योजना अतीत की--------

अतीत यानी भूतकाल में घटी घटनाऐं जब हमारे सामने आती है तो वह इतिहास कहलाता है। और इसे भूलना  मुश्किल है। इतिहास से बहुत कुछ सिखने को मिलता है। इससे बहुत कुछ अर्जीत कर सकते हैं और किया भी जाता है।
आज समुचे देश और समाज में काफी परिवर्तन आया है। हर तरफ से देश, दुनिया , समाज बहुत आगे बढ़ गया है। लेकिन कहीं न कहीं हमारा अतीत हमारे सामने किसी न किसी रूप में आ ही जाता हैं। जिसे हम अमान्य नहीं कर सकते। इतिहास उपलब्धियों का भंडार है।और इसीलिए इसे हम नकार नहीं सकते। तभी वर्तमान में हो रही घटनाओं में अतीत का फ्लेवर हम अनुभव कर पाते हैं।
देश व समाज के कई निर्णय, कई फैसले आज भी अतीत से लिया जाता हैं। ऐसा ही एक फैसला पं बंगाल राज्य की ओर से लिया जा रहा है।
सुनने में आया है, पं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने कालेज की पढ़ाई का खर्च दूध डीपो में काम कर चलाती थीं। किसी जमाने में कालेज में पढ़ाई के दौरान प्रातःकाल दूध डिपो में जाकर कमिशन के तौर पर दूध बेचा करतीं थीं। लीटर प्रति कमिशन के तौर पर दूध बेचकर उन्हें महिने में कुल 40रु के करीब मिल जाते थे। उस जमाने में उसी के हिसाब से वो अपना पढ़ाई का खर्च उठाती थी। कहते है यही से उनका जीवन संघर्ष शुरू हुआ था। 
ममता बनर्जी की ही तरह उस जमाने में अनेकों लड़कियां दूध डिपो से जुड़ी थी।
उस जमाने की योजना को दोबारा सोचा जा रहा है। उस पर ध्यान दिया जा रहा है। 
अतीत की योजना को ध्यान में रखते हुए राज्य (पं बंगाल) की ओर से निर्णय लिया जा रहा है, जो छात्राएं आर्थिक रूप से कमजोर है उन्हें आगे अपनी पढ़ाई जारी रखने में कोई परेशानी न हो इसलिए उन्हें इस योजना से जोड़ा जाएगा। 
इतिहास दोहराया जा रहा है।  दरअसल पुनः पुराने दिनों की एक झलक हमें देखने को मिल सकता है। 
इस राज्य में फिलहाल मदर डेयरी के 100 स्टोल यानी डिपो को लक्ष्य बनाया जा रहा है। 
जरुरतमंद छात्राएं, प्रतिदिन प्रातःकाल करीब 2घंटे मदर डेयरी डिपो में दूध बेचकर अपने पढ़ाई का खर्च उठा सकेंगी। जैसा कि पं बंगाल की मुख्यमंत्री किसी जमाने में करतीं थीं। 
आज की अनेक ममताऐं (जरुरतमंद छात्राएं) इसका लाभ ले पाएंगी।
शायद उन्हें ध्यान में रखते हुए उस जमाने की योजना को लागू करने का निर्णय लिया जा रहा है। 
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी छात्राओं के लिए प्रेरणा साबित होगीं।
सरकारी तथा कानूनी प्रक्रियाऐ पूरी होने के बाद, राज्य के उसी छेत्र से पहले यह योजना शुरू किया जाएगा जहां से मुख्यमंत्री जी ने अपना जीवन युद्ध प्रारंभ किया था। 
फिलहाल 100डिपो से योजना शुरू किया जाएगा फिर धीरे-धीरे समस्त राज्य में चालू होगा। 
अपने-अपने मदर डेयरी स्टोल से रोज 80 से 100 लिटर दूध बेचकर, कमिशन के तौर पर, प्रति लीटर डेढ़ से दो रुपए के हिसाब से, महिने में जितने पैसे मिलेंगे, उससे वे छात्राऐं पढ़ाई का खर्च उठा पाएंगी। वे आत्मनिर्भर बनेगी.......।
अतीत की यह योजना सराहनीय है। प्रसंसनिय है।
इस तरह की और भी बातें हैं, योजनाऐं हैं जिनका लाभ आज भी हम उठा सकते हैं।
परन्तु, यह सोचने में मजबूर हो रहे हैं कि वाकई में जो छात्राएं आर्थिक रूप से कमजोर और  जरुरतमंद हैं उन्हें यह मौका मिलेगा या अपनों को....?
योजनाऐं कई बनाई जाती है पर जिनके लिए बनाई जाती हैं वे ही बंचीत रह जाते हैं या जानकर उन्हें बंचीत रखा जाता हैं। कुछ एक के अलावा....।
योजना बनाने वाले अगर इस प्रचार- प्रसार से जुड़े लोगों पर कड़ी निगरानी रखें तो शायद बंचीतों की संख्या कम होगी। आगे निर्भर करता है कैसी सिढियो के माध्यम उतरकर योजनाऐं ज़मीन पर आयेगी...... कारण योजना अतीत की है और हम वर्तमान में खड़े हैं।

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