कैसा प्यार किया मैंने ........?

कम पढ़ा-लिखा होने के कारण जगदीश एक छोटे से कारखाने में काम करता था। वहां महिला-पुरुष मिलकर काम करते थे। काम करते हुए उसे वहां की एक लड़की से प्यार हो गया। जो कारखाने के कामों में काफी होशियार थी।
उन्हें दिन में अधिक से अधिक साथ रहने का मौका मिलता था। अतः प्यार गहरा होता गया। 
लड़की अक्सर अपने घर से जगदीश के लिए कुछ न कुछ खाने को ले आती थी और मिल बांट कर खाते थे।
लड़की अति साधारण परिवार से थी। तीन बहनें और एक भाई का परिवार था। वह सबों से बड़ी थी। उसके मां-बाप बहुत पहले ही दुनिया छोड़ चले गये। 
उधर जगदीश तीन भाई थे। पर उसकी कोई बहन नहीं थी। उसका परिवार लड़की वालों से इक्कीस था। उसके दोनों बड़े भाई पढ़े-लिखे थे तथा वे सरकारी नौकरी करते थे। इसके भी माता-पिता नहीं थे।
जगदीश के घरवालों को जब लड़की के बारे में पता चला तो घर में अशांति का माहौल बन गया। आये दिन उस लड़की को लेकर घर में तर्क-वितर्क होते रहते थे।
एक दिन तंग आकर जगदीश ने अपना घर छोड़ दिया और कारखाने में रहने की व्यवस्था कर ली। 
वह पिछले 10सालों से कारखाने में काम कर रहा था इसलिए सारा काम अच्छे से सिख गया था।
एक बार उसनेे कारखाने के बाहर लड़की से मिल कर बात की। प्लांनिंग बनाया और अपना खुद का कारखाना खोलने का निश्चय किया। 
उसने लड़की से कहा- हम दोनों मिलकर चलाएंगे और यहां से कोई (कारीगर)जाना चाहे तो उसे भी ले चलेंगे। कारखाना ठीक चल गया तब जल्दी शादी कर लेंगे।
प्यार, अपनापन, उम्मीद, विश्वास, भरोसा इन सबों ने लड़की को जैसे घेर रखा था। परिस्थिति को देखते हुए वह तैयार हो गई।
उसने जगदीश का साथ दिया और अपने घर के पास एक छोटी सी जगह दिलवा दी। 
टीना के शेड से कारखाना शुरू किया गया। दोनों मिलकर सामान तैयार करते दूसरे दिन जगदीश मार्केटिंग कर माल बेच आता। इस तरह कुछ महीने बीते फिर उसने बैंक से कर्ज ले अपने काम को और आगे बढ़ाया।उसका काम जोरों से चलने लगा। अब वह अपने शहर से बाहर दूसरे बड़े-बड़े शहरों में जाकर मार्केटिंग कर सामान बेचने लगा। बाहर भी उसका काम बहुत ही अच्छा चल पड़ा।
आज जगदीश के कारखाने में 10 कारीगर काम करते हैं। इन तीन सालों में उसने टीना के शेड्स को हटाकर पक्का बना लिया तथा पास ही थोड़ी ज़मीन भी खरीद ली। यह जमीन उसने लड़की के नाम खरीदा।
लड़की होशियार थी। अच्छा काम जानती थी। जगदीश के पीछे से पूरे कारखाने को और कारिगरों को संभालती थी। 
जगदीश ने काफी पैसा कमाया। इसका श्रेय उस लड़की को भी जाता है।
उन दोनों के प्यार की उम्र को 14साल हो गये थे। लड़की के भाई ने कहा- अब तू जगदीश से शादी कर ले। तेरी और दो बहनें हैं जिनकी भी शादी करवानी है।
 लड़की ने मौका देख जगदीश से शादी की बात की
 और उसके कुछ दिन बाद उसने एक शाम मंदिर में जाकर लड़की से शादी कर ली।
 जगदीश के घर से कोई नहीं आया पर लड़की वाले  तथा कुछ परिचय लोग उपस्थित थे। भाई ने अपनी बहन की शादी में हैसियत के अनुसार उपहार स्वरुप सामान दिये।
कारखाने में छोटी सी पार्टी रखी गई। 15-20 लोगों को न्यौता दे भोजन करवाया गया। 
शादी सुस्मपूर्ण हुई......।
अब वह लड़की पारुल, कारखाने की मालकिन बन गई। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। 
जगदीश और पारुल की शादी के करीब 7साल बीत गए।
 एक दिन कारखाने के पास के दुकानदार (करानेवाले) चाचा ने पारुल से पूछा- कई दिन हो गए, जगदीश नजर नहीं आ रहा.....?
