हाय किस्मत-------

भगवान, वक्त, समय, भाग्य, पुरुषार्थ न जानें कितनों की महरबानी इंसान कीजिंदगी को घेरे रहता हैं। हम कभी किसी का हवाला देते है तो कभी किसी का....... ये सब कभी हमें जमीन से आसमान में चढ़ा देते हैं तो कभी आसमान से जमी पर ले आते हैं....जीवन कभी यूं ही मौत के मुँह में चली जाती है तो कभी हम बाल-बाल बच जाते हैं......। इंसान की जिंदगी के अलग-अलग फसाने हैं.......
भारत के एक दिहाड़ी मजदूर के परिवार की कहानी इससे अछुता नहीं।
गांव का एक अत्यन्त गरीब परिवार का मुखिया दिहाड़ी मजदूर का काम कर कष्ट से अपना परिवार चलाता है। इसी आर्थिक संकट के बीच उनका बेटा पढ़-लिख होटल मैनेजमेंट का कोर्स करता है। और इसके बाद नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकता है। काफी कोशिशे करने के बाद आखिर भगवान उसकी सुन लेते है....उसे एक नौकरी मिलती है....यह नौकरी उसके लिए कोई मामूली नौकरी नही थी। देश के गरीब परिवार के बेटे को विश्व के अमीर देश अमेरिका में नौकरी मिली। विश्वास ही नहीं होता....अमेरिका के एक जहाज कंपनी में उसे रसोईये का काम मिला और वह वहां का रसोईया बन गया।
एक दिहाड़ी मजदूर पिता के बेटे को ये नौकरी मिलने से पूरे परिवार के खुशी का ठिकाना न रहा......परिवार के सारे सदस्य बहुत खुश थे।
जिसे अपने राज्य व देश के शहरों को देखने का मौका न मिला हो, जो टेक्सी,ओला, उबर में कभी चढ़ा न हो, वह हवाई उड़न से विदेश जायेगा। सोचकर सबों का मन रोमांचित हो रहा था, अदभूत् खुशी महसूस कर रहे थे।
परिवार वालों ने सोचा अब हमारे अच्छे दिन आयेगें.....आर्थिक संकट दूर होगे......
कुछ दिनों बाद दिहाड़ी मजदूर का बेटा रसोईया की नौकरी पाकर हवाईजहाज से अमेरिका चला गया। वहां उसने मन लगाकर काम किया। और घर पर रुपये भेजता रहा।
करीब 8-10 महिनें बाद छुट्टी ले परिवार वालों से मिलने आया। और फिर वापस नहीं जा पाया। कोरोना वायरस के कारण पूरी दूनियां में लॉकडाउन शुरु हो गया। वह अमोरिका अपनी नौकरी में न जा सका.....
भाग्य क्या-क्या खेल खेलती हैं।
कांच के बर्तनों से भरी एक टोकरी, जैसे उसके हाथ से गिर गई हो और सारे टूटकर चकना चूर हो गये हो....वह हतास हो गया । अपनी किस्मत को कोशने लगा...क्या सोचा था और क्या हो गया...
लॉकडाउन के चलते बाप-बेटे दोनों का काम ढप्प पड़ गया। फिर पैसों के लाले पड़ने लगे.......
हाय किस्मत.....मजबूरन, मैनेजमेंट कोर्स करने वाले बेटे को सबजी वाला बनना पड़ा। कोई रास्ता नजर नहीं अया तो वह रास्ते में बैठकर सबजी बेचने लगा। परिवार जो चलाना था। सब नसीब का खेल है।
सबजी के सामने बैठा-बैठा वह अपनी नौकरी के बारे में सोच, सोच दुःखी हो रहा था......शायद, बुरे दिन किसी-किसी का पिछा नहीं छोड़ते.......
इंसान के भीतर दो प्रकार की प्रवृतियां होती हैं। एक अच्छी और दूसरी बुरी।
जब वह बैठा-बैठा अपनी किस्मत को कोश रहा था तब उसके भीतर बैठेअच्छे मन ने उससे कहा- दुःखी मत हो....जो कुछ हुआ अच्छा ही हुआ....एक बार सोचकर देखो, आज अमेरिका की जो परिस्थिति है ऐसे में अगर तुम वहां रह जाते तो यहां परिवार वाले तुम्हारे लिए चिंतित रहते। एक तो आर्थिक संकट ऊपर से तुम विदेश में .....तुम्हें वहां न जाने क्या हो रहा होगा, तुम वहां कैसे होगें....अमेरिका में तो कितनी मौतें हो रही हैं.....यही सोच-सोच परिवार वाले परेशान रहते....और उधर तुम...तुम भी घर वालों के बारे में सोचकर परेशान होते........अच्छा है संकट की घड़ी में सब एक साथ रहे। एक ही परेशानी रहेगी, आर्थिक.....हो सकता है तुम्हारी किस्मत फिर तुम्हारा साथ दे और तुम्हें दोबारा अमेरिका से बुलावा आये......परिक्षा देते रहो........
उसके भीतर के अच्छे मन ने उसे ऊर्जावान बनाया और तब उसने अपने आप को संभाला....जहां वह एक ओर दःखी हो रहा था वही अब वह जरा राहत महसूस कर रहा हैं।
उसने ऊपरवाले को मन ही मन धन्यवाद किया और नौकरी से उम्मीद लगाए सबजी के सामने बैठा सबजी बेचता रहा।
वक्त इंसान से बहुत कुछ करवाता हैं..........क्योंकि यह बहुत बलवान होता हैं........।