हिन्दी माह के त्यौहार व व्रत कथा.....

आश्विन माह---
            हिन्दू धर्मानुसार उक्त धर्म व समाज के लोग खासकर मारवाड़ी समाज इस माह के अमावस्या तक श्राद्ध मानते हैं। इस तिथि में पीतरों का(पूर्वजों) श्राद्ध...,शान्ति हेतु करते हैं। परिवार के पुरुष ब्राह्मणों को वस्त्र व दक्षिणा देते हैं तथा महिलाएं ब्राह्मणियों को वस्त्र व दक्षिणा देती हैं। तत्पश्चात् तर्पण करते हैं।
इस माह में, माह की अष्टमी से "आशा भगोती" की पूजा भी शुरू करते है।
लकड़ी के पट्टे पर आठ प्रकार की आठ-आठ सामग्रियों से आठ दिनों तक पूजा की जाती है।
एक बार "आशा भगोती" की पूजा, व्रत कथा शुरू करने पर इसे लगातार आठ सालों तक करना पड़ता हैं फिर नौवें साल इसका उज्जापन (उजमन) कर यह पूजा सम्पन्न किया जाता है। 
"आशा भगोती" की व्रत कथा, इस प्रकार है-----
         एक राजा थे। जिसकी दो बेटियां थीं। एक का नाम गोरा और दूसरी का नाम पार्वती था। 
एक दिन राजा ने अपनी दोनों बेटियों को अपने पास बुलाया और पूछा- तुम किसके भाग्य का खाती हो?
गोरा बोली- मैं आपके भाग्य का खाती हूं। और पार्वती बोली- मैं अपने भाग्य का खाती हूं। 
राजा को अपनी बेटी पार्वती पर बहुत गुस्सा आया।
उन्होंने ब्राह्मण को बुलाकर कहा- गोरा के लिए राजा और पार्वती के लिए भिखारी वर की तलाश करो।
ब्राह्मण ने राजा के कहने पर गोरा के लिए एक रईस
जी को नेक का नारियल दिया और पार्वती के लिए, बुढ़े भिखारी के वेष में बैठे शिवजी को दिया।
शादी  वाले दिन दोनों की बरात आई। गोरा की बरात की खुब खातिरदारी कर धुम-धाम से धन देकर शादी करवाई और पार्वती की बरात आई तो न खातिर की गई, न ही कुछ दिया गया। सिर्फ कन्यादान दे दिया गया।
अब शिवजी, पार्वती जी को अपने साथ ले कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे। रास्ते में जहां भी पार्वती जी के पैर पड़े वहां की दूब (घास) सूखने लगी। इस पर शिवजी ने पंडित जी को बुलाकर ऐसा होने का कारण पूछा....।
पंडित जी ने बताया पार्वती जी को दोष लगा है। इन्होंने अपनी भाभियों के साथ "आशा भगोती" का व्रत रखा था। इनकी भाभियों ने अपने पीहर (माइका) जाकर उजमन कर लिया पर इन्होंने ऐसा नहीं किया। इसलिए इन्हें दोष लगा है। अब अगर ये अपने पीहर जाकर उजमन करती है तो इनका दोष मिट जायेगा। 
शिवजी पार्वती जी से बोले, हम ऐसा ही करेंगे।
इतना कहकर शिवजी गाजे-बाजे के साथ खुब गहने और वस्त्र पहन तथा पार्वती जी को भी पहना कर उनके पीहर की ओर चल दिये। ताकि वहां सबों को पता चले कि पार्वती जी सुख में है।
जाते हुए रास्ते में एक जगह बहुत भीड़ दिखी। पार्वती जी ने शिवजी से पूछा यहां इतनी भीड़ क्यों लगी है?
शिवजी बोले- एक रानी के बच्चा होगा और वह बहुत दुःख पा रही है। इस कारण भीड़ जमा है। 
यह सुन पार्वती जी बोली- बच्चे पैदा होने में इतनी तकलीफ होती....है? आप तो मेरी कोख बंद करवा दो।
शिवजी बोले- अपनी कोख बंद मत करवाओ। बाद में पछताओगी।
वो मान गई तथा वे आगे चलने लगे। थोड़ी आगे चलकर उन्होंने एक घोड़ी को बच्चे होने के दौरान तड़पते देखा। उसे बहुत तकलीफ़ हो रही थी। यह देख पार्वती जी फिर बोली- मेरी कोख बंद करवा दो वरना मैं आगे नहीं जाऊंगी। वो हट करने लगी।
शिवजी ने उन्हें बहुत समझाया पर वो नहीं मानी। तब हार कर शिवजी ने उनकी कोख बांध दी। 
उधर गोरा उजमन न करने से अपने ससुराल में बहुत कष्ट पा रही थी।
इधर शिवजी गाजे-बाजे के साथ पत्नी पार्वती जी को लेकर उनके पीहर पहुंचे। 
मां-बाप, बेटी पार्वती  को देख नहीं पहचाने। बाद में जब पहचाने तो बहुत खुश हुये।
पार्वती जी के पिता ने उनसे दौबारा पूछा-  किसके भाग्य का खाती हो? 