उसने फट से जबाव दिया- हां, चाचा मार्केटिंग करने दिल्ली गये हैं। 15-20 दिन लग जाएंगे आने में.....क्यों, कोई काम था क्या .... ?
 अपने एक ग्राहक को सामान देते हुए चाचा बोले- यूं ही पूछ रहा हूं। कई दिनों से दिखाई नहीं दिया इसलिए.......।
 ग्राहक, पारुल के पहचान का था इसलिए वह बीच में बोल पड़ा.....मैंने कल शाम ब्रिज के उस पार ब्रजमोहन मंदिर वाले बजार में देखा था उन्हें, शायद सामान खरीद रहे थे। मैं मोटरसाइकिल पर था इसलिए आगे निकल गया। वरना पूछता.....पास का बाजार छोड़ इतनी दूर ......खरिदारी.....?
 पारूल बोली- आपने किसी और को देखा होगा भैया...या उन्हीं की तरह किसी और को। 4-5 दिन हो गए वो तो दिल्ली गए है। 
ग्राहक मन ही मन बोलने लगा, उनको पहचानने में इतनी बड़ी गलती होगी..... पता नहीं.....वह ज्यादा बहस न कर चाचा से सामान खरीद घर चला गया।
दूसरे दिन दोस्ती के नाते पारुल ने कारखाने की एक लड़की से यह बात कहीं। क्योंकि लड़की ब्रजमोहन मंदिर की ओर रहती थी तथा अपनी मालकिन की वफ़ादार भी थी। 
सारी बात सुन वह चौंक गई। फिर थोड़ी देर बाद हंसती हुई मजाक में बोली- दीदी, विश्वास नहीं होता लेकिन जमाना बहुत खराब है.......।
इस पर पारुल का माथा ठनका। लड़की की बात पर उसकी बैचैनी बड़ी.......। किसी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। हर गति धीमी पड़ गई थी। 
दरअसल, जिंदगी में कुछ लोगों की कुछ बातें दिलों-दिमांक को छू जाती है। अनायास ही उनकी बातों पर गौर करने को मन चाहता है। ऐसे में इंसान के मन की दोनों प्रवृत्तियां एक-दूसरे पर हावी होने लगती हैं। दिल और दिमाग आपस में उलझ जाते हैं। आखिर बुराई पर ध्यान ज्यादा केन्द्रीत हो जाता हैै। पारुल के साथ भी ऐसा ही हुआ। 
उसने इसकी चर्चा कुछ और लोगों से भी की......।
दो दिन बाद उसे खबर मिली कि यह बात सही है। जगदीश दिल्ली नहीं गया। बल्कि उस ओर ही रह रहा है। कई सालों से। वैसे वो काम के सिलसिले में बाहर आता जाता रहता है। पर उसका अपना मकान है। औरत और बच्चा भी है।
यह सब सुनकर उसके होश उड़ गए। अपने आसपास उसने खाली-खाली महसूस किया। उसे पूरे ब्रह्मांड में अपने को अकेला पाया। वो अकेली-अकेली बहुत रोई। जी भर के रोई लेकिन उसे अचानक होश आया। अपने आप से कहने लगी..... मैं जगदीश के बारे में ये क्या सोच रही हूं। हमारा सम्पर्क 14 साल का है। हम एक-दूसरे को ठेस नहीं पहुंचा सकते......फिर मैं क्यों रो रही हूं..?
सब झूठ है। ऐसा हो ही नहीं सकता। हम एक-दूसरे को प्यार करते हैं, इतने दिनों से। मैं उसे सच्चा प्यार करती हूं। पारुल ने अपने आप को दिलासा दिया और साथ ही सुनी बात को झूठा साबित करने के लिए वह दूसरे दिन उस कारखाने की लड़की को ले उसी पते पर पहूंची।
दरवाजा खटखटाने पर एक औरत ने दरवाजा खोला। उसे देख आश्चर्यचकित हो पारुल बोली- बेला तुम.....? तुम यहां....?
