एक अदालत-------

इस संसार में युगों से, युग परिवर्तन होता आ रहा हैं। और इसी परिवर्तन के क्रम में मानव का स्वभाव व नैतिक चरित्र बदलता रहा हैं। परंतु परिवर्तन के बीच कहीं-कहीं मानवीय बोध अपना असतित्व बचाए रखा है। जिसमें
मानविक्ता और संवेदना हैं। इस कलयुग में आज भी कुछ मनुष्य में ये गुण लुप्त नहीं हुये। परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहेगी पर कही न कही,किसी न किसी, प्रकृति के र्स्वश्रेष्ठ प्राणी मानव में मानविक्ता बची रहेगी। खत्म नहीं
होगी।दूसरे के दुःख-दर्द, मान-सम्मान व मजबूरी को समझना और उसके प्रति सहयोग का हाथ बढ़ाना मानव के मन से अलग नहीं होगा। एक मनुष्य ही दुसरे मनुष्य के प्रति संवेदनशील हो सकता है अगर वह निष्ठुर प्रकृति का न हो...... सहृदय व्यक्ति से ही सहानुभूति और संवेदना की अपेक्षा की जा की जा सकती हैं।
पटना में नालंदा जिले के 16 वर्षीय युवक को ऐसे ही एक सहृदय व्यक्ति मिले। मजिस्ट्रेट के रुप में........
गरीब कहना गलत होगा। दरिद्र परिवार का एक युवक, नसीब का मारा  लॉकडाउन के कारण कई दिनों से अपने परिवार के साथ भूखा था। परिवार में छोटा भाई और मानसिक रुप से बिमार (विक्षिप्त) मां के साथ भूख सह रहा था।
जहा, देश के हर कोने में इस संकट की घड़ी में दान दिये जा रहे हैं, भोजन व राशन सामग्री दिये जा रहे है, अफसोस वहीं यह युवक अपने परिवार के साथ कई दिनों से भूखा हैं।
इन्हें प्रशासन, सरकार या किसी संस्था से किसी प्रकार की कोई मदद नहीं मिली।
जब उससे भूख सहा न गया अपने व परिवार का तो, इस असहाय युवक ने चोरी करने की कोशिश की।
पर हाय रे, किस्मत.......वह पकड़ा गया।
उसने एक महिला का पर्स चुराने की कोशिश की । वह पर्स लेकर भाग गया।
पर पुलिस ने सी सी टी वी फुटेज से उसे पहचान लिया और हिरासत में लेकर कोर्ट में पेश किया।
जब वह अपने परिवार के साथ कई दिनों से भूखा था तब किसी की नजर उसपर नहीं पड़ी। परन्तु अब जब वह परिवार के पेट भरने के लिए (माना गलत ही सही) चोरी की तो पुलिस व प्रशासन की नजर पड़ी ।
क्षेत्रिय प्रशासन ऐसे परिवार को ढूढ़ कर उन तक मदद पहुँचाते तो शायद उसे सी सी टी वी फूटेज में कैद होने की नौबत न आती।
इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं............पता नहीं.........
खैर, शायद ईश्वर को उस पर दया आ गई। और इसीलिये कोर्ट में उसे एक सहृदय व्यक्ति के तौर पर मजिस्ट्रेट साहब मिले। जिन्होंने मानवता दिखाते हुए उसकी परिस्थिति को समझा और उसे माफ कर दिया।
ऐसे ही सहृदय व्यक्ति सावित करते है, मानवता आज भी कही न कही जिंदाहैं।अभी भी सहानुभूति व संवेदना कुछ लोगों में विद्दमान हैं। ऐसे सहृदय व्यक्तियों के आगे अनायास ही सर झूक जाता हैं। कुछ कहने को कोई भी
शब्द छोटा पड़ जाता हैं।
मजिस्ट्रेट साहब ने न केवल उस 16 वर्षीय नाबालिग को माफ किया बल्कि प्रशासन को उसके घर खाना पहुँचाने तथा सरकारी योजना के तहत राशन पहुँचाने व उसके रहने का प्रबंध किये जाने का निर्देश भी दिया।
साथ ही उन्होंने अपनी डियुटी निभाते हुये ये भी कहा- कुछ माह बाद उस नाबालिग के व्यवहार की रिर्पोट दी जाये..........
मजिस्ट्रेट साहब ने नाबालिग की परिस्थिति को कानूनी तराजू में तौलकर अदालत व मानवता दोनों का ख्याल रखा और फैसला लिया........
आभार सर............