जेलर साहब------

माहाकवि तुलसीदास जी ने लिखा है,दूसरों की भलाई करने से बड़ा कोई धर्म नहीं हैं और दूसरों को दुःख देने से बड़ा कोई पाप नहीं हैं।
भारतवर्ष में परोपकार को सबसे बड़ा गुण माना जाता हैं।इसके आगे मनुष्य के दूसरे गुण फिके पड़ जाते हैं।
पश्चिम बंगाल के एक जिले में परोपकार की अदभूत घटना घटी है।बात संशोधनागार के जेलर साहब ने एक मिसाल कायम की है। उनके अधिन कैदियों में से एक कैदी जो कि अपराधिक मामले में कैद है और उसकी मां बीमार हालत में अस्पताल में भर्ती है। दवा, इंजेक्श बगैरे से जब वह ठीक नहीं हुई तो डाक्टरों ने खून चढ़ाने का फैसला लिया और परिवार के लोगों को उसके ब्लड ग्रुप का खून लाने को कहा।कोरोना संक्रामण और लॉकडाउन की वजह से अस्पतालों में खून की किल्लत आ पड़ी हैं।ऐसी परिस्थिती में परिवार वालें
खून की व्यवस्था नहीं कर पा रहे थे। तब उन्हें डोनर लाने को कहा गया।
अब परिवार वाले डोनर की तलाश में भागादौड़ी करने लगे। ऐसे में जेलर साहब को पता चला कि उनके संशोधनागार के किसी कैदी की मां को खून चाहिए और वो उनसे मिलता है तो वे अपने कैदी की सहायता के लिए आगे आये। वे खुद अस्पताल पहूँच कर रक्तदान किये ,कैदी की मां को। उन्होंने आगे-पिछे कुछ भी नहीं सोचा । बिना समय गवाये कोरोना के प्रकोप और लॉकडाउन की घड़ी में रक्तदान कर एक कैदी की मां को जीवन दान किया।
परिवार वाले उनके इस उपकार को मान कर कृतज्ञता जता रहे थे साथ ही आश्चर्य भी थे। जिसका बेटा कैदी है वही के जेलर साहब उनको बचाने चले आये......। दूसरी ओर अस्पताल की ओर से उनकी प्रसंशा की गई। उन्होंने अदभूत मिसाल कायम की है।
अपने जेलर साहब के निःस्वर्थ भाव के उपकार से शायद कैदी में भी बदलाव आये तथा बाकी कैदिओं में भी इसका प्रभाव अच्छा पड़ सकता हैं।
किसी ने सच कहा है- अच्छा राजा ही अपनी प्रजा का ध्यान रखता है।......