बेला चूप रहकर अपना सिर निचे झुका ली। इतने में अंदर से दौड़ता हुआ 4-5 साल का एक बच्चा आया और बेला से पूछने लगा- मम्मी... मम्मी, कौन आया है...? पापा पूछ रहे हैं।
इतना कह उन्हें देख बच्चा दौबारा दौड़ता हुआ अंदर चला गया।
पारुल बोली- जगदीश है....? अगर है तो बुलाना। लोग उसके बारे में तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। इसलिए मैं यहां.....वह अपनी बात पूरी नहीं कर पाई कि इतने में बच्चा अपने पापा का हाथ पकड़ता हुआ बाहर ले आया और बोलने लगा- पापा, पापा ये आंटी आई है.....।
पारुल को समझने में देरी नहीं लगी। अनायास ही उसके मुंह से कराहने की लड़खड़ाती एक चीख निकली। उसका दोनों हाथ मुंह तक आ गया और वह वहीं नीचे जमीन पर बैठ गई।
उसके आंखों में आंसू नहीं थे। वह सोचने लगी इतना बड़ा धोखा....? दोनों ने मेरे साथ विश्वासघात किया....? सात सालों से इतनी बड़ी बात छिपाये रखा....? शादी, बच्चा, घर-गृहस्थी सब .....? 19साल की उम्र में मैं जगदीश की जिंदगी में आई थी।अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। प्यार, विश्वास, भरोसा सब खत्म कर दिया और मुझे पता ही नहीं चला.... मैंने ये कैसा प्यार किया?
चारों ओर संन्नाट छाया था। सभी चूप थे। 
थोड़ी देर बाद कारखाने में काम करने वाली उस लड़की ने पारुल को सहारा दे उठाती हुई बोली- आप उठो.....चलो चलते हैं।
वो अपने मालिक और मालकिन के बीच कुछ नहीं बोली पर उसे बहुत दुःख हुआ। वह मन ही मन सोचने लगी आज मैं अगर इनकी जगह होती तो.....? तो शायद मर ही जाती। मालिक ने रिश्ते और विश्वास की हत्या कर दी। अपने मालिक की कभी इज्ज़त नहीं कर पाऊंगी। यह बहुत बुरा आदमी है। 
लड़की, पारुल को सहारा दे घर तक छोड़ गई।
रात भर बिस्तर पर बेसुध पड़ी रही। सुबह कारीगरों के आने पर उसने दरवाजा खोला और फिर चुपचाप अंदर जाकर लेट गई। 
कारीगरों के आने के कुछ देर बाद जगदीश आया। उसने कारीगरों से काम की बातें की, उन्हें कुछ काम समझाया फिर अंदर पारुल के पास गया। थोड़ी देर रुका, उससे दो-चार बातें कही, फिर चला गया। पारुल चुपचाप सब सुनती रही। कुछ नहीं बोली। 
चुप रह कर भी उसनेे जगदीश को बहुत कुछ कह दिया पर वह समझा नहीं। या उसे समझना नहीं चाह। पारुल के आत्मविश्वास को कितनी ठेस पहुंची थी इसकी कल्पना भी जगदीश को नहीं थी।
हाय और आह जिंदगी उजाड़ कर रख देती है। इस बात का अंदाजा नहीं था उसे....। विश्वासघात शब्द से वह अपरिचित था।
शाम को सारे कारीगरों के चले जाने के बाद वह लड़की पारुल के पास अंदर गई। उसने देखा पारुल बिस्तर पर पड़ी है, मानो कितने महीनों से बीमार हो। बिस्तर पर पास बैठ कर वह नम्रता से बोली- आपने सुबह से कुछ खाया-पिया कि नहीं.....? अपने को संभालें...... वरना आपकी तबियत बिगड़ जायेगी......।
इस पर पारुल धीरे से उठी और दीवार का सहारा लिए बैठकर दर्द भरे स्वर में बोली- जानती हो जगदीश क्या कह कर गया....? वह बोला, मैरी क्षमता है दो पत्नियां रखने की इसमें बुरा क्या है...? तुम दोनों को अलग-अलग मकान बनवा दिया है, खर्चे भी अलग-अलग देता हूं और तो और समय भी अलग-अलग देता आया हूं। फिर इसमें तमाशा बनाने की क्या जरूरत है......?
