मौका------------

कन्या की शादी के अभी दो ही साल हुए थे। और साल-डेढ़ साल पहले उनकी नन्द सरला की हुई थी। साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली दोनों पढ़ी-लिखी थी व अच्छे परिवार में ब्याही थी। दोनों के ही ससुराल में लक्ष्मी जी की कृपादृष्टी बनीं थी। 
अपने शादी के कुछ महीनें बाद से ही कन्या ने गौर किया कि घर के पुरुष ( पति और ससुर जी) काम पर जाने के बाद उनकी सासु मां कुर्सी लेकर बालकनी में घंटों बैठी रहती है और रह-रहकर गेट की ओर देखा करती है। उसे कुछ पूछना या कहना होता तो वह बालकनी में आकर उसने (सासू) पूछती। 
घर का काम करते हुए कभी-कभी कन्या के मन में आता, क्या मम्मी मेरे से नाराज़ रहती है या मुझसे उन्हें कोई शिकायत है? 
फिर अपने को समझती हुई अपने आप से ही कहती- नहीं ऐसा नहीं है। उनके व्यवहार से ऐसा जान नहीं पड़ता। आज तक मुझसे कभी गलत व्यवहार नहीं किया। जब से मैं इस घर में आई हूं तब से घर-गृहस्थी के फैसले मुझसे सलाह लेकर करती है या फिर मुझपर छोड़ती है। इतने कम दिन हुए पर इस परिवार ने मुझे पूरा मान दिया है।
......फिर क्या मम्मी जी की तबियत ठीक नहीं? क्यों वो वहां जाकर गुम- सुम बैठ जाती है? अन्दर आकर मेरे से बातें क्यों नहीं करती? 
करीब हर रोज कन्या के मन में इस तरह के ढेरों सवाल पैदा होते। उसकी हिम्मत भी नहीं होती कि किसी से या उनसे कुछ पूछे। परिवार में सारी बातें नार्मल जो थी।
वह अपने मान को खोना नहीं चाहती थी, किसी तरह के सवालों से। पर सासु मां की यह बात भी उसे परेशान करती थी। 
एक दिन घर के सारे काम सलट कर अपनी सासु मां से बोली- मम्मी जी, चाय पीने का मन कर रहा है.....। चाय बनाऊ....? आप भी पीयेगीं....?
सासु मां सोच में डूबती आवाज में धीरे से बोली- हां, बना ले....पी लूंगी.....।
थोड़ी देर बाद चाय का गिलास उन्हें पकड़वाने आई। कन्या ने देखा वो साड़ी के पल्लू से अपने आंसू पोंछ रही थी। बहु के आने से वो अपने दर्द को छुपाने की कोशिश में थी पर बहु ने देख लिया था।
गिलास पकड़वाते हुए वह बोली- क्या बात है ... आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही... अन्दर चलकर थोड़ी देर लेट लिजिए....। 
सासु मां- नहीं बेटा मैं ठीक हूं..... ला चाय दे....। और तु भी पी लें.......। चाय ठंडी हो जायेगी.....।
घर पर नौकरानी थी इसीलिए बहु ने आगे कुछ पूछा नहीं। वह चुप चाप डॉईनिंग रूम में कुर्सी पर बैठ चाय पीने लगी और सोचने लगी, आखिर क्या बात है....मम्मी किस बात पर दुःखी हो रो रही थी....?
बाई के जाने के बाद बात करुंगी। मम्मी जी की सोच में डूबी कन्या अचानक चौंकी।
भाभी, मैं जा रही हूं...... बाई बोली ।
कन्या- हां, ठीक है।
बाई के जाने के बाद वह अपनी सासु मां को ध्यान से देख रही थी। उन्हें समझाने की कोशिश कर हिम्मत बांध रही थी। इस बात से अंजान सासु मां अपना चश्मा उतार-उतार कर आंसुओं को कभी हाथ से तो कभी पल्लू से पोंछ रही थी। 
कन्या से रहा नहीं गया। वह उनके पास पहुंच कर बोली- आप चाय पी चुकी... गिलास....
