ईश्वर पर आस्था रखने वालें देशों में भरत भी एक देश है। यहां के लोग ईश्वर के प्रति श्रद्धा-भाव रखते हैं। यही कारण है कि प्रभू का वास जहां कहीं पर भी हो तीर्थ यात्रा के दौरान पहुँच जाते हैं। तीर्थ यात्रा को हम पून्य मानते हैं। और इसलिए समय-समय पर श्रद्धालु विभिन्न तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ते हैं। चाहे वह पथ प्राकृतिक रुप से कितना भी दुर्गम क्यों न हो। हर दूरी व कठिन मार्ग तय कर ही लेते हैं। चारों धाम से अमर नाथ तक की कठिन यात्रा तय
कर लेते हैं। कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी इनमें से एक है। यह मार्ग अत्यन्त दुर्गम भरा हैं।
कैलाश एक पर्वत है जो तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी हैं और मानसरोवर झील जो इस पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में हैं। यहां से कई नदियां निकल कर बहती हैं।अदभूत् नजारा......
देखकर पता चलता है प्रकृति कितनी सुन्दर है और जाकर पता चलता है प्रकृती कितनी भयानक हैं।
हिन्दु मान्यतानुसार कैलाश पर्वत पर भगवान् शंकर का निवास हैं। अतः यह तीर्थ स्थान माना जाता हैं। हिन्दु व बौद्ध धर्म में इस स्थान को अत्यन्त पवित्र मानते है। इस यात्रा की विशेष महिमा हैं।
प्रसिद्ध मानसरोवर की यात्रा, श्रद्धालु 21 दिनों में करते हैं जो कि चीन देश की सीमा से होकर करनी पड़ती हैं। दुसरे रास्ते भी है पर वे बहुत लम्बे व दुर्गम भरे हैं।
यात्रा के दौरान श्रद्धालु रास्ते में केम्प व हवन करते हैं। इसलिए चीन को अपने सीमा से की गई इस यात्रा से अक्सर काफी परेशानी होती हैं। चीन की परेशानी को देखते हुए हमारी भरत सरकार ने इस बात को काफी गंभीरता
से लिया और दुसरे रास्ते से सड़क निर्माण का सोचा। पर यह रास्ता दुर्गम व चूनौतीभरा था।
1999 में रास्ते में हाथ लगाया गया। बहुत परिक्षण-निरिक्षण के बाद पूरी तैयारी कर 2008 में रास्ता निर्माण कार्य शुरु किया गया जो कि 2013 तक पूरा हो जाना था पर यह विशाल कार्य कारणवश पूरा न हो सका। परन्तु अब हमारी वर्तमान सरकार ने बचा कार्य पूरा कर 2020 में इसका उद्घाटन किया।
जिस यात्रा को करने में 21 दिन लग जाते थे वह अब 7 दिनों में होगा।
इतने सालों की कोशिशों के बाद अब यह दुर्गम भरा मार्ग आसान हो गया।
कैलाश मानसरोवर यात्रा श्रद्धालुओं के लिए अब कठिन न रहा। श्रद्धालुओं के अलावा यह मार्ग स्थानिय लोग, सेना, अर्द्ध सैनिक के लिए भी आसान हो गया। इन्हें इस सड़क का लम्बे समय से इंतजार था।
इस दुर्गम मार्ग को आसान बनाने के लिए हमें 9 जानें गवानी पड़ी। जिनमें 6 मजदूर हैं।
ये वही मजदूर हैं, जो इन दिनों लॉकडाउन के दौरान कोसों पैदल चलते हुए टी.वी. में दिख रहे हैं। अखबार और मिडिया में भी हमें नजर आ रहे हैं। लॉकडाउन के 40-45 दिन बित जाने के बाद भी इनकी कोई व्यवस्था नहीं ।लगातार रास्तों में , पटरियों में इनकी टोली पैदल चलती हुई नजर आ रही हैं। इनको पूछने बाला नहीं, इनकी कोई सुनने वाला नहीं। अपनी भूख-प्यास, तकलिफ, मजबूरी, व्यथा सुनाने का कोई जरिया इनके पास नहीं हैं। अगर इनके लिए कोई कुछ करना चाहता हैं तो बातों के जरिये या प्रक्रिया के माध्यम् से.....जिनमें ये विचारें उलझ कर रह जा रहे हैं। इसलिए अपनी मौलिक अधिकारों को त्याग कर शिकायतों व सामानों की गठरी को, अपने बाल-बच्चे, परिवार को साथ लिए कोसों दूर पैदल ही घर को चल दिये। कईओ ने रास्ते में दम तोड़ दिये, कई बच्चे अनाथ हो गये, कई औरतें विधवा हो गई, कई बुढ़े मां-बाप बेसहारे हो गये। चलते-चलते बीमार पड़ गये, घर की दहलिज में आकर कैद हो गये। उनके लिए सामान्य सुव्यवस्था नहीं की जा रहीं हैं।
क्षमतावान सब इनके प्रति उदासीन व लापरवाह हैं।
आम जनता लॉकडाउन की वजह से घर बैठे देख, सुन, पढ़ रही हैं। कहीं न कहीं वह मजबूर और वेबस हैं।
कैलाश मानसरोवर का दुर्गम, लम्बा व जोखिमभरा मार्ग इन्हीं मजदूरों के जरिये सुगम व आसान करवाया गया परन्तु मजबूर, गरीब, लाचार मजदूरों के लिए हम वह रास्ता आसान न करा सके जो उनकी कर्म भूमि से जन्म
भूमि की ओर जाता हैं। इनके घर की ओर जाता हैं।
कैलाश मानसरोवर का मार्ग ज्यादा दुर्गम है या इन मजदूरों के घर का रास्ता ........समझ से परे है.......
स्वामीविवेकानन्द जी का कहना था - जो जीवों से प्रेम करता हैं वही ईश्वर से प्रेम कर सकता हैं........
भगवान् हमारे आस-पास ही है उन्हें आसानी से पा सकते है परन्तु फिर भी हम लम्बा रास्ता तय करते है.... यात्रा पर चल पढ़ते हैं....और भगवान् के पास जाते हैं...पून्य कमाने......।
शायद हमें सीधा मार्ग दिखाई नहीं देता........