर है। उसके भी बचपन में माता-पिता गुज़र गए। कोई नहीं है उसका, वह अकेला है। इतना कमा लेता है कि भूखे रहने की नौबत नहीं आएगी। जोड़ी ठीक रहेगी।
चाचा जी ने मेरे से बात की तथा लड़के की खोज-खबर ली और मेरी शादी करवा दी। हम मध्यम वर्गीय परिवार से थे अतः मैं शादी के बाद अपने पति के साथ किराए के मकान में खुश थी।
जब मैं गर्भवती हुई तो मेरे पति ने कमाई बढ़ाने के लिए एक छोटा बीजनेस का और सोचा। उनका कहना था बच्चे की जिम्मेदारी निभाने के लिए और कमाई ज़रुरी है। इसलिए ड्राईविंग के साथ-साथ एक छोटा बीजनेस भी करुंगा। आमदनी बढ़ेगी तो हम अपने बच्चे को वो सब दे सकेंगे जो हमें बचपन में नहीं मिला। 
थोड़ी रुक कर बोली- मैं अपने चाचा जी के वहां ठीक ही थी पर मेरे पति को बचपन से काफी संघर्ष करना पड़ा। 
अधिकतर देखा जाता है लड़कियों को छूट मिल जाती हैं लेकिन लड़कों के साथ लोग कठोर होते हैं। वैसा ही मेरे पति के बिते जीवन में हुआ।
आपके पति ने कौन सा बीजनेस शुरू किया....?उनको फिर से किसी गहराई में डूबते देख स्वीटी भाभी ने पूछा...।
उनका सवाल सुन, मानो गहराई से निकलते हुए वह बोलने लगी,किसी प्राइवेट संस्था से 30हजार लोन लिया और एक टोटो खरीदा। 
कोई अपनी टोटो गाड़ी बेच रहा था सो कम पैसों में खरीद लिया। उन्होंने सोचा खाली समय मैं चला लूंगा बाकी एक ड्राइवर रख लूंगा। और संस्था को हफ्ता-हफ्ता चुकाता रहूंगा। धीरे-धीरे कर्ज उतर जाएगा। 
उन्होंने मुझसे कहा था, तुम अपना और अपने आने वाले बच्चे का ध्यान रखना बाकी इधर का मैं संभाल लूंगा। 
इसके कुछ दिन बाद छोटे से किराए के मकान में हमारे बीच हमारा बेटा आया। हमारे खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हम बहुत खुश थे। वे अपने बच्चे को जिदंगी की वो सारी खुशी देना चाहते थे जो उन्हें दुर्भाग्य वंश नहीं मिला।
मेरे पति ने जैसा सोचा था सब कुछ वैसा ही होने लगा। कैब का काम, टोटो गाड़ी का काम, कर्ज चुकाना सब ठीक से चलने लगा। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद कोरोना ने दुनिया में दस्तक दिया।
बस, हमारी दुनिया थम सी गई। हम बर्वाद हो गए।
फिर रोने लगी वो.....सारे काम बंद हो गये। जो थोड़ा बहुत पैसा था किसी तरह बच्चे के साथ गुजारा चला रहे थे। पर अब तक....?