थोड़ी रुक कर फिर बोली- मैंने अपनी जिंदगी में इतना निर्लज्ज, बत्तमिज, और स्वार्थी इंसान इस उम्र में आकर देखा। जगदीश मेरे परिवार से अच्छे घर का लड़का है, पर..... जानती हो पिछले सात सालों में मैं कई गर्भवती हुई पर उसने हर बार बच्चा गिरवा दिया। यह कह कर कि अपनी परिस्थिति और मजबूत हो जाए फिर हम बच्चे के बारे में सोचेंगे। तुम जानती हो मैं अपना घर-परिवार छोड़ निकल आया हूं।
मैं उसकी बात मानती रही....।
एक सिस्की ले बोली-वो जैसा कहता मैं वैसा ही करती। उस पर अंधाविश्वास जो करती थी। 
इतने सालों का साथ, धोखा या इस्तेमाल......समझ नहीं आता.....। मैं क्यों नहीं समझ पाई....? मैंने ये कैसा प्यार किया...?
 पारुल आज पहली बार रुक-रुक कर अपनी सारी बातें उस कारखाने की लड़की को बता रही थी।
 उसने बताया, जिस दिन शाम को उसने मुझसे मंदिर में अपनों के बीच शादी की थी उसी दिन सुबह बेला (मेरी सहेली) से कोर्ट-मैरेज की थी।
इन सात सालों से वह इस बात को छिपाने रखा।
उसे बेटा यानी बच्चा मिल गया था इसलिए मेरा गर्भपात करवाता रहा....।
आज मुझे लग रहा है उसने प्यार नहीं मेरा उपयोग किया है। 
अपने हथेलियों को सिर पर रख बोली- पहले जिस कारखाने में काम करतीं थीं, वहां आने-जाने में बेला से मेरा परिचय हुआ। उसी परिचय से वो मेरी सहेली बन गई थी। बहुत अच्छी सहेली।
हमारे कारखाना खोलने के करीब दो-ढाई साल बाद उसकी जरूरत पर मैंने जगदीश से बातकर
अपने यहां काम पर रखा। पर मुझे पता ही नहीं चला उन दिनों के बारे में....।
 जरा सीधे बैठ कर बोली, काम करते समय उन दिनों बेला मुझसे कहती थी- मर्दों के सिनें में बाल कितने अच्छे लगते हैं न....? मैं समझ नहीं पाई थी कि उसका इशारा जगदीश की तरफ था। उसकी बातों से में मन ही मन खुश होती थी पर शर्माती थी
क्योंकि जगदीश के छाती में घने बाल थे। वो अक्सर मर्दों की उन बातों की तारीफ किया करती थी जो जगदीश में थे। मुझे अच्छा लगता था। मेरे प्यार पर मुझे गर्व महसूस होता था। पर मेरी शर्म मुझे कुछ कहने नहीं देती थी। तब मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि दोनों मुझे.....।
 अपना मन हल्का करने के लिए उसने लड़की से बहुत कुछ कहा। 
इन दिनों पारुल बेजान लाश बन कर जी रही थी। वह पत्थर ही बन गई थी। रोती नहीं थी। उसने अपना अस्तित्व अपने में समेटे लिया था।
अधिकतर चुप और अकेले में रहने लगी थी। अपने को समझाना उसके लिए बड़ा मुश्किल था। वो यही सोचती रहती थी, मैंने ये कैसा प्यार किया...,? 
 ऐसे में साल भर बाद कारखाना बंद हो गया। पारुल को उसके भाई ने संभाला, उसे सहारा दिया पर उसके दिल को समझाने और सहारा देने वाला कोई नहीं था।  
  उधर जगदीश के जीवन में भी अंधेरा छा गया। कमाई बंद हो गई। घर-परिवार चलाना मुश्किल सा हो गया। उसने कहीं होमगार्ड की नौकरी कर ली पर ज्यादा दिन कर न पाया। बीमार पड़ गया। चारों ओर परेशानी ने उसे घेर लिया। बीमारी तथा तंगी में उसकी जिंदगी कैद हो गई। 
 शायद इन्द्रियों के सुख और धोखे के खेल ने उसे और उसके परिवार को ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया जिसकी उसे उम्मीद नहीं थी।
      लगता है उसने पारुल से सच्चा प्यार नहीं किया था। काम के मामले में वो होशियार थी। इसलिए मोह हुआ फिर उसका इस्तेमाल किया, उसे धोखा देता रहा, उसके विश्वास और भोलेपन का फायदा उठाता रहा......बस, और कुछ नहीं......।
 क्या प्यार इसी को कहते है....?

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