अनजाने में------

करीब 30-35 साल पहले की बात होगी। उस वक्त मैं 11वीं-12वीं में पढ़ती थी और साथ ही बच्चों को घर जाकर टियूशन भी पढ़या करती थी।
एक परिवार याद आ रहा है। 2भाई- 3बहनें। दोनों भाईयों की शादी हो गई थी। मैं बड़े भाई के दोनों बच्चों को पढ़ाती थी। एक टिचर होने के नाते वे मुझे रोज चाय, बिस्कूट या कोई नमकीन जरुर देते थे। नियम से।
परिवार में आते-जाते से कभी कुछ बात हो जाया करती थी। जिससे मुझे लगता था परिवार, बड़ी बेटी की शादी को लेकर कुछ परेशान थे। क्योंकि उनके शरीर में सफेद निशान थे। बचपन में उन्हें माता (चेचक) निकली थी।
उनकी मम्मी कोई जड़ीबूटी घीस कर उनपर लगाई थी। जिससे चेचक की पपड़ियां उतरती गई और उस जगह सफेद निशान बनते चले गये। इलाज करवाया था पर ठीक नहीं हुये और वे निशान बने के बने रह गये।
खैर, एक दिन मैं पढ़ाने गई। शाम का वक्त था। मुझे बहुत तेज भूख लग रही थी। ठीक से कुछ खाया नहीं था और अगले दिन भी एक ही वक्त ठीक से खाना खाया था। वजह समय और परिस्थिती दोनों ही थी। इतनी जोरों की भूख लग रही थी कि होठ सूख रहे थे ,मुँह से पेट तक लकीर सी ऊपर-निचे हो रहा था, चक्कर सा आ रहा था, रह, रह कर पेट से अजीब अवाज निकल रहा था, जैसे शरीर में जान न हो, पेट के अलावा किसी ओर ध्यान ही नहीं जा रहा था। माथा जैसे सूनं पड़ा हो। फिर भी इन सबों से जुझ रही थी। उम्र जो कम थी। सोच रही थी जल्द पढ़ा, घर जा कर पहले खाना खाऊगी फिर दूसरा काम। इतने में बच्चों की बड़ी बुआ कमरे में आई और बोली- मिस, बच्चे खा रहे है अभी आ जायेगे तब तक आप भी थोड़ा खा लिजिये। कह कर वो मेरे
सामने टेबल पर खाने की थाली रखी। फिर बोली- आप खाईये मैं पानी ला रही हूँ। वह पानी लाने चली गई।
ये कैसी बात है अचानक मेरे लिये खाना। खाना साधारण ही था दाल, रोटी, सबजी, सलाद, अचार और मिठा। अतः त्यौहार या पूजा-पाठ की कोई बात नहीं लग रही थी। फिर खाना? ये मेरे लिये बड़े आश्चर्य की बात थी। इतने में वो पानी ले आई और बोली- आपने शुरु नहीं किया, खा लिजिए ।बच्चे स्कूल से आकर खा रहे है तो मैंने सोचा आप भी पढ़कर आ रही है इसलिए आपके लिये भी खाना ले आई। थोड़ा रुक कर फिर बोली- संकोच न करे, आप मेरी बहन जैसी है। खा लिजिए , बच्चे भी आते ही होगें।
न चाहते हुये भी मुझे खाना पड़ा। बात भूख की नहीं , रिश्ता (बहन का) बीच में आ गया था। उन दिनों ऐसी बातें मायने रखा करती थी।
उस खाने ने मेरी तेज भूख मिटाई थी ।मेरी आत्मा को तृप्ती मिली थी अतः अंजाने में ही न जाने कब ,कैसे ,कितनी बार मेरी अन्तरआत्मा से उनके लिये ढेरों दुआऐं निकल रही थी। न वो मेरे भूख के बारे में जानती थी और न ही मैंने अपने भूख के बारे में उन्हें कुछ कहा था। बात निःस्वार्थ थी। अनजाने में की थी। सिर्फ भूख और दूआ जो कि एक-दूसरे के परिपूरक थे। शब्दों के लिये कोई जगह नहीं थी। शब्द मायने नहीं रख रहे थे। धन्यवाद ,ऐसे जगह
तुछ था। बस मेरी आत्मा से दुआ निकल रही थी।.......... इस घटना के साल भर बाद उनकी शादी हुई। मैं भी शादी में शामिल हुई।
शादी के करीब तीन महिनें बाद वो मुझे मिली। जब मैं बच्चों को पढ़ा रही थी।
मिस, कैसी है? कमरे में आती हुई बोली......
लाल-पीली जरी वाली कोटो की साड़ी में नई दुल्हन जैसी सामने कुर्सी पर आ बैठी। मैं बच्चों को बिस्तर में बैठाकर पढ़ा रही थी।
मैंने मुस्कुराते हुए उनकी बुआ जी से कहा- आप बताईये आपकी मैरेज लाफ कैसी चल रही है?
इतने में एक लड़का लड़खड़ाता हुआ शान्ता....शान्ता...कहता हुआ कमरे में आया।
कैसे आधा पागल सा लग रहा था। उसके हाथ-पाव में जैसे वैलेसं ही न हो। अवाज में भी तुतलाहट थी।
बुआ बोली- आईये....आईये....
अन्दर आ मुझे देख बोले- मिस...मिस... पढ़ा रही है.....मुझे समझने में देर नहीं हुई कि इसी युवक से बुआ की शादी हुई है। शादी वाले दिन मुझे वैसा कुछ नहीं लगा था या ध्यान नहीं दिया हो।
अपने पति को पकड़ धीरे-धीरे ले जाती हुई बुआ जी बोली- अच्छा मिस, चलती हूँ। इन्हें दवा देने का वक्त हो गया हैं।
इतना कह वह चली गई। बाद में पता चला लड़के को नर्भ की प्रोबलम है।
दवाई खिलाकर शादी करवाई गई थी। दवा के सहारे ही शायद रहना पड़ेगा। लड़की ने अपनी शादी मान ली थी क्योंकि उनके शरीर में सफेद निशान जो थे। मुझे जैसे सांप सुघ गया था। अब ये पत्नी और नर्स की जिन्दगी
निभायेगी। इतनी पीड़ा.....
मुझे उस दिन की याद आई ।जब इन्होंने मेरी भूख मिटाकर मेरी आत्मा को तृप्त किया था और अनजाने में मेरी आत्मा से इनके लिये दुआ निकली थी।
कहते है, आत्मा में ईश्वर का वाश होता है फिर ये क्या? इनके साथ ऐसा कैसेहुआ?
उस दिन इन्हीं के लिये मेरी आत्मा तृप्त हुई थी और आज इन्हीं के लिये मेरी
आत्मा रो पड़ी। जिसकी सिसक इतने सालों बाद भी मेरे मन में प्रश्न लिये है....
क्या दुआऐं काम नहीं आती........?