ब्रेर्न डेथ------

अचानक फोन की घंटी बजी। सब कांप उठे। अस्पताल से जो फोन आया था।
दरसल, बेटी के हार्ट ट्रासप्लांट की बात थी।
सड़क दूर्घटना में ,ब्रेन डेथ घोषित किये युवक के घरवालों ने उसके अंग दान किये थे।
नये युग और समाज के साथ चलते हुये यह निर्णय लिया था ताकि दूनिया मेंलोगों के बीच उसे महसूस कर सके।जवान बेटा नौकरी के लिये दूसरे शहर में चला गया था। बात र्सिफ नौकरी की ही नहीं थी, उसके चाह की उपेक्षा भी की गई थी।
बचपन से ही मनुष्य परिवार, परिचितों, बंधु-बान्धवों, मित्रों आदि के बीच रहना चाहता है। वह अकेले न रह पाता है और न ही रहना चाहता है। फिर बड़े होकर किसी विशेष का साथ चाहता है। यह देन प्रकृति की ही हैं।  किसी विशेष के प्रति उसके हृदय में मोह जन्म लेता है। वह उसके साथ रहना चाहता है। अपना दुःख-दर्द उसके साथ बाटना चाहता है। उसका दुःख-दर्द समझना चाहता हैं।
ऐसी ही परीस्थिति दो युवक और युवती की थी।  अलग-अलग धर्म को मानने वाले युवक-युवती की। अनेकउतार-चढ़ाव के दौरान दोनों को अलग होना पड़ा। वे चुप-चाप अलग हो गये।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है अतः उसका समाज व परिवार के प्रति कुछ कर्तव्य बनता हैं।पर वही परिवार व समाज अपना अधिकार थोर देते हैं, किसी-किसी पर।
दोनों को अलग हुये करीब 5-6 साल हो गये थे। अपने शहर में लड़की गुम रहने लगी और दूसरे शहर में लड़का नौकरी करने लगा पर वह हमेशा उसे याद कर दुःखी व चिंतित रहता था।
दोनों ने किसी से कभी कोई शिकायत नहीं की पर भीतर ही भीतर दोनों खोकले होते चले गये।
युवती इन दिनों अक्सर बीमार रहने लगी। इलाज के दौरान, एक दिन डा. ने उसके दिल की बीमारी की बात कहीं।बचपन से किसी ने और न ही युवती ने अपनी किसी तरह की परेशानी पर गौर किया था।
एक समय आया जब डा. ने हार्ट ट्रान्सप्लांट की बात कही। परिवार वाले युवती के लिये चिंतित व दुःखी थे साथ ही डा. के समपर्क में थे। डा. का कहना था- लोगों को सचेत किया जा रहा है, उनकी सोच बदल रही हैं। हौसला
रखे।
और एक दिन युवती के परिवार वालों को अस्पताल से फोन गया।
दोनों शहर के ,दोनों अस्पताल ने संपर्क किया और कुछ मिनटों में, सड़क हादसे में शिकार हुये युवक का दिल लाया गया। डा. के नेतृत्व में डाक्टरों की एक टीम ने उस युवती के हार्ट ट्रासप्लांट का आपरेशन किया।
धीरे-धीरे युवती स्वस्थय होने लगी।
कृतज्ञता का भाव मनुष्य के अच्छेऔर सच्चे होने को दर्शाता हैं। उसके बोध
को प्रकट करता है। ऐसा ही बोध हर एक में होना चाहिए। अतः डा. से बात
कर युवती के परिवार वाले उस परिवार वाले से मिलने की इच्छा प्रकट किये,जीनके चलते उनकी बेटी को नया जीवन मिला ।
डा. साहब ने कहा- हां वो परिवार भी आपकी बेटी से मिलकर .....इतने में केविन का दरवाजा खुला। लिजिए, वे आ गये।
डा. ने दोनों परिवार वालों को मिलवाया और वहां से चले गये।
एक-दूसरे को देख, मानों उनके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। केविन में चारों ओर संनाटा। काटो तो खुन न निकले।
इतने में रोने की अवाज़ आई।सबों ने युवती की ओर देखा,उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और कह रहे थे-जिसे स्वीकार नहीं किया उसके दिल को स्वीकार किया।
इंसान अपनी सहुलियत से कुछ स्वीकार करता है तो कुछ अस्वीकार।
(दरसल, दिल ईश्वर का बनाया होता है और धर्म इंसान का.....)