भेदभाव----------

भारत एक विशाल देश है।इसमें अनेक धर्मों और संप्रदायों के लोग रहते हैं। साथ ही कई देश व नस्ल के लोग भी रहते हैं। ठीक वैसे ही भारत से भी दूसरें देशों में रहते हैं। शताब्दियों से ऐसे रहते आये हैं। जैसे जैसे युग
बदलता रहा, दुनियां ओर एक दूसरे के करीब होती चली गई। या यूं कह सकते है दुनियां हमारी मुट्ठी में आ गई हैं। फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि मुट्ठी भर में सभ्यता, संस्कृति, मानवता व मैत्रीपूर्ण परंपरा नहीं हैं। यह करीब-करीब पूरी दुनियांभर की बात हैं। लेकिन गर्व के साथ हम कह सकते है कि हमारा भारत इन परंपरायों को निभाता आया हैं या हर संभव निभाने की कोशिश करता आया हैं।
ध्यान से देखने व समझकर विचार करने पर यह सत्य सामने आता है कि कुछ सालों से हमारे देश में धर्म ही नहीं जाति और नस्लभेद की समस्या भी काफी आ पड़ी हैं।
हम पहले से जितने शिक्षित होते जा रहे है उतने ही अंधेरे की ओर चलते जा रहे हैं। शिक्षा इंसान को रोशनी की ओर ले जाता है तथा उसके व्यक्तित्व का विकाश करता है। पर कही न कहीं हम अपने स्वार्थ के लिये शिक्षा की ही अवमानना करते हैं। ऐसे में गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता हैं।
कोरोना वायरस के इस संकट में जहां चारों ओर लॉकडाउन के चलते लोग परेशान हैं। लोग कम समय के लिए घर से निकल कर जरुरत के समान ले रहे है वहीं हैदरावाद का एक नज़ारा सामने आया है।
शायद नस्लभेद....
हैदरावाद के एक सुपरमार्केट में वहां के एक सुरक्षा गार्ड और दुकान प्रबंधक ने, दो मणिपुरी छात्रों को मार्केट में प्रवेश करने नहीं दिया। दोनों छात्र ,प्रवेश करने नहीं देने का कारण पूछते रहे पर उन्हें प्रवेश नहींकरने दिया गया।
सोचने वाली बात है, अगर ऐसी कठीन परिस्थिती में ऐसा ही हमारे भारतीय छात्रों के साथ किया जाये तो........
हालांकि, उन्हें हिरासत में ले लिया गया है, पर उनके चलते हैदरावाद की छवि खराब हुई।
किसी को रोकना-टोकना. नफरत करना, परेशान करना क्यों.......? क्यों हम मानवता के खिलाफ जाये.......? क्यों हमें एक छोटी सी बात समझ नहीं आती........?
हम डिजीटल की ओर बढ़ रहे है और अपनी सोच को पिछे की ओर दलदल में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं...........।