बिना कुछ कहे उन्होंने गिलास बहु की ओर बढ़ा दिया।
अन्दर गिलास रख, एक पटरा ले, वह बालकनी में अपनी सासु मां के पास आकर बैठ गई।
भर्रायी वह स्नेह भरी आवाज में बहू से बोली- तू, यहां आकर बैठ गई? जा अन्दर जाकर थोड़ी देर लेट ले.....। 
लेकिन कन्या, अपनेपन से अपना दोनों हाथ सासू मां के घुटनों पर रख, हल्के से दबाते हुए धीरे से हिम्मत कर बोली - क्या बात है मम्मी जी, मेरे से कोई गलती हो गई क्या? आप मेरे से नाराज़ हो? 
सासू मां- ना बेटा ना..... ऐसा नहीं है। किसने तुझसे कहा? 
कन्या तुरंत पर शांत हो बोली- अगर ऐसा नहीं है तो मुझे बताऐ, आप मुझसे क्या छुपा रही हैं?......आप दुःखी क्यों है.......क्या पापा जी या आपके बेटे ने कुछ......।
कदर और अपनेपन ने सांस को बहू के आगे झूका दिया। 
किसी सत्संग में सुना था--- झूककर कभी-कभी किसी को जीता जा सकता है। 
इस घर में आए मात्र दो साल हुए हैं बहु को, अतः वो अपना दुःख- दर्द उसे बताना नहीं चाहती थी। उससे छुपा रही थी। परन्तु बहू ने इतने अपनेपन से पूछा कि वह फफक-फफक कर रो पड़ी। 
नहीं मम्मी जी नहीं...आप अंदर चलो.... सहारा देती हुई वह अपनी सासु मां को अंदर ले आई।
अपनी बेटी के दुःख से दुःखी मां के मन और शरीर में जैसे जान ही नहीं था। वह अपनी बहू कन्या के सहारे, रोती हुई अपने कमरे के बिस्तर पर आकर बैठ गई। 
कमरे में बैठा कर उसने पहले दरवाजा बंद किया फिर एक गिलास पानी लेकर उनके पास आई। 
कन्या- आप रोना बंद कर पहले पानी पिजिए......। अधिकारस्वरुप बोली।
भरोसा, हक, प्यार, विश्वास, अपनापन,मान आदि ऐसे कई शब्द है जो केवल बोलने या सुनने के नहीं होते इनका अर्थ, इनकी वास्तविकता इंसान की जिंदगी में बहुत कुछ बदलाव ला देता है। जिंदगी के मायने बदल देता हैं। शब्दों के अर्थों को महसूस करना कला है। जो कुछ हद तक कन्या में नजर आता है।
पानी पिलाकर बोली- अब बताइए क्या बात है... आपस में बात करने से समस्या मिट सकती है... अगर मैं कुछ न भी कर पाई तो भी आपका मन हल्का होगा.....आपकी घुटन कम होगी..... वरना आप बीमार पड़ सकती है..... मम्मी जी आप मुझे अपनी दुसरी सरला समझ सकतीं है......।
वो फफक-फफक कर रोएं जा रही थी।
कन्या समझाती हुई फिर बोली- आप मुझ पर भरोसा कर सकतीं है...... बात आपके और मेरे ही बीच  रहेगी...... मम्मी जी, आप मुझसे नहीं कहना चाहती, कोई बात नहीं पर दीदी (नन्द) से तो शेयर ....
बीच में ही उन्होंने बहू का हाथ कसकर पकड़ कहा- उसी का रोना है बेटा। उसी के बारे में सोचती रहती हूं। न जाने कब अपने ससुराल से लड़-झगड
कर अटेची उठा घर चली आए। मैं उसे समझाऊं तो कैसे समझाऊं? वो पढ़ी-लिखी जो है। मेरे हर सवाल का तोड़ है उसके पास। मैं उसे समझा नहीं पा रही कि नौकरी करने की जिद छोड़ दें। जब सरल जी ( दामाद) नहीं चाहते, उनके घर वाले नहीं चाहते फिर तुझे ऐसी ज़िद क्यों ? 
