अपने पति के मौत के बाद 13बर्षीय इकलौती बेटी को अकेले ही पाला था। आर्थिक परिस्थिति खराब होने पर भी, मां ने उसे 10वीं तक पढ़ाया और फिर 20 बर्ष की उम्र में उसकी शादी करवा दी।
छोटे परिवार का अच्छा कमाऊ लडका मिला था।
शादी के दो साल ठीक-ठाक से बित गये।
ससुराल व अपने मां के बीच बेटी प्रभा ने अच्छा तालमेल बनाए रखा था। इस शादी से दोनों पक्ष खुश थे।
प्रभा के गर्भवती होने पर आखरी दिनों में मां, ससुराल वालों से पुछकर उसे अपने पास ले आई।
डॉक्टर तीन महीनें बाद का समय बताया थे।
मां ने इन तीन महीनें बेटी को खुब जतन से रखा।
ऐसे में काफी संभल कर चलना पड़ता है। अतः मां, बेटी के हर एक चीज का ख्याल रखती थी। समय-समय पर खाना, दवा, आराम, चेकअप आदि समस्त चीजों का ध्यान रखती थी। बेटी ही उनकी सब कुछ थी।
बेटी के बच्चा होगा इसी खुशी में मां फूली न समा रही थी। नानी बनने की खुशी जो थी।
धीरे-धीरे समय बीतता चला गया और तीन महीनें बाद वह दिन आया जब प्रभा को डाक्टर के कहे अनुसार अस्पताल में भर्ती कराया गया। दूसरे दिन आपरेशन से बेटी के घर बेटी आई। प्रभा की गोद भर गई।
पहला बच्चा था अतः बेटी होने पर भी सब खुश थे। प्रभा की मां तथा ससुराल वाले सब खुश थे।
उन्होंने एक-दूसरे को बधाई दी।
किसी को भी बेटा न होने पर कोई ग़म न था। सब खुशी-खुशी आपस में बात कर रहे थे। इतने में एक नर्स आई और प्रभा के पति को डाक्टर साहब ने बुलाया है कह उन्हें अपने साथ ले गई।
डॉक्टर ने उसके पति को अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठा कर कहा- आप जानते ही होंगे आपकी पत्नी को आपरेशन से बेटी हुई है।
जी..... पति मुस्कराते हुए बोले।
बच्ची कुछ समस्या के साथ पैदा हुई है। भीतरी और बाहरी दोनों कुछ-कुछ समस्याएं है। आगे इलाज से सही हो सकती है पर कुछ समस्या रह भी सकती हैं। वैसे घबराने की बात नहीं है। विज्ञान दिन प्रतिदिन उन्नति कर रहा है। हौसला रखियेगा। डॉक्टर साहब ने सहानुभूतिपूर्ण समझाते हुए कहा.... तथा, बाद में मिलते है कह डाक्टर साहब अस्पताल के दूसरे मरीज़ को देखने चले गए।
प्रभा के पति के सिर पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो। वह दुःखी और चिंतित हो धीरे-धीरे अपने परिवार के पास गए।
खुशी परिवार की नजर जब उन पर गई तो सबों के चेहरे पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह दिखाई पड़ा।
सास, अपने बेटे से पूछने लगी- क्या बात है, तेरी तबियत ठीक नहीं लग रही है?
और सभी जानने को उत्सुक थे कि अचानक क्या
हुआ.......
