भूमिका---------

अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फसाकर सिर के निचे तकिया बनाये होम के एक कमरे में लेटी-लेटी ऊपर छत की ओर एकटक देखें जा रही थी। वह किसी गहरे सोच के सागर में डूबी थी।
बच्चों के प्रति, मां की भूमिका के बारे में शायद सोच रही थी।
ये थी, डॉक्टर सुधा.......। भूमिका की बेटी.......
आज इन्हें डॉक्टर की डीग्री मिली है। कैंसर मरिजों का इलाज कर वह अपने समाजिक कर्त्तव्य का पालन करेगी।
दुनियां में इंसान के कुछ कर्त्तव्य होते है। वह अपने दायरे में रह कर अपनी भूमिका निभाने की कोशिश करते हैं। समस्त भूमिकाओं में मां की भूमिका अहम होती हैं अपने बच्चे के प्रति। जन्म के कुछ समय बाद मां उसे आहार देती है और तब से उसके भविष्य सवारने तक अपनी भूमिका निभाती हैं। उसकी हर एक सुविधा का ख्याल
रखती हैं। बचपन में सिर्फ उसके लालन-पालन का ही नहीं अपितु उसकेशैशव,बाल अवस्था, यौवन और भविष्य के आगे तक का भी ध्यान रखती हैं। अपने बच्चें के लिए वह हर कठिनाईयों से लड़ने को तैयार रहती हैं। अपनी
 हर इच्छाओं व खुशियों का त्यग कर देती हैं। अपनी जिंदगी बच्चें पर
 न्यौछावर करती है। बच्चा जब जन्म लेता है तो वह अवोध, अज्ञान होता है।पर अपने मां के स्पर्श और सुगंध को भलीभाती समझता हैं। शायद ईश्वर उसे इस ज्ञान से परिपूर्ण कर भेजता हैं। तभी तो जन्म के बाद ठीक से आँख भी नहीं खोल पाता परन्तु अपनी मां को बंद आँखों में भी पहचान लेता हैं। बच्चा अपने को अपनी मां के पास सुरक्षित महसूस करता हैं। तभी वह मां से लिपटे और चिपके रहता हैं। मां से दूर नहीं होना चाहता। दोनों की दूनियां एक दूसरे पे बसती हैं।
परंतु हर बच्चा या मां भाग्यशाली नहीं होते.......
ईश्वर के खेल भी निराले हैं। वह भी अपनी भूमिका निभाता हैं।
भूमिका की शादी 2साल पहले खाते-पीते परिवार में हुई थी। उनके पति अपने मां-बाप के इकलौते थे।
शादी के कई साल बाद इनका जन्म हुआ था अतः जवानी में कदम रखते रखते मां-बाप बुढ़े हो गये थे।और  भूमिका से शादी के पहले ही दोनों का देहांत हो चूका था।
भूमिका परिवार में अपने पति के साथ रहती थी।दिन बीत रहे थे। सब कुछ ठीक था।पर अचानक इन दिनों उसके पति को थकान सी महसूस होने लगती थी। कमजोरी महसूस करने लगे थे। अपनी पत्नी भूमिका को तबियत की बता एक दिन वो डॉक्टर के गये। टेस्ट बगैरे कुछ दिन चला फिर डॉक्टर ने उन्हें कैंसर बताया।
ये कैंसर शरीर के भीतरी अंगों को नुकसान पहुँचाता हैं। पति ने कभी ध्यान नहीं दिया था या समझ ही नहीं पाये और बहुत देरी हो चुकी थी । डॉक्टर ने समय दे दिया था।
भूमिका को अपनी बीमारी के बारे में कुछ भी नहीं बताए क्योंकि वह उस वक्त चार माह की गर्भवती थी।
दिन बितते गये।एक जिंदगी धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी और दूसरी जिंदगी धीरे-धीरे शुरु। भूमिका उस जिंदगी से अंजान थी जो समाप्ती की ओर बढ़ रहा था।
वह दिन आया जब उसे बच्चे को जन्म देने के लिए अस्पताल जाना था पर उससे पहले उसके पति की तबियत खराब हो गई। इतनी खराब हो गई कि उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। इधर भूमिका को भी पशव पीड़ा शुरु हो गई और उसे भी अस्पताल ले जाना पड़ा।
वह मां बनी। उसने एक कन्या को जन्म दिया। दूसरे दिन भूमिका को बच्चा दिया गया। साथ ही उसके पूछने पर पति की मौत की खबर भी दी गई।
एक अस्पताल में पति की मृत्यु हुई और दूसरे अस्पताल में बच्ची का जन्म हुआ।
बच्ची को अपने छाती से लगा भूमिका बहुत रोई। पूरा वॉड शोक में डूब गया वहां मौजूद लोग उसे समझाने लगे पर वह रोये जा रही थी।रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसे चाह कर भी कोई समझा नहीं पा रहा था।.........
खबर सुन वहां एक बुजुर्ग डॉक्टर आये। सबों को हटाते हुए वे भूमिका के बेड़ के पास गये और स्नेह से उसके सिर पर हाथ रख बोले- बेटा आपके कष्ट को समझते है पर अभी आप मां बनी हो। अपनी मां की भूमिका
 निभाओ। वह रो रही है....उसे भूख लगी है.....उसे अपना दूध पिलाओ.......