थोड़ा रुक कर फिर बोली- बेटा, एक तरफ बेटी की चिंता दूसरी ओर बेटी के ससुराल वालें। सामने जाने में शर्म आती है। मैं जानती हूं मेरी बेटी गलत है। उसकी ग्रहस्थी में शान्ति नहीं है। तीन साल से ऊपर शादी के हो गए पर उसी एक बात पर 
उसकी जिंदगी ठहरी है। वे लोग अच्छे हैं जो चुप रहते हैं वरना अब तक, न जाने बात कितनी आगे निकल जाती। मुझे अंदर से डर लगता है। तेरे पापा कहते है अपने दामाद जी सब संभाल लेंगे। पर मैं मां हूं। बेटा, तु जब मां बनेगी तब मेरे तड़फ को समझेगी। बेटी के गलत होने पर भी ममता ने मेरे हाथ बांध रखें है। रोने के अलावा मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। 
बहू अपनी सासू मां की सारी बातों को बड़े ध्यान से सुन रही थी।वह अपने सास को दिल खोलकर बोलने का मौका दे रही थी। ताकि उनका मन हल्का हो। जब वो रुकी और फिर रोने लगी तो कन्या ने अपनी सासु मां से परमीशन ले नन्द सरला से मिलने की ठानी। उसने उन्हें चुप करवा कर वहीं बैठ फोन मिलाया। नन्द से हालचाल पूछा, थोड़ी इधर उधर की बातें की, फिर मिलेंगे की इच्छा जाहिर की। 
दीदी, कल या परसों आफिस जाते वक़्त जीजा जी आपको छोड़ जाएंगे फिर शाम को लौटते से लेते जाएंगे। मैं उनसे कह देती हूं और आप भी बात कर लेना। 
भाभी की बात पर सरला आने को तैयार हो गई।
दूसरे ही दिन सरल जी अपनी पत्नी सरला को सुबह ससुराल छोड़ गए। जाते वक्त सासू मां के पैर छुए और कन्या से नमस्ते कर जाने लगे। चलते वक़्त भाभी ने उन्हें केटवैरी का एक छोटा पैकेट दिया और कहा- जीजा जी शाम को जल्दी आ जाइएगा। सब साथ में खाना खाएंगे।
ठीक है भाभी......कह कर मुस्कुराते हुए चले गए।
जाने क्यों, अपने पति के प्रति उनकी भाभी का यह एक छोटा सा व्यवहार उसके दिल को छू गया। मन ही मन वह बहुत खुश हुई।
......कितनी अजीब बात है। हम छोटी छोटी बातों पर कभी क्लेश करते हैं और कभी भावूक हो जाते हैं।
घर पर इस समय मां, बेटी और बहु थी। तीनों ने  थोड़ी देर बातें की फिर खाना खाया। मां अपने कमरे में सोने चली गई तथा बहु नन्द को ले अपने कमरे में....।
भाभी के बिस्तर पर लेटती हुई सरला पूछी- क्या बात है आप मुझसे मिलना चाह रही थी?
कन्या- हां दीदी, मम्मी बाता रही थी आप नौकरी में इंटरेस्ट ले रही है? 