उसके पति ने सबों को सारी बात बताई। बात सुन सबों का चेहरा उतर गया। खुशी गायब हो गई। सब चिंता में पड़ गये। अपने को असहाय महसूस करने लगे।
प्रभा को कुछ दिनों बाद अस्पताल से छुट्टी मिल। उसकी मां उसे अपने साथ अपने घर ले आई।
वह अपनी बच्ची को लेकर अपने मायके रहने चली आई। आपरेशन से बच्चा हुआ था अतः सबों की सहमती से दो-चार महीने यहां रहने चली आई।
दो-चार दिन बाद नानी को, पोती जैसे बोझ लगने लगी।
अपनी बेटी और पोती के भविष्य के बारे में सोचने लगी। दोनों अपनी जिंदगी आगे कैसे गुजरेगी? यही सोच प्रभा की मां ने बच्ची को समय से दूध पिलाना बंद कर दिया। बेटी को भी अपना दूध पिलाने नहीं देती थी। दूध पिलाने का समय और मात्र दोनों कम कर दिया।
बच्ची दिन भर रह -रह कर रोती थी। शायद भूख के मारे.....।
प्रभा से सहा नहीं जाता था। वह कभी बिचलीत हो जाती थी तो कभी क्रोधित हो जाती थी।
उम्र कम थी, फिर पहली बार मां बनी थी इसीलिए उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। आखिर उसकी बेटी इतना क्यों रोती है ? उसे क्या तकलीफ़ है? वह अपनी बच्ची के लिए व्याकुल हो उठती।
एक दिन उसने अपनी मां से इस बारे में बात की।
मां ने अपनी बेटी को ज़िन्दगी की हकीकत के बारे में समझाया। पोती की जिंदगी उसके लिए बोझ है और आगे- आगे तेरी जिंदगी भी इसके साथ बोझ बन कर रह जाएगी। फिर तेरे पिछे इसे कौन संभालेगा? आर्थिक समस्या और शारीरिक समस्या इंसान की जिंदगी को जानवरों से भी बत्तर बना देती है। जिस पर यह आफ़त आती है वहीं जनता है।
मम्मी आप कहना क्या चाहती हो? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा......?
बेटा, इतनी लम्बी जिंदगी तु ऐसी औलाद के साथ कैसे गुजरेगी? हमारे पास इतने पैसे भी नहीं कि हममें से कोई इसका ठीक से इलाज करवा सके। फिर बेटा, डॉक्टर का कहना है वह ठीक भी हो सकती है और नहीं भी।
प्रभा आश्चर्य चकित हो मम्मी की बातों को गौर से सुन रही थी। एकाएक बौखला कर बोली- तो इसे मार डालू?
हां......, क्या तु इसे नरक की जिंदगी देना चाहती है?
मम्मी ........ वह जोर से चिल्लाई ।
थोड़ी देर मां चूप रही। और प्रभा सिसकारी लेने लगी।
तुफान आने से पहले की परिस्थिति जैसा घर का माहौल बन गया। शान्त वातावरण.....
कुछ देर बाद समझाते हुए मां फिर से बोली- बच्ची के रोने से अभी थोड़ी देर पहले तुझे उस पर गुस्सा आया था।.... बेटा, समय के साथ-साथ तुझे उस पर ओर गुस्सा आयेगा। फिर........
बीच में ही प्रभा बोल पड़ी - आप चूप रहो। और मत बोलो।
उस दिन मां चूप हो गई पर अक्सर वह अपनी बेटी को ज़िन्दगी के हकीकत के बारे में समझाती रहती थी। प्रभा कसमकश में थी.....।
मन रुपी पौधे को मां सिंचित रही। दूसरी ओर बच्ची को खुराक कम देती रही।
प्रभा अपने आप से संघर्ष करती रही और उसकी बेटी भूख से। आखिर डेढ़-दो महीने बाद बेटी का संघर्ष समाप्त हुआ। असहाय बच्ची शिथिल पड़ गई।
घर पर पारिवारिक डाक्टर को बुलाया गया। डॉक्टर ने बच्ची को मरा बताया। यह सुन प्रभा के आंसू रुके नहीं वह जोर-जोर से रोने लगी।
डॉक्टर के जाने के बाद अपनी मां से बोली- मैंने उसे मार डाला या बचाया....समझ नहीं आ रहा। मैंने अपराध किया या न्याय.....यह भी समझ नहीं आ रहा। मां, मैं अपने को कैसे समझाऊं? क्या समझाऊं? आप ही की तरह मैं भी एक मां हूं.....वह रोए जा रही थी और बोले जा रही थी।
एकाएक मां,प्रभा को अपनी छाती से लगा रोने लगी।
कुछ देर मां- बेटी एक दूसरे से लिपट कर खुब रोते रहे, फिर रोते- रोते मां बोली- बेटा, पेड़ है तो उसमें फिर फल लगेंगे। कीड़े लगे फल पकने से पहले ही डाल से टूट कर गिर जाते हैं।
प्रभा के सिर को सहलाते हुए वह फिर बोली- तु दुःखी न हो, सब समय पर ठीक हो जाएगा।
मां अपनी बेटी को समझती रही........
दुनिया में ऐसी भी मां होती है......
अपने बच्चे के आगे, उसके लिए सही- गलत, पाप- पुण्य जैसे शब्दों के अर्थ ही बदल जाते हैं। अपने संतान के लिए मरने व मारने में पिछे नहीं होती। उसके आगे उसे कुछ समझ नहीं आता........
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