पार्वती जी ने कहा-मैं अपने भाग्य का खाती हूं। तभी तो इतनी खुश हूं। इतना सज-धज कर आई हूं। इसके बाद पार्वती जी अपनी भाभियों से बोली मैं उजमन करने आई हूं। इतना कह उन्होंने अपनी दासी से कहा- कुएं के पास वे (शिवजी) बैठे हैं उन्हें मेरे उजमन की व्यवस्था करने को कह।
इस पर शिवजी ने सवा करोड़ से सारी तैयारी करवाई। बड़े ठाट-बाट से पार्वती जी ने अपने पीहर में "आशा भगोती" का उजमन कार्य सम्पूर्ण किया। 
यह देख सब कहने लगे पार्वती की शादी एक भिखारी से करवाई थी पर वह अपने भाग्य से राज्य करने लगी।
यह सब देख सुन शिवजी के ससुर जी ने दामाद के लिए बहुत सारी रसोई बनवाईं। शिवजी जब भोजन करने बैठे तब उन्होंने सारा भोजन खत्म कर दिया। पत्नी के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। उबला साग का पींड पड़ा था पार्वती जी ने वही खा, पानी पी अपने पति के साथ वापस वहां से चल दी।
रास्ते में बहुत धूप पड़ रही थी सो दोनों एक वृक्ष के नीचे आराम करने बैठ गये। तब शिवजी ने पार्वती जी से पूछा- क्या खाकर आईं हो....?
क्योंकि उन्हें मालूम था कि उन्होंने सारा भोजन खत्म कर दिया था।
पार्वती जी बोली- आपने जो खाया मैंने भी वही खाया।
थोड़ी देर में पार्वती जी वहीं पर सो गई। तब शिवजी ने उनकी पेट की ढकनी खोल कर देखा तो उन्हें साग और पानी दिखाई दिया। पार्वती जी के उठने के पश्चात् शिवजी ने पुनः उनसे पूछा- क्या खाकर आईं हो अपने पीहर से...?
पार्वती जी ने फिर से वही जबाव दिया- आप जो खाकर आए है, मैं भी वहीं खाकर आईं हूं।
इस पर शिवजी बोले- मैंने तुम्हारें पेट की ढकनी खोल कर देखा तो मुझे, साग और पानी दिखा।
महाराज जी, अपने तो मेरा पर्दा फांस कर दिया। लेकिन यह बात किसी और से न कहना। मैं पीहर की बात पीहर में और ससुराल की बात ससुराल में रखना चाहती हूं। ऐसा पार्वती जी ने कहा......।
दोनों विश्राम लेने के बाद आगे की ओर चल दिए। 
रास्ते में जो दूब (घास) सूख गए थे वे फिर से हरे होने लगे। यह देख शिवजी ने सोचा पार्वती जी के दोष मिट गए। 
आगे ओर चले तो उन्हें वहीं घोड़ी दिखाई दी। उसके पास उसका बछड़ा खेल रहा था। शिवजी, पार्वती जी से बोले- यह वही घोड़ी है जिसके दुःख
से दुःखी हो तुमने अपना कोख बाधवा लिया था। 
पार्वती जी बोली- महाराज जी, आप मेरी कोख खोल दो।
अब कैसे खोल सकते है? मैंने तो पहले ही मना किया था। शिवजी बोले.....।
पार्वती जी इस पर कुछ नहीं बोली तथा आगे की ओर चल दी।
थोड़ी दूर जाने पर वही रानी नज़र आईं जो बेटे के होने पर गाजे-बाजे के साथ जलवा पूजने जा रही थी। 
यह देख पार्वती जी उनसे (शिवजी) पूछी- यहां क्या  
हो रहा है..?
शिवजी ने पार्वती जी से कहा- यह वही रानी है जिसके बच्चे होने की तकलीफ़ से तुम दुःखी हुई थी। बेटा होने पर वह जलवा पूजने जा रही है।
यह सुन पार्वती जी हट करने लगी कि मेरी कोख खुलवा दो।
तब शिवजी ने शरीर के मैल से गणेश जी बना कर पार्वती जी को दिया तथा सारे नेकचार करवा जलवा पूजन करवायें।
इसके बाद पार्वती जी ने सारी नगरी में ढींढोरा पीटवाया कि वो सुहागिनों को सुहाग के सामान बांटेगी। 
ऐसे में सुहागनें आ-आ कर खुब सुहाग के सामान ले गई पर एक ब्राम्हणी श्रृंगार करने में लग गई थी और उन्हें वहां आने में  देरी हो गई। सारा सामान बट चूका था। उन्हें देने को सुहाग का कोई सामान नहीं बचा था।
शिवजी उन्हें देख पार्वती जी से बोले- इन्हें भी सुहाग देना पड़ेगा.....।
सुहाग का सामना न होने पर पार्वती जी ने उन्हें स्वयं के सुहाग का सामना दिया। हाथों के नाखून से मेंहदी, मांग टीका से रोली, आंखों का काजल आदि
और भी समान दिया।
यह देख सारी नगरी पार्वती जी की जय-जय कार करने लगी। 
ब्राह्मणी बोली- सबको जैसा सुहाग दिया, मुझे भी पार्वती जी ने वैसा सुहाग दिया।
 तब से यह व्रत कथा ‌और पूजा शुरू हुई........।

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