हां, तो..... पढ़ी-लिखी हूं.... सेल्फडिपेंन्डेंट होना कोई बुरी बात तो नहीं... फिर आजकल हर लड़की नौकरी करती है.... चाहे वो अनमेरेड़ हो या शादीशुदा......इस बात के लिए आप मुझसे मिलना चाहती थी....? कमाल है.....।
सरला इस बार बैठकर बोली- इमेज कोई चीज होती है। भाभी वर्ककिंग लेडी की एक इमेज होती है। घर- परिवार, समाज हर जगह......आप भी न.... ।
कन्या- जानती है दीदी, जब मैं 9वीं या 10वीं में थी तब हमारे स्कूल की एक टीचर ने क्लाश में पढ़ाई के बीच किसी बात पर हम से जीवन की एक सच्चाई के बारे में कहा था....जो बात आज भी मुझे याद है।
क्या? बड़ी उत्सुकता से सरला बोली.....।
टीचर ने कहा था, आप लोग पढ़-लिख रही हो शायद आगे और भी बहुत पढ़ोगी। हो सकता है उसके बाद नौकरी भी करोगी या करना चाहोगी। पर एक बात का ध्यान रखना अगर नौकरी करी तो शादी मत करना और शादी करी तो नौकरी न करना। वरना जिंदगी आगे तक बोझ बनकर रह जाएगी। परिस्थिति की बात अलग है पर मेरी बात का ध्यान रखना।
उस उम्र में उनकी बात पर हंसी आई थी। बाद में जब बड़ी हुई और अपने पड़ोसन शादीशुदा व नौकरीपेशा एक आंटी को देखती थी तो एकाएक
एक दिन उन्हीं टीचर की कहीं बात याद आ गई। उसकी बातों में कितनी सच्चाई थी।
अपनी नंदन के पास बैठ कर कन्या कहने लगी,  दीदी हम देखा करते थे जब आंटी निकलती थी तब ठीक से तैयार हो नहीं निकल पाती थी। चलते में किसी तरह खाती थी। उनके दो बच्चे थे उन्हें भी ठीक से समय नहीं दे पाती थी। बच्चे अधिकांश समय कामवाली बाई के साथ बीताते थे।
आफिस से आ तुरंत सुबह के छोडें काम में लग जाय करती थी। काम करते- करते बच्चों से बातें कर लेती थी या स्कूल की पढ़ाई और होमवर्क के बारे में पूछा करती थी। उनका छोटा मुन्ना लेटा-लेटा कुछ और बोलने में लगा रहता था। घर-बाहर के बीच वो रोज पीसा करती थी। 
सरला- भाभी आप कहना क्या चाहती हो....।
कन्या- पढ़े-लिखे का यह मतलब नहीं कि रोजगार में लग जाये। शिक्षा का उद्देश्य उपार्जन नहीं है। जीवन को संगठित रूप से चलाने की कला सिखाता है यह। शिक्षा इंसान के व्यक्तित्व का विकास करता है।
पढ़ें-लिखे होने के अनेक फायदे हैं दीदी। उस ओर आपको ध्यान देना चाहिए। जीजाजी आच्छा कमा लेते हैं फिर आप नौकरी की जींद में अपनी शादीशुदा जिंदगी में बोझ क्यों डाल रही हो?
 जीजाजी और उनके घर वाले कोई नहीं चाहते कि आप.......।
भाभी आपको मेरी भावनाओं की कद्र नहीं है.... सरला के कहने पर कन्या उसे समझाती हुई फिर से बोली- घर ग्रस्ती चलाने में एडूकेशन की जरूरत पड़ती है। घर का हिसाब, बिजली का बिल भरना, टेक्स भरना, बैंक के काम, आगे बच्चों की पढ़ाई, उनके स्कूल बगैरे के काम ऐसे और भी अनेक कामों के लिए शिक्षा की जरूरत होती है। 
अरे आप तो बोले जा रही हो .... सरला ने कहा...
उसकी बात काटते हुए कन्या फिर बोली-अभी अपने मेरेज लाइफ को इंजोय करो। आगे आपको बहुत मौके मिलेंगे। दूसरों की ओढ़ न करों दीदी। इमेज बनाने के ओर भी तरीके हैं। 
मेरा एक दोस्त है जो पढ़ा-लिखा है, नौजवान है पर उसके पास नौकरी नहीं है। जिसकी उसे बहुत जरूरत है। मेरी शादी आपके भैया से हो गई मुझे नौकरी की जरूरत नहीं पर मेरे दोस्त को है। 
हम जिन लड़कियों को नौकरी की आवश्यकता नहीं, और वो न करें तो हो सकता है किसी और को वह मौका मिले, वही नौकरियां उन नौजवानों को, पढ़ें-लिखों को मिल सकता हैं। ताकि वे हिनता के शिकार.......
