देवी-देवताओं, राजा-महाराजाओं के विवाह के लिए स्वंयवर सभा रखा जाता था। कन्याओं (बधू पक्ष) की ओर से उपयुक्त वरों (लड़कों) को आमंत्रित किया जाता था। और उनके सामने एक शर्त रखी जाती थी। जो उस शर्त को पूरा करता था। कन्या उसके गले में वरमाला डालती थी। साधारणतया इस तरह विवाह हुआ करता था।
स्वंयवर सभा की इस पृष्ठ भूमि को हम जानते हैं।
श्री राम ने शर्तानुसार धनुष तोड़ा था और सीता माता से विवाह किया था। अर्जुन ने भी निचे रखें पानी पात्र को देख ऊपर घुमती हुई मछली के आंख में तीर मार कर स्वंयवर सभा में द्रौपती से विवाह किया था। इस तरह के और भी कुछ उदाहरण हमारे सामने है। इसके अलावा फिल्म व टीवी सीरियलों में भी आधुनिक तरीकों से स्वयंवर होते देखा हैं।
फिल्म व टीवी जैसे स्वंयवर को हम दिल से तो नहीं मानते पर मनोरंजन करते हैं और आनंद उठाते हैं।
कलयुग में स्वयंवर सभा को मान लेना हमारे लिए मुश्किल ही नहीं, विचित्र है।
लेकिन, कहते है "ओल्ड इज़ गोल्ड" । पुरानी चीजें घुम-फिर कर हमारे सामने दोबारा से आ रही हैं।
आपमें से बहुतों को शायद कलियुग के स्वयंवर सभा की यह बात न मालूम हो। जो साधारण व आम समाज की है। बहुत ही चौंकाने वाला है।
जानना चाहेंगे....?
सुनिए ...., हमारे देश के किसी एक राज्य के पंचायत क्षेत्र की घटना है। जहां पंचायत सदस्यों द्वारा एक स्वयंवर सभा का आयोजन किया गया।
पंचायत फैसला कराती हैं पर स्वयंवर सभा का आयोजन भी करती है... मालूम न होगा.....।
खैर, इस सभा (एक राज्य के) में गांव के तथा आसपास के सैकड़ों लोग उपस्थित हो गये। घंटों लोगों की भीड़ ने सभा को घेरे रखा। कोई इस सभा को तमाशे की नजर से देखने आया था, कोई इस मामले में गंभीर था, कोई काना-फूसी कर रहा था तो कोई कोतूहल वंश सभा में आया था।
आखिर स्वयंवर सभा में होगा क्या....?
अलग-अलग इंसान के अलग-अलग विचार, सोच, कौतूहल व मजाक का हिस्सा बन गया था- कलियुग का यह "स्वयंवर सभा"।
छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें इस घटना की कोई समझ नहीं वे भी उपस्थित थे। बच्चे अपनी ही धुन में यहां से वहां दौड़ रहे थे, शोर मचा रहे थे, खेल रहे थे, आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे। सभा के भीड़ को उत्सव मान लिया था.... और आनंद ले रहे थे......।
कुछ महिलाएं सोच रही थी तथा आपस में बातचीत कर रही थी- पौराणिक कथा अनुसार धनुष तोड़ा जाएगा या मछली का आंख भेदा जाएगा....?
