गिफ्ट----------

सुगंध की शादी के तीन साल बाद बेटा हुआ। वह पिता बने। पहली बार पिता बनने का आनंद उसके चेहरे और बाडीलेंगुएज से साफ नजर आ रहा था।
देवर के मुंह में लड्डू ठुसती हुई मजाकिय मूड में भाभी बोली- देवरजी, खुशी के साथ जिम्मेदारी भी आई है.... पापा जो बन गये....अब अपने भैया की तरह बचपना छोड़ देना.....आप दोनों भाई तो बस.....।पूने में पुष्पा का शिकायतभरा फोन नहीं आना चाहिए..... वरना, मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। हां, बतला देती हूं...... मम्मी जी का मम्मी जी जाने....।
नर्सिग- होम के बाहर खड़े वर्मा परिवार खुश हो आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे।
हम अक्सर बच्चों के लालन-पालन का श्रेय मां को देते आए हैं। पर ऐसा नहीं है। इस बात को हम धिरे-धिरे समझने और मानने लगे हैं। तभी तो विभिन्न दिवस मनाते हुए "फादर्स-डे" भी मनाने लगे हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से पता चलता है, बच्चे अपने पापा के उद्देश्य में नये-नये शब्दों का व्याख्यान करते हैं। कोई कहता है मेरे पापा दुनिया के ग्रेट पापा है, कोई कहता है मेरे पापा किंग है तो कोई अपने पापा को हिरो बताता है। इनसे पता चलता है पापा भी उनके बहुत करीब है।
एक बच्चे के लालन-पालन में, उसके भविष्य को संवारने में माता-पिता दोनों का योगदान होता है।
माता-पिता, दोनों का साथ तथा योगदान बच्चे को स्वस्थ जीवन प्रदान करता है। 
नये पापा के तौर पर सुगंध का अपने नन्हे बेटे के प्रति योगदान सराहनीय है। जो इस लेख से पता चलता है......।
वर्मा परिवार का यह छोटा बेटा है। बड़ा बेटा पूने में सर्विस करता है और वो वहीं अपने परिवार के साथ रहता है। साल में एक बार आना जरूर होता है। छोटा बेटा सुगंध घर पर अपनी मां और परिवार के साथ रहता है तथा पिता का काम संभालता है। पिता को गुजरे पांच साल हो गए।
बड़ा भाई सपरिवार अपने छोटे भाई की खुशी में शामिल होने व मां, भाई का साथ देने आया था।  
आठ-दस दिन बाद बड़ा बेटा और बड़ी बहू अपने बच्चों के साथ पूणे लौट गए।
इधर सुगंध की पत्नी पुष्पा अपने बेटे को ले घर आ गई थी। 
व्यापार संभालकर सुगंध को जितना टाईम मिलता था वह अपने घर, परिवार व बच्चे को देता था। इस तरह वर्मा परिवार के दिन बीत रहे थे। 
बहू, आज सुगंध का जन्मदिन है खीर बना लेना... ठीक है .... पुष्पा अपनी सास के कहने पर जवाब दी।
शाम को नये पापा जी एक एक्यूरियम ले घर में  प्रवेश किये। रंग-बिरंगी मछलियों वाला बड़ा सा पानी से भरा कांच का एक डब्बा। 
वह खुशी-खुशी लाकर उसे डाइनिंग-रुम में रखा। मां और पत्नी दोनों खुश थे पर आश्चर्य भी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था। ये क्यों.....इस तरह की चीज़ को लाने का कारण समझ से परे था।
सुगंध- मां, सुबह आप कह रही थी मेरा जन्मदिन है । इसलिए मैं अपने जन्मदिन पर छः महीने के नन्हे को ये गिफ्ट लाया हूं। कैसा लगा.....?
पुष्पा अपने बेटे को गोद में ले मछलियों को दिखाने लगी। पहले थोड़ी देर वह उन्हें देखता रहा फिर मां की गोद में आवाज के साथ उछलने लगा। उसे देख सब खुश। हंसता हुआ सुगंध अपनी मां से बोला- नन्हा कितना खुश हो रहा है। देखिए उसे कैसे मछलियों को देख रहा है।
ये आपने अच्छा किया लेकिन देख-रेख कैसे करेंगे?
बीच ही में पुष्पा ने पूछा.....
मां- हां.... और क्या... कंपनी से आदमी आयेगा...।
सुगंध- मैं सब समझ आया। बताता हूं। पहले चैंज कर आता हूं ।
मां- हां, हां, तू जा... ला बहू बेटे को मुझे दे और तू उसके लिए चाय-नाश्ता ले आ।
थोड़ी देर बाद चाय पीते हुए वह अपनी मां और पत्नी को एक्यूरियम के बारे में समझाया फिर बोला- जानती है मां, मैंने एक चीज नोट की है। आजकल करीब हर परिवार में बच्चों को चूप कराने के लिए, खिलाने-पीलाने, बहलाने, शांत करने के लिए उन्हें टीवी या मोबाइल का सहारा लेना पड़ता हैं और लेते भी है। इससे बच्चों के आंखों और दिमाग पर कितना असर पड़ सकता हैं। फिर आदतें भी पड़ जाती है। जो बहुत ही गलत है.... और तो और मैंने आप दोनों को भी ऐसा करते देखा है। इसीलिए मैं यह गिफ्ट ले आया।
अब टीवी, मोबाइल बंद .....है.. ना...नन्हे मियां...
