बर्ताव --------

21वीं सदी में भी ऐसे अनेक देश हैं, जो अब तक अपने देश के लोगों के रोजगार की व्यवस्था नहीं कर पाये। यह उस देश की अक्षमता (नाकामी) को दर्शाता हैं। उसे कलंकित करता हैं।
योग्य व्यक्ति का अभिशाप बेकारी और हिन(गरीब) व्यक्ति का अभिशाप भूख हैं........
देश के उच्च स्तरीय ,उच्च पद वाले व्यक्ति इस ओर ध्यान् ही नहीं देते.......
गांव की ओर तो बिल्कुल ही ध्यान् नहीं देते....अधिकांश गांव के लोग विभिन्न अव्यवस्थाओं में घिरे रहते हैं। शिक्षा, सड़क, बिजली, पानी, उद्योग-धंधे, स्वास्थ्य-केन्द्र, वैज्ञानिक सुख-सुविधा आदि अनेकों प्रकार की
सुविधाओं से हमेंशा वंचित रहते आये हैं। अतः उन्हें अपने यहां कम नहीं मिल पाता हैं।
ऐसे में उनके सामने दो रास्ते रहते हैं। एक तो वे अनैतिक कामों में जुड़ जातेहैं, दूसरे रोजगार के लिए या रोजगार की तलाश में अपने पडौसी देश, मुल्क या शहर चले जाते हैं। या यूं कह सकते हैं जाने को मजबूर होते हैं।
खाली बैठे इंसान का मन शैतान का घर बन जाता हैं। और उनमें से अधिकांश लोग गलत राह पर चल देते हैं। लूटपाट, हत्या, चोरी, दुशकर्म आदि इस तरह के कामों से जुड़ जाते हैं। ऐसे में समाजिक समस्या बढ़ जाती
हैं। और कुछ अपना पेट पालने के लिए दूसरे शहर या पड़ौसी मुल्क में पलायन करते हैं। वे वहां शरणार्थियों की तरह सपरिवार जीवन यापन करते हैं। तथा कई संकटों का सामना करते हैं। जहां पेट की आग बूझाने जाते हैं वहां उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता हैं, हिन दृष्टी से देखा जाता हैं, तरह-तरह की यातनाऐं दी जाती हैं, अमानविक बर्ताव किया जाता हैं।
भारत देश में विभिन्न राज्य से गांव के गरीब लोग रोजगार के लिए शहरों में जाते है और अपने-अपने परिवारों के साथ वहां रहते हैं।
अभी हाल ही में कोरोना वायरस के कारण जो लॉकडाउन हुआ है उस दौरान वेरोजगार होने के कारण हजारों की संख्या में वे वापस पैदल ही अपने-अपने गावों की ओर चल दिए। परिवार को साथ लिए......पेट में अन्न
नहीं, जेब में धन नहीं.....कोशों, मीलों पैदल चले जा रहे है....चले जा रहे हैं....
हम सबों ने उनकी मजबूरी और लाचारी को देखा.....परदेश में कोई पूछने वाला नहीं तो उन्हें अपना ही गांव, गांव वाला घर याद आया.....
यही सवाल पैदा होता है, अगर क्षमतावान गांव के प्रति उदासिन न होते तो पेट के लिए इन्हें न किसी संकट में पड़ना पड़ता न ही किसी- किसी को अपनी जान गवानी पड़ती.......
अपने ही गांव में रोजगार मिल जाता तो इन्हें कहीं भटकने की जरुरत नहीं पड़ती.......।
अब दूसरे देश की ओर रुख करते है। एक देश के लोग जब दूसरे देश में रोजगार के लिए जाते हैं तब भी उनके साथ गलत बर्ताव किया जाता हैं।
कोरोना महामरी संकट के समय की ही अभी बात है। हैवानियत की बात ,इंसान को शर्मसार करने वाली बात .....कितने निर्दयी प्रक्रति के हैं लोग, सोच दिल दहल उठता है....काम की तलाश में गये लोगों को मौत के
मुँह में ढकेल दिया गया। उन्हें मजबूर किया गया मरने को.......
