अपनों सा अहसास-------

करीब 55-56 साल की इस जिंदगी में अपने हृदय को दूसरी बार दूसरों का धक्का लगा। दूसरों के इन घटनाओं में अपनी जिंदगी का दूर-दूर कहीं कोई संपर्क नहीं। उस दिन टी.वी. खोला और पता चला अभिनेता इरफान साहब नहीं रहे, चल बसे।
इन दो-तीन दिनों में ऐसा अजीब सा महसूस हो रहा है कि शब्दों में वया नहीं कर सकती। जब से ये खबर सूना है रात को आँखें खूल जाती हैं और इरफान जी का चेहरा सामने आ जाता हैं। आँखें भर आती हैं। सिने में हल्का सा दर्द महसूस होता है। शरीर व मन उन परिस्थितिओं से गुजरता है जैसे वो अपना कोई हो। जबकि इस इंसान को एकादबार टी.वी. या अखबार के पन्नों में देखा होगा। दूर-दूर कोई लेना देना नहीं। इनकी कौन-कौन सी फिल्म हैं ये भी मालूम नहीं। एक भी फिल्म नहीं देखी। इनके बारे में कभी कुछ पढ़ा नहीं, कुछ जाना नहीं इनके जीवन के बारे में......खून का रिश्ता नहीं, कोईरिश्तेदारी नहीं पर फिर भी न जाने क्यों दुःख का अहसास हो रहा है।
इनके मौत के आगे-पिछे एक दो ऐसी घटनाऐं और घट गई है।सुन कर आश्चर्य हुए, बुरा लगा पर इरफान की घटना ने दिल को झिंझोरकर रख दिया उनकी आखरी बात, डायलोगस बगैरे सुन-सुन कर रोना आ रहा है।
इरफान मेरी उम्र से छोटे थे अभी ओर कई साल जी सकते थे पर.......यही सोच-सोच जिंदगी उदास लगने लगा हैं। लग रहा है परिवार का कोई सदस्य चला गया हो......
इनकी घटना ने पुरानी एक घटना का आवरण खोल दिया। जिसे वक्त के धूल से ढ़क दिया था। आज फिर से कई साल पुराना घाव ताजा हो गया।
जीवन को पहली वार हिला कर रख दिया था "श्री राजीव गाँधी जी" के अक्समात अस्वभाविक मौत ने......
उनकी मौत ने हमारे पूरे परिवार को शोक में डूबों दिया था। करीब एक माहघर पर मातम सा छाया रहा।
हम छः भाई-बहन, किसी की उम्र 18 तक नहीं पहुँची थी। उससे पहले ही माता-पिता का देहान्त हो चुका था। हम अनाथ और बेसहारा हो गये थे। दिशाहिन हो गये थे। रिश्तेदार, नातेवाले सब हमसे कटने लगे।
 बिना अभिवाबक के जीवन गुजारना मुश्किल सा हो गया था। लेकिन जहां हम रहते थे वहां के हमारे पड़ौसियों ने हमें सहारा दिया। हर तरफ से हमारी सहायता की।
पड़ौसी का अच्छा होना बहुत ही जरुरी होता है।
अपनों का छोड़ चले जाना, उनकी जरुरत और न होने का अहसास कितना दुःखदायी हैं किसी को समझाया नहीं जा सकता। हम टूट गये थे पर पड़ौसियों ने हमें बिखरने नहीं दिया। ऐसे ही हमारी दुःखभरी जिंदगी आगे
बढ़ रही थी। सालों बिततें चले जा रहे थे........
कई साल बाद राजीव गाँधी जी की अक्समात मौत की खबर हमारे सामने आई। पूरा देश शोक में डूब गया था। उस दिन हमारे घर में चूल्ला नहीं जला था। हम भाई-बहनों ने खाना नहीं खाया। ऐसा लग रहा था मानों परिवार में किसी की मौत हो गई हो। खाने-पीने या किसी काम-काज में मन नहीं लग रहा था। रो नहीं रहे थे पर आँखे छलक रही थी और दिल रो रहा था.......हम सभी शोक मना रहे थे।
दूसरे दिन चूल्ला जला पर समय से नहीं खाया, थोड़ा खाया, आधा खाना छोड़ दिया.....पढ़ाई या दूसरे अन्य कामों में मन ही नहीं लग रहा था। जैसे जबर्दस्तहमारे काम  हमसे कोई करवा रहा हो.....राजीव गाँधी जी की मौत की
खबर सुन हमें बहुत धक्का लगा था। जबकि उन्हें कभी देखा नहीं था, उनसे कभी मिले नहीं थे। अवाज सुनी थी, फोटों देखा था.....बस.....यहां पर भी हमें अपना सा लगा था तभी तो करीब महीनें भर हम सब बेसुध थे। उनका इस तरह से चले जाना हमें गवारा नहीं हो रहा था। वे हमारे कोई नहीं थे पर फिर भी उनके चलते किसी चीज में मन नहीं लगता....
कितने सुन्दर, सभ्य, मासूम से, उज्वल चेहरा, अवाज में मिठास.......सभ्यता
मानों उनमें कुट-कुट कर भरा हो......
समझ नहीं आता कैसे कोई अच्छी और सुन्दर चीज को बिगाड़ने की
परिक्लपना कर सकता हैं। जरा सोचते नहीं....दया नहीं आती.... किसी अच्छे चीज को बर्वाद करने से पहले रुह नहीं कांपता......न जाने किसकी
नजर लग गई थी उन्हें, जो इतनी कम उम्र में और इस तरह जाना पड़ा......
राजीव गाँधी जी व इरफान खान साहब के असमय दुनियां से चले जाने से
दिल को बहुत चोट पहूँची। इन दोनों व्यक्तित्व ने अब तक की जिंदगी में
दूसरों का अहसास अपनों सा दिलाया। इनसे दूर -दूर कोई लेना-देना नहीं
फिर भी......
अब तक न जानें कितनी मौतें देखी....दुःख हुआ, अफसोस भी हुआ पर न
जानें क्यों इन दोनों पराई मौतों ने अपनों जैसा अहसास करवाया हैं।
आज की तारिख में हम सब भाई-बहनों की शादी हो गई है।हम सब अपने
अपने घरों में रहते हैं। कोई कहा तो कोई कहा..... लॉकडाउन की बजह से
अभी, सिर्फ फोन पर ही बात हो पाती है। इस बीच इरफान साहब की घटना के
के बारे में हम फिर से दुःखी हो गये। सब के सब.....मेरी एक बहन का फोन
 पर बात
करते-करते गला भर्रा गया ।इनकी बात करते-करते......इनकी बातें
 करते हुए
बहुत पिछे पहूँच गये .....राजीव गाँधी जी की बातों पर ....भूलाये नहीं भूलते...
सिर्फ अफसोस और अफसोस......
किसी और के मौत का इतना गहरा असर जीवन में पड़ना, यह कोई
मनोवैज्ञानिक कारण है या नहीं.......नहीं जानती......पर दुःख का अपनों सा अहसास हैं..........जिसे समझाना संभव नहीं.......