दर्द की छाव-------

मेरे पड़ौस में करीब, चालिस बर्सिय एक महिला रहती है। अकेली। उनकीशादी नहीं हुई, क्योंकि वह शुरु से ही शादी नहीं करना चाहती थी। कई को जमता नहीं।
पिता रेलवे में अच्छे पद पर थे।अपने मां-बाप की इकलौती व लाड़ली थी। पर दो-चार साल पहले दोनों ही बारी-बारी से चल बसे और वह अकेली हो गई।
एक दिन मुझे उनका फोन आया----भाभी, मैने नई टी.वी. खरीदी है। आप देखने आओगी? 
बड़े प्यार और अपनेपन से कहा। अतः दूसरे दिन मैं अपने घर का काम सलटाकर उसके गई।
हम अक्सर एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं या कभी फोन पर भी बातें कर लेते हैं।
उनके घर जाने पर ओर दिनों की तरह व्यवहार पाया साथ ही टी.वी. भी दिखाई।लेकिन, आज उन्होंने मुझे ऐसा कुछ कहा कि मैं दंग रह गई। मेरे जीवन की अमिट छाप छोड़ने वाली घटना याद आ गई।भाभी, इस उम्र में आकर, अगल-बगल वाले मुझे मेरी शादी की बात कर रहे है।मुझे समझ नहीं आ रहा कि वे मुझे दुःख पहुँचाना चाहते है या अपमान करना..... या मजाक उड़ाना चाहते हैं। मैं पढ़ी-लिखी हूँ । फैसला लेने का अधिकार और समझ मेरे में हैं। फिर क्यों------
ऐसा क्यों सोच रही हैं.....मैने उनसे कहा।
मेरा पेंनशन (अनमेरेड़), मकान ।ऊपर से मैं अकेली। यही वजह है।
 पर उम्र भी तो देखनाचाहिए। ....
.मेरे म्ममी-पापा ने मेरी शादी की कोशिश की थी पर कुछ रिशतें केनशल हो गये थे क्योंकि मुझे.... 
मुझे शादी का चक्कर खा़स पसन्द नहीं। परिस्थिती को समझना चाहिए। जबरदस्ती......शादी.....
मैं पैसों का क्या करुगी,मकान का ....
मैने, उन्हें समझाने की कोशिश की.....ये लोग आपके बारे में सोचते होगें.....
वो बीच में बोल पड़ी- युग परिवर्तन हुआ है पर इन्सान इतना कटाक्ष बोलताहै कि अगला घायल हो जाये उसकी आत्मा लहुलूहान हो जाये पर किसी को कोई मतलब ही नहीं। एक जीवन में इन्सन सब कुछ थोड़े ही पा लेता हैं....
वो अत्यन्त दुःखी और नाराज थी।
 शादी न होने का अफसोश करना जैसे ,उस पर जबरन थोपा जा रहा था।
किसी की शादी न होने पर, बच्चे न होने पर, विधवा होने पर, तलाक होने पर,
पति से अलग रहने पर, समाज के कुछ लोगों को इतनी वैचेनी होती है कि उ
नके शब्दों के वाणों से अच्छा-खासा इन्सान घायल हो जाय, मानसिक तौर
पर बीमार पड़ जाय।
संवेदना की भावना जैसे है ही नहीं।
पैसों के चलते मैं भी अपना इलाज ठीक से नहीं करवा पाई और  वे औलाद रह गई। मेरे पति अच्छे इंसान है बावजूद उसके मुझे भी समाज के कुछ संवेदनाहीन लोगों के हाथों लहुलूहान होना पड़ा था। लोगों की बातों ने मेरी अन्तर आत्मा को झींझोड़कर रख दिया था। एक समय आया जब, सब थक कर चुप हो गये ,पर मेरे जीवन में यह, अमिट छाप छोड़ गई।..........
अब उनके साथ.......उनके मन की वास्तविक परिस्थिती को मैं अनुभव कर
पा रही थी........।
(उपसंहार---मनुष्य के कई गुणों में संवेदना ,एक अत्यन्त प्रमुख और मूल्यवान गुण है। जो दूसरों के सुख-दुःख,मान-सम्मान के मूल्य को महत्व देता हैं। हर सभ्य मनुष्य में संवेदना की भावना के आवेग का होना जरुरी है तभी तो जीवों में सर्वश्रेष्ठ कहलाने का अधिकार होगा।)