लाड करते हुए पापा अपने बेटे से बोले......।
मां जोर-जोर से हंसने लगी....।
इस पर पति-पत्नी एक-दूसरे को आश्चर्य हो देखने लगे। अचानक मम्मी हंस क्यों रही है....।
मां हंसती हुई बोली- अरी बहू, अपनी जेठानी को पूणे में फोन लगा और कह उसकी सीख काम आई...।हमारा सुगंध पापा जो बन गया। बचपना छोड़ बड़ी-बड़ी, समझदारी की बातें करने लगा है।
अपने बर्थडे पर, बेटे के लिए गिफ्ट.....वो भी ऐसा गिफ्ट......यह सब सुन पुष्पा जरा शर्मा सी गई।
मां थोड़ी रुक, गर्व महसूस करती हुई बोली- तेरी सोच बहुत अच्छी है बेटा...।
फिर तीनों मुस्कराने लगे।
नन्हा अपनी दादी की गोद में बैठा, सब बातों से बेखबर रंगीन मछलियों में खोया था। 
मां एक बार फिर बोली- हमारे जमाने में यह बात नहीं थी पर अब जिंदगी जीने के ढंग बदल गये। 
.... पोते को लाड़ करती हुई बोली- ये रंगीन मछलियां इसे टीवी और मोबाइल से दूर रखेगी। 
पिता के लाएं गिफ्ट बच्चे के काफी काम आया।
पानी में तैरती रंगीन मछलियों को देख वह खुशी-खुशी खा, पी लेता.... अपनी छोटी-छोटी अंगुलियों से इशारे करता, कभी चिख निकाल अपनी खुशी जाहिर करता, कभी उछलता।
इस तरह दिन बीतते गए .....।
आज नन्हा दो साल का हो गया।
 एक्यूरियम के प्रति उसका लगाव और बड़ गया। उसके पापा जब एक्यूरियम को साफ करते या मछलियों को खाना डालते तो वह वहां उनके साथ रहता और तुतली आवाज में सवालों पर सवाल करता रहता। 
सुगंध भी उत्साह के साथ जवाब देने की कोशिश करता।
बच्चे से घर का माहौल रंगीन बना हुआ था और एक्यूरियम रंगीन मछलियों से......।
नन्हा, एक्यूरियम को देख खुश होता और नन्हे को देख घर वाले।
एक दिन डाइनिंग-रुम की कुर्सी में बैठ पुष्पा किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी और सासू मां वहीं थोड़ी दूर बैठे सब्जियां काट रहीं थीं। 
अपनी बात पूरी कर, टेबल पर मोबाइल रख पुष्पा किचन की ओर गई। 
उसका बेटा खेलता हुआ मोबाइल उठा एक्यूरियम के पास गया तथा अपनी एड़ियों के सहारे ऊंचा हो उसमें डाल दिया। और ताली बजा कुदता हुआ
बोलने लगा- मम्मी बात कर ली अब आप  सब बात करो.....वह ताली बजा-बजा कर, ख़ुश हो कहे जा रहा था।
किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था।
वह दादी से चिल्लाते हुए बोला- दादी..... दादी... देखो-देखो वह ओरेंज वाली फिश मम्मी के मोबाइल से बात कर रही है......।
सत्यनाश हो....अरे, तुने ये क्या किया? दादी चिल्लाते हुए बोली...।
इतने में पुष्पा किचन से आई और बोली- क्या हुआ मम्मी जी....?
मम्मी को देख नन्हा फिर से चिल्लाते हुए खुश हो बोलने लगा- मम्मी, मम्मी, आप भी देखो...... अरेंज फिश फोन कर रही है...देखो...।
आय हाय, मेरा मोबाइल पानी में क्यों डाला। मम्मी जी, इसने ये क्या किया? कहती हुई पुष्पा उसकी ओर जाने लगी।
यह देख बेटा, अपने दोनों हाथों को फैला कर एक्यूरियम के सामने गार्ड बन कर खड़ा हो गया और चिल्लाकर कहने लगा- मम्मी नहीं-मम्मी नहीं...
मोबाइल मत लेना। फिश को बात करने दो...वो पापा को चीज लाने को कहेगी। जैसे मैं फोन पर लाने को कहता हूं। पापा इनके लिए भी चीज लाएंगे। देखना..... मम्मी....आप फोन मत लेना।
उसे लगा उसकी मम्मी अपना मोबाइल लेने आ रही है। इसलिए वो इस तरह उन्हें मना करने लगा।
मासूम की मासूमियत को देख दोनों सब भूल एक-दूसरे को देख एक अनजाने खुश के अहसास से मुस्कुराने लगी.......।
शाम को पापा के आने पर जब उन्हें अपने बच्चे की
मासूम हरकत का पता चला तो वे अपने बेटे को गोद में ले खुब प्यार करने लगे। उन्होंने महसूस किया इस उम्र में इसे इन बेजूवानों की फ़िक्र है। आगे मेरा बेटा.....। वे मन ही मन सोचने लगे, हो न हो यह अच्छा इंसान बनेगा.....एक अच्छा इंसान....। उस पर गर्व करने लगे....।
सुगंध अपने सीने में नन्हे को चिपकाए मन ही मन सोचने लगे इसके मासूमियत सोच के आगे 5-7 हजार के फोन का खास गम नहीं।
पापा के दिए गिफ्ट का,आज बेटे ने उन्हें रिटर्न-गिफ्ट दिया जो स्मृति बनकर हमेशा रहेगा। पुत्र के द्वारा दिए गए रिटर्न-गिफ्ट के सहारे पिता आजीवन रोमांचित होते रहेंगे.......।
बाकई, गिफ्ट अनमोल होता है......।

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