मकान का किराया, कर्ज का पैसा....।ओह, मैं बता नहीं सकती आप लोगों को......किस परिस्थिति से हम गुजर रहे थे। चारों ओर से पैसों का दबाव, खरी-खोटी सुनाना, बेइज्जती, कमाई बंद , पैसे खत्म ऊपर से दूध पीता बच्चे का साथ......। फूट-फूटकर रो रही थी। हमारा कलेजा भी भारी हो रहा था। पर हम लाचार उनकी सुने जा रहे थे।
अचानक हमारी आंखों में आंखें डालकर कहने लगी- हमारी परिस्थिति का अंदाजा लगा पा रही हैं....?जिस पर बितता है वहीं जाने।
जानती है, जो हमारे साथ जुड़े थे उन लोगों ने भी हमारी परिस्थिति को समझने की कोशिश नहीं की। 
दबाब पर दबाव, दबाव पर दबाव। चारों ओर से पैसों का दबाव। मेरे पति जानकार किसी का पैसा नहीं रोक रहें थे। ओह, कितना भयंकर समय..... समझने को शब्द नहीं है..... और इसी बीच.....इसी बीच हमारा मुन्ना हमें छोड़ चला गया।
फिर रोती हुई बोली, उसने भी हमें समझाने की कोशिश नहीं की.... ऐसा घाव दे गया जिसका कोई
इलाज नहीं......।मंदिर आई हूं भगवान से पूछने, जब जिंदगी दी है तो जीने क्यों नहीं दे रहे।
वह रोये जा रही थी और हम दोनों स्तब्द थे। हमसे कुछ कहते नहीं बन रहा था।
आप लोगों को लगता है आप लोग मेरी कोई मदद कर सकते हैं..? भगवान की ओर इशारा करते हुऐ, इनसे कह कर मेरा मुन्ना मुझे वापस दिला सकती हैं...? कहिए....हमारी दशा....सुधार.....
इतने में एक युवक वहां आया और कहने लगा-दया तुम मंदिर में बैठी हो। मैं तुम्हें कहां-कहां ढूंढ रहा हूं। फिर बगल वाली बुढ़ी मां ने बताया तुम मंदिर गई हो....। चलो... उठो...रात हो गई...घर चलो।
अपने पति के सहारे से उठी और चल दी। हम भी खड़े हो जरा पिछे की ओर हो गए। 
उस महिला ने चलते हुए हाथ जोड़कर हमें नमस्कार किया फिर बोली, ये मेरे पति है....। अच्छा चलती हूं।
एक सीढ़ी निचे उतर पिछे मुड़ी और हमसे बोली- हो सके तो हमारे लिए प्रार्थना करना ताकि इन परिस्थितियों से हमें छूटकारा मिले......। आप लोग मदद करना चाह रही थी न, बस इतनी मदद कर देना।
इतना बोल, आंसू पोंछतीं हुई अपने पति के साथ चल दी।
हम दोनों बुत बन सीढ़ियों में थोड़ी देर खड़े रहे। भाभी बोली चलिए घर चलते हैं। रिक्शा ले सीधे घर चलते हैं। 
सीढ़ियों से धीरे-धीरे उतरते हुई मैंने कहा- हमारे आस-पास कितने लोग दुःखी हैं और हम इनसे अंजान रहते हैं। भगवान भी न......।
मंदिर से निकल रिक्शा लेने कुछ कदम चले ही थे कि थोड़ी दूरी पर भीड़ और शोर सुनाई पड़ा। पास जाने पर पता चला कोई एक्शिडेन्ट हो गया है। किसी गाड़ी ने एक आदमी और औरत को टक्कर मारी थी। कह रहे हैं दोनों ही शायद खत्म हो गये। उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा हैं। ड्राईवर गाड़ी छोड़ भाग गया। 
यह सुन हमें धक्का सा लगा। आज ये क्या हो रहा हैं...? मेरा शरीर कांप रहा था। कहीं मैं जैसा सोच रही हूं......। मैं वहीं खड़ी रही गई पर स्वीटी भाभी भीड़ में अंदर चली गई। शायद उन्हें भी कुछ शक हुआ।
थोड़ी ही देर में वो मेरे पास आई और बोली- ये वही हैं, जिन्होंने हमसे प्रार्थना करने को कहा, परिस्थितियों से......। हमने अभी तक कोई प्रार्थना नहीं की परंतु भगवान ने ये क्या किया......?
पूरा परिवार ही खत्म हो गया.......! भाभी मेरा हाथ कसकर पकड़ती हुई बोली.....।
      और मैं, मैं अपने मन में सोचने लगी, इतनी कम उम्र में इतना कुछ झेल दुनिया से चली गई।
वास्तम में, भगवान के दिये जिंदगी ने इन्हें जीने नहीं दिया......।
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