ऐसा भी भाग्य संभव है.........

तुमको तो हजारों साल हुए बतलाओ गगन गंभीर.....
इस प्यारी- प्यारी दूनिया में क्यों अलग-अलग तकदीर.....
वर्तमान देश दुनिया की हालत व परिस्थितियों को देखते हुए एक अमेरिकन जनाब के बारे में जानकर, गीत के इन लाइनों को साझा किए बगैर रहा न गया।
ईश्वर ने इंसान, इंसान में कितना फर्क किया है। रंग, रुप, नाक,नकसो के साथ ही साथ क़िस्मत में भी फर्क किया है।
ईश्वर पर गुस्सा आता है और उसके बनाए क़िस्मत पर जलन........
बात अमेरिका के एक भाग्यवान या यूं कह लें भाग्यशाली व्यक्ति की है।
अमीर देश के अमीर व्यक्ति ज़रूर है पर ज़रुरी नहीं कि आप धन-दौलत वाले हैं तो आप क़िस्मत के भी धनी होवे। काफी हद तक यह सही है कि पैसा निन्यानबे प्रतिशत समस्या का हल है पर भाग्य और समस्या अलग-अलग हैं।
बेसूमारदौलत होने के बावजूद इंसान समस्या से घिरे रहता है, दर-दर की ठोकरें खाता रहता है। लेकिन कुछ को ईश्वर ने पूरी तैयारी के साथ,फूरसत से उसका भाग्य लिखकर जतन से दूनिया में भेजा है। भाग्यवान और धनवान बनाकर।
अमेरिकन 75 बर्षीय व्यक्ति पर ईश्वर की कृपा है। वे धनवान ही नहीं, साथ ही साथ भाग्यवान भी है। जिन्दगी की व्यस्तता से जब भी फूरसत मिलता हैं तो वे अपनी जीवन संगिनी को साथ लेकर देश -विदेश घुमने निकल पड़ते हैं। अब तक अनेकों जगह घुम चूके हैं। शायद ये उनकी हौवी है।
2020 के फरवरी महीने में अपनी 56 बरषीय संगनी को लेकर उत्तर -पूर्व भारत में भूटान के एक अतिसंकीन गांव में घूमने आए थे। वहां पर वे सप्ताहभर रहे। इसी दौरान अचानक एक रात उनकी तबियत बिगड़ी गई। इलाज की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई क्योंकि उस अति छोटे से गांव में कोई अस्पताल या इलाज का साधन न था। रात जैसे- तैसे बिता दूसरे दिन सुबह वे भूटान शहर आये और वहां अस्पताल में भर्ती हुए।
उनके पेट में गड़बड़ी थी, उल्टी सा महसूस कर रहे थे तथा सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। डॉक्टर उनमें कोरोना संकमण होने के लक्षण नहीं पाये। इलाज चला, साथ ही आक्सीजन दी गई। कुछ दिन बाद डॉक्टर ने फिर कोरोना टेस्ट किया तो वे कोरोना पाजेटीव पाये गये।
तब से अब तक यानी मई महीने के प्रथम सप्ताह तक वे भूटान के अस्पताल में ही रहे।
भूटान को पता चला कि शायद वो व्यक्ति यहां का पहला कोरोना मरीज़ है।
भूटान में अभी भी राजा-रानी के द्वारा शासन की प्रथा हैं। अतः वहां के राजा को जब यह पता चला तो उन्होंने उनके इलाज का जिम्मा लिया और अपनी देखरेख में इलाज व सेवा की व्यवस्था की।
भूटान में मरीज़ को अछूत समझा नहीं गया। जैसे भारत या और कई जगहों पर कोरोना पाजेटीव पाये जाने पर मरीज़ को ऐसा समझा जाता हैं। अपने इलाके या घर में घुसने नहीं दिया जाता। यही नहीं कोरोना पाजेटीव शव को दफनाने या दाह करने पर इलाके के लोग बाधा पहुंचाते हैं। जहां तक मेरी जानकारी में है हमारे यहां सारे रिश्ते भूला देते हैं। ख़ून का रिश्ता भी कोरोना के आगे कोई मायने नहीं रखता।
परन्तु भूटान में उन दोनों के साथ ऐसा न कर बल्कि अच्छे से अमेरिकन भाग्यवान व्यक्ति के इलाज पर ध्यान दिया गया। इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी गई।
उधर अमेरिका में बेटे को जब अपने पिता के बारे में पता चला तो उसने वहां के (अमेरिका )प्रशासन से अपने बीमार पिता को वापस देश लाने की गुहार लगाई। बेटे के आवेदन को स्वीकार किया गया और एक भेंनटिलेटर युक्त विमान की व्यवस्था की गई। भेनटिलेटर युक्त विमान की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उन्हें आक्सीजन की कमी महसूस हो रही थी। सांस लेने में दिक्कत हो रही थी इसीलिए प्रशासन की ओर से यह व्यवस्था ली गई। जिसके जरिए 30 घंटे का उड़ान सफ़र तय कर भाग्यवान व्यक्ति अपने देश अमेरिका पहुंच गऐ। सही सलामत......।
वैसे इस मामले में भारत भी पिछे नहीं है। उसने भी "बंदे भारत मिशन"शुरू किया है।
वहां उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया।
डॉक्टर के मुताबिक वे अब पहले से अच्छा महसूस कर रहे है।
वे पहले से कैंसर पैसेनट थे.....
कैंसर पैसेनट होने के बावजूद उन्होंने कोरोना को मात दिया और अब बेहतर महसूस कर रहे है।
अमेरिका में विदेश से अपनों को लौटाने का क्रम जारी है पर इनकी बात कुछ ख़ास है।
क्रम बाई क्रम उनके सहयोग के लिए दोनों देश और देश के लोग आगे आए।
ऐसे भी भाग्य का होना संभव है इस पृथ्वी पर.........।
पुरुषार्थ (मजदूर) को भी भाग्य के सहारे की जरूरत होती है..........।
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