शायर व गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी साहब..........

शायर और गीत का लुफ्त सभी उठाना चाहते हैं।
दाल में अगर तड़का या छौक लगाया जाये तो उसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता हैं। ठीक उसी तरह हिंदी गानों में अगर उर्दू शब्दों का तड़का लगाया जाये तो उसका लुफ्त उठाने का मजा ही अलग हो जाता हैं। सुनने में काफी आनंद आता है। ऐसे गाने हृदय को छू जाते हैं।
हमारी नजर में ऐसे कई गीतकार आए हैं। उनमें से एक मजरुह सुल्तानपुरी साहब है।
आजादी के बाद का पलायन, सबसे बड़े पैमाने में पैदलयात्रीयो का दृश्य देख गाने का एक लाईन याद आता रहा- मैं भी इंसान हूं इक तुम्हारी तरहां.....
लगता है कौसों पैदल चलते हुए लोगों की आत्मा से निकली यह आवाज़, हम समाज के लोगों के उद्देश्य से है। और जो इस गीतकार की भी याद दिला दी हो। कितनी हकिकत है इसमें।
जब गाने के सही अर्थ का दृश्य सामने आता हैं तो अनायास ही ऐसे गीतकारों के आगे श्रद्धा से सिर झूकजाता हैं।
गीत के माध्यम से हमें सच्चाई का सामना कराते इस लाइन के गीत को महसूस कराया शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी जी ने। उन्होंने इसे लिखा था। आज से करीब 50-55 साल पहले।
उनका जन्म 1919 में निजामाबाद में हुआ था। पिता चाहते थे मेरा बेटा बड़ा हो कर डाक्टर बने। और इसलिए पिता ने बेटे को चिकित्सा विभाग में पढ़ाई करवाई। अपने पिता के इच्छानुसार मजरुह सुल्तानपुरी जी ने उस जमाने में डॉक्टर की पढ़ाई भी की। परन्तु उनका मन इस और नहीं लगा। उनका मन तो शेरों- शायरी में लगता था। वे अक्सर मुशायरों में जाया करते थे और अपनी शेरों-शायरी सुनाया करते थे।
एक बार किसी दोस्त के कहने पर उन्होंने पहली बार हिन्दी फिल्म के लिए गाना लिखा।
उस जमाने के मशहूर गायक सहगल साहब ने उनका लिखा गाना गाया।
उनके लिखे पहले गीत को गाकर सहगल जी का हृदय भर आया था। बताया जाता है, गाना गाकर वे काफी भावुक हो गए थे। और इसी कारण उन्होंने कई बार अपने लोगों से कहा था- मेरे मरने पर इस गाने की धुन बजाया जाते।
आजादी के पहले से उनका यह सफ़र शुरू हुआ। उन्होंने कई फिल्मकार, संगीतकार और अभिनेताओं के साथ काम किया। कई पीढ़ियों के साथ मिलकर करीबन 50 सालों तक गीत लिखे। जो काफी अमर रहे। उन्हें अवार्ड भी मिला।
मजरुह सुल्तानपुरी साहब ने करीब 5000 गाने लिखे।
मुझसे अगर कोई पूछे कौन सा गाना सुनना अच्छा लगता है? मेरा जवाब होगा- आंधी और दोस्ती के सभी गाने बेहद पसन्द है। और मैं इन्हें आज भी अक्सर सुना करतीं हूं। इन दोनों फिल्मों के गाने सुन कर दिल और आंखें दोनों भर आते हैं। फिर भी कहीं न कहीं मन को शांति व तृप्ति मिलती है।
उनके लिखे दोस्ती फिल्म के गाने हृदय को छू जाते हैं। आज भी ऐसे गाने दिल में उतर जाते हैं।
इन्हें लिखने तथा गाने वाले आज इस दुनिया में नहीं है पर गानों के साथ वे भी अमर हो गए।
24 मई 2000 को मशहूर व लोकप्रिय गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। परन्तु आज 20 साल बाद भी वे हमारे बीच अमर गीतों के जरिए अमर है और रहेगें।
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