किसी जमाने में भारत में सतीप्रथा हुआ करता था.....उस वक्त औरतों को मजबूर किया जाता था.......
आज भी इस जमाने में लोग कहीं न कहीं मजबूर हैं........
दरसल, अफगानिस्थान से बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए ईरान जाते रहते हैं। इस महामारी के समय भी एक ग्रुप के करीब 70 अफगानी, अपने पड़ौसी देश ईरान गये। उनकी गलती इतनी थी कि उन्हें सिर्फ भूख कोसमझा.....कोरोना महामारी को नहीं.......
उन 70 अफगानीओं को ईरानी सुरक्षा बल के जवानों ने सीमा पर ही रोका और उनसे नदि में कुद जाने को कहा.....उनसे कहा गया ऐसा न करने पर उन्हें गोली मार दी जायेगी। डर के मारे मजबूरन उन्हें कुदना पड़ाऔर खबर हैं अधिकांश डूब गये। कुछएक बचे।
भूख, संकट, मजबूरी उसपर ऐसा जुल्म .......
माना कोरोना वायरस के संक्रमित से पूरा संसार भयभीत हैं, दहसत में है। सब अपनी-अपनी सुरक्षा की सोच रहे हैं। पर इनका संपर्क इंसान से हैं। चाहे वह कैसे भी रंग-रुप के हो......संसार में चारों ओर मदद शब्द और
इसके मायने सामने आ रहे हैं........फिर भेदभाव क्यों..... ऐसा बर्ताव क्यों.....
देश हो या विदेश हर जगह इंसान का वास है.....हर इंसान हड्डी-मांस-खून का बना हैं फिर इतना जुल्म क्यों........
इंसान, इंसान से इतनी नफरत क्यों करता हैं, क्यों उसे जानवर से भी भत्तर समझता है, इतनी जलन, इतनी इर्शा, इतना भेदभाव किसलिए.....इंसान की मनोवृति तुच्छ क्यों .....
गरीब, लाचार, मजबूर लोगों को परेशान कर या मार कर क्या मिलेगा....
उनके पास तो कुछ भी नहीं ,जो ले सके.....
दया,करुणा,सहानुभूति, अच्छा व्यवहार जैसे गुणों को बनाये रखना मानव की मानविकता हैं।
चाहे हमारा देश भारत हो या कोई दूसरे देश के लोग, इन गुणों का ध्यान रखना चाहिए।
शहर की उन्नति व विकाश के साथ-साथ गांव की ओर समान बल्कि ज्यादाध्यान देना चाहिए। ताकि वहीं उन्हें रोजगार मिल सके और वे शहर या पड़ौसी देश न जाए......
लॉकडाउन के दौरान मदद,शहर व शहर के आस-पास के लोगों को ही मिल रहा हैं यहां भी देखा जाये तो दूर-दूर के गांव वाले इस मदद से भी वंचित रह रहे हैं। इन संकट काल में भी गांव की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा ....
कितनी बातें, कितने तर्क-वितर्क, कितनें बहाने, कितने इलजाम के जरिये गांव वालों की बातों को हमेश हवा में उड़ा दिया जाता हैं।
गांव व समाज का एक वर्ग प्रभावशाली व्यक्तियों व प्रक्रति के प्रकोप(बाढ़, सूखा) को न जाने कब तक झेलते रहेगें।.....इस दूनियां में.......
विश्व में अनेक देश ऐसे है जिनके बर्ताव को देख इंसानियत शर्म से झूक जाती हैं.......
अपनी क्षमताओं का सही प्रयोग नहीं करते वे उच्च पद वाले........उन्हें अपने देशवासियों का, अपने राज्य के गांववालों का जरा भी ख्याल नहीं.........
क्या उनका दिल इनके लिए रोता नहीं..........