भाभी... भाभी.... यानी मैं चूल्हा चौंका करती रहूं। और घर की चारदीवारी में कैद रहूं। क्या इसलिए मैंने पढ़ाई की थी? 
कुछ देर कन्या चुप रही। वह सोचती रही इन्हें समझना सही में मुश्किल लग रहा है। पढ़ी-लिखी होने पर भी अपने दोनों घरों और पति के बारे में जरा भी नहीं सोच रही है। अपने ही आसपास हमें कितने उदाहरण मिल जाते हैं जिनसे हम सबक ले सकते हैं, बहुत कुछ सिख सकते हैं। पर ये दीदी भी न...... वाकई, मम्मी जी की परेशानी का कारण.....
नन्द भी चूप ही रही थोड़ी देर। कमरे में सन्नाटा रहा।
फिर अचानक सरोज बोली भाभी आपने तो आज मुझे बोर कर दिया। ऐसी बातें लेकर बैठ गई......
आपकी बोरीयत दूर करती हूं। अब आपकी पदोन्नति होगी। बोतल में रखे पानी को पीते हुए कन्या बोली।
मतलब.....,,?
आपके भैया और मैं प्लांनिंग कर रहे है अगली राखी पर आपको तौफा देने की...... बिस्तर पर बैठी नन्द को एकाएक गले से लगा बोली- समझी बुआ जी.......।
सच..... दोनों सहेलियों की तरह एक-दूसरे से लिपट कर हंसे।
जानती है दीदी, हम बच्चे की सोच रहे। साथ ही मन ही मन मैंने एक और प्लांनिंग बना रखीं है। जब बच्चें कुछ बड़े हो जाएंगे वेसे में, मैं काफी फ्री हो जाउंगी और तब अपने को दूसरी ओर वीजी कर लूंगी। इंटरनेट का जमाना है। घर बैठे किसी काम से जुड़ जाऊगी। समय भी बितेगा और कमाई भी होगी..... ।तब तक आपके भैया और बच्चों के साथ लाइफ को इंजोय करूंगी। हे न बढींया प्लांनिंग...?
इतने में सासू मां की आवाज़ आई- बहू.... सरोज, बातें करती रहेगी....शाम हो चली....।
आई मम्मी..... सरोज ने कहा।
कुछ एक घंटे बाद दमाद जी आये....उसके थोड़ी देर बाद पिता-पुत्र.....। सबों ने मिलकर रात का खाना खाया फिर सरल जी अपनी पत्नी सरला को लेकर घर चले गए।
पहले सासू मां चिंतित रहती थी अब दो दिनों से भाभी भी चिंतित रहने लगीं। कारण नन्द का कोई हल नहीं निकला....।
कुछ दिन बाद एक दोपहर को कन्या के मोबाइल पर सरला का फोन आया । हेलो कहते ही वह बोली- भाभी मैने फैसला लिया है मैं भी आपके पदचिन्हों पर चलूंगी। आप सही थी। सही कहा भाभी आपने...... यह बात सुनते ही बडी इमोशनल हो बीच में ही भाभी बोल पड़ी- दीदी, थेक्यूं, अपने सही फैसला लिया है। आपके फैसले ने दोनों परिवारों को बहुत खुशी दी....सुनीए.. सुनीए...एक बार आप मम्मी जी से बात किजिए मैं उनको फोन देती हूं.....
कन्या ने सासू मां को फोन पकड़ाया और किचन में ऊपरी काम संभालने चली गई। 
थोड़ी देर बाद अचानक पिछे से सासू मां ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा- सही मैं तू मेरी दूसरी सरला है.......।
यह सच है लड़कियों से ही घर बनता और बिगड़ता है....।

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