क्षेत्र के लोग अपना-अपना काम काज, खाना-पीना व करीब-करीब सब कुछ बंद कर एकत्रित हुए थे। स्वयंवर सभा का आंखों देखा हाल जानने के लिए.....।
सब उस पल का इंतजार कर रहे थे....।
एक समय था जब लड़कों की दोस्ती लड़कों से और लड़कियों की दोस्ती (सहेली) लड़कियों से हुआ करती थी। पर अब जमाना बदल गया है। और हम सब जमाने के साथ चल पड़े हैं। जो काफी हद तक उचित है।
अब लड़कें-लड़कियों के बीच दोस्ती होती हैं। एक साथ पढ़ना-लिखना, उठना-बैठना, घुमना-फिरना आदि चलता रहता हैं। परिवार वाले मान भी लेते हैं।
बावजूद इसके "लेकिन" शब्द कहीं न कहीं हमें दस्तक देती है........। खासकर गांव-कसबों में.....।
दरअसल, हमारे देश के एक राज्य के पंचायत क्षेत्र की घटनानुसार- वहां की एक लड़की के चार, लड़के दोस्त थे।
एक दिन अचानक से लड़की, अपने चारों दोस्तों के साथ कहीं गायब हो गई। पांचों दोस्त (एक लड़की और चार लड़के) अपने-अपने घर से बिना बताए कहीं भाग गए।
काफी देर तक जब लड़की घर पर नजर नहीं आई तब घर वाले उसके लिए परेशान हो गए। वे लोग उसे चारों ओर ढूंढने लगे। लड़की के घरवालों के साथ ही साथ गांव और पड़ोस वाले भी उसे ढूंढने लगे। सबों का बूरा हाल था। कोई गुस्से में था, तो कोई चिंतित....।
बहुत तलाशने के बाद आखिर पांचों मिल गए।
उन्हें पकड़ कर गांव लाया गया। तरह-तरह के सवाल-जवाब के बीच पांचों फंस गए। डर और शर्म के मारे कोई कुछ बोल नहीं रहा था।
सिर्फ लड़की ही सहमी नहीं थी बल्कि चारों लड़के भी भयभीत थे। वे मन ही मन यही सोच रहे थे कि अब उनका क्या हर्ष होगा......?
लड़की के घर वाले आगबबूला हो रखें थे। वे चाह रहे थे कि इन चारों लड़कों को अच्छे से सबक सिखाना पड़ेगा। जो हमारी बेटी को बहला-फूसला कर घर से भगा ले गये। यही सोच,लड़की के घर वाले पुलिस के पास थाना जाने लगे। परंतु गांव के पंचायत सदस्यों ने उन्हें ऐसा करने से रोका।
उनका कहना था, हम ही इस पर विचार करेंगे।
इस लड़की की शादी इन्हीं चारों में से किसी एक के साथ करवा दी जाएगी।
ऐसा विचार कर लड़की से पूछा गया- तुम इनमें से किससे शादी करना चाहती हो.....?
बहुत सोचने के बाद भी वह तय नहीं कर पाईं कि वो क्या कहे.... ? किसके लिए कहे....?
कई बार पूछने पर भी जब लड़की से कोई जबाव नहीं मिला तब चारों लड़कों से पूछा गया- तुममें से कौन इस लड़की से शादी करना चाहेगा...?
काफी इंतजार के बाद भी देखा गया कि कोई भी लड़का चल कर सामने नहीं आया....। किसी भी एक लड़के ने नहीं कहा कि मैं इस लड़की से शादी करुंगा....।
पंचायत सदस्यों ने लड़की और चारों लड़कों को मौका दिया, पर किसी की भी तरफ़ से कोई संकेत नहीं आया।
इस पर पंचायत सदस्यों के दिमाग में स्वयंवर सभा की बात आई। और उन्होंने स्वयंवर सभा का आयोजन किया।
लेकिन यह सभा पौराणिक या प्राचीन काल वाला स्वयंवर नहीं था। यह तो कलियुग काल का स्वयंवर था। अतः इस सभा में जरा हटकर निर्णय लिया गया।
लाटरी सिस्टम......। जी, हां.....लाटरी!
चोकोर आकार के चार छोटे-छोटे कागज़ के टुकड़े लिए गए। उनमें चारों लड़कों के अलग-अलग नाम लिखे गए। कागज के टुकड़ों को मोड़ कर एक बॉक्स में डाला गया। फिर भीड़ में से एक बच्चे को बुलाकर, बॉक्स में से एक कागज का ढूकड़ा निकालने को कहा गया।
उसमें जिस लड़के का नाम निकलेगा उसी से लड़की की शादी करवा दी जाएगी।
तय फैसले के अनुसार स्वयंवर सभा पूरा हुआ।
तारीक और समय के अनुसार दोनों पक्षों को सामने रखकर उस लड़के से शादी तय किया गया जिसका नाम लाटरी में निकला। यानी कागज़ के टुकड़े में.....।
इस प्रकार कलियुग में "लाटरी" के माध्यम से स्वयंवर सभा सूस्मपूर्ण हुआ.......।
इस घटना से लड़के, लड़की और उसके परिजन सचेत हो सकतें हैं। ताकि कहीं और ऐसी दूसरी "स्वयंवर सभा" का आयोजन, न चाहने पर भी करवाना पड़े.......।
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