डॉक्टर के स्नेह भरे हाथ के स्पर्श ने और उनकी बातों ने भूमिका को अपनी बच्ची की ओर आकर्षित् किया। उसका ध्यान बच्ची पर गया।
नर्स को उसकी मदद के लिये कह, डॉक्टर साहब वहां से चले गये।
कहते है डॉक्टरों की बातों से और व्यवहार से बिना दवाई के मरीज कीआधी बिमारी खत्म हो जाती हैं।
अब भूमिका की दूनिया उसकी बेटी को घेरे थी। उसने अपनी बेटी का नाम सुधारखा।
अपनी बेटी के लालन-पालन में अब वह पति के शोक से धीरे-धीरे समझोता
करने लगी थी।
भूमिका अपने बच्चे के प्रति अपनी भूमिका निभा रही थी।
सुधा 3 साल की हो गई ।
एक दिन लेटे-लेटे उसे स्कूल भर्ती करवाने के बारे में सोच रही थी......मन ही
मन सोच रही थी.........आजकल इतनी थक जाती हूँ......उसे स्कूल में भर्ती
कर ले जाना और लाना पड़ेगा....पहले फार्म के लिए जाना है.......पर इन दिनों
इतनी थकान महसूस होती है कि कहीं आने जाने का मन नहीं करता......
यही सब आंखे बंद कर लेटी-लेटी सोच रही थी। इतने में बेटी सुधा की नजर
मां पर पड़ी।वह बोली- आप लेटी क्यों हो........नींद आ रही है.......
भूमिका-नहीं बेटा, लबियत ठीक नहीं लग रही........
मां, मैं बड़ी होकर डॉक्टर बनूगी।आपको दवा दूगी और आप ठीक हो
 जाओगी।.....तुतलाती अवाज में बेटी बोली। यह सून मुस्कूराते हुए वह बोली-
तू डॉक्टर बनेगी....ठीक हैं......
इन दिनों ऐसे ही अक्सर भूमिका की तबियत खराब रहने लगी। एक दिन वह
डॉक्टर के चली गई। कुछ दिन टेस्ट बगैरे करने के बाद पता चला उसे भी
 कैंसर हैं। और उसका लास्ट सटेज है। ज्यादा से ज्यादा साल-ड़ेढ साल जी
सकती हैं। यह सून उसके पैर के निचे से मानों जमीन खिसक गई हो।
वह घर आई और बेटी को गले से लगा कर एक बार वह फिर रोई।
एक दिन की बच्ची को जब छाती से लगाकर रोई थी तब सुधा अज्ञान,अबोध
थी।पर आज वह अपने मां के आँसू देख समझ रही है उसकी मां दुःखी है।
अपने नन्हें-नन्हें हाथों से मां के आँसू पोछती हुई बोली- आप मत रोओ मां.....भूमिका अंदर से ओर हिल गई।अब वह अपनी बच्ची को किसके सहारे
छोड़ेगी। उसे कौन देखेगा......दिमाक काम नही कर रहा था।....अचानक
उसने सोचा दोनों जहर खा लेगें.....उसे दुनियां में अकेला नहीं छोडूगी दोनों
एक साथ आत्महत्या कर लेगें......दो-चार दिन यही सोचती रही। फिर अपने
आप को संभाला।
भूमिका ने कई न्यूज पेपर पढ़ना शुरु किया, नेट खंगालना शुरु किया, कई
लोगों से बातचीत की, सलाह लिया और बहुत ही जल्द एक फैसला भी ले
 लिया।
उसने अपने इलाज में पैसे वर्बाद नहीं किया ।बेटी को मनोवैज्ञानिक तौर पर
समझाना शुरु किया। स्कूल के लिए.......दूसरी ओर अपनी सारी संपत्ति बेच
कैश करने लगी।
उसकी जिंदगी में समय कम था। बेटी की सुरक्षित जीवन की व्यवस्था करनीथी। समय न गवा एक-एक कामों को निपटाती रही।
अपनी बेटी को क्रिश्चन् होम में रखने का निर्णय लिया और एक दिन होम के
मदर के पास पहुँच गई। उनसे मिलकर भूमिका ने अपनी पूरी बात
बताई। उसने कहा-मदर, मैं कुछ दिनों की ही महमान हूँ इस दुनियां में ,पर
मैं चाहती हूँ मेरी बच्ची अपनी जिंदगी जिये। मुझे आपकी सहायता की
जरुरत हैं। कृपया एक बेबश और मजबूर मां की सहायता करे। मैं उसे इस
दुनियां में लाचार और असहाय नहीं छोड़ना चाहती।
अपनी सारी संपत्ति होम और सुधा के नाम करना चाहती हूँ बदले में आप
 लोग मेरी 3साल की बच्ची को जीवन भर सुरक्षा देगें। उसे अच्छी जिन्दगी
देगें
आँखों में आँसू छलकाते हुए बोली-मदर, मरने वाले की आखरी इच्छा पूरी
करेगें न.......टेबिल पर रखे भूमिका के हाथों पर अपना हाथ रख मदर बोली-
आप हम पर विश्वास रख सकती है, भरोसा कर सकती है। आप चाहे तोसंपत्ती सिर्फ सुधा के नाम कर सकती है।.......थोड़ी रुक, गहरी सांस भर
मदर फिर बोली- बच्चे के प्रति आपकी भूमिका ने हमे कुछ नया सिखाया है
जब-जब आपकी बेटी को हम देखेगें आप हमें याद आयेगी।
साल भर होम में आकर बेटी से मिलती रही और एक दिन आया जब वह
 उसे इस दुनिया में छोड़ चली गई.........
अपने आखरी सांस तक भूमिका ने बच्चे के प्रति अपना रोल निभाया...........