कंसीडर नहीं किया, मात्र 16मिनट----

हमारे जीवन में क्षण, पल काफी मायने रखते हैं। कहते है, एक ही क्षण में क्या से क्या हो जाता है और एक ही पल में सब कुछ खत्म हो जाता है। यानी समय अत्यधिक बलवान है। वास्तविकता यह है कि वक्त बहुत महत्वपूर्ण होता है।
अगर समय साथ दे तो इंसान कहां से कहां पहुंच जाता है और वक्त साथ न दे तो सब में पानी फिर जाता है।
परिश्रम अपनी जगह है। कोशिशें भी अपनी जगह है परन्तु हर एक के जीवन में समय का अत्यंत महत्व है। जिंदगी में अच्छे और बुरे दिनों के लिए समय की विशेष भूमिका होती है।
संसार में कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने वक्त की फ़िक्र रहती है। अपने समय को महत्व देते है पर उनके लिए दूसरों के समय का कोई मौल नहीं होता।
हाल ही में सुनने में आया है, एक छात्र के लाख निवेदन करने पर भी उसे 16मिनट कंसीडर नहीं किया गया......।
चंद मिनटों ने उसके समस्त मेहनत में पानी फेर दिया। वह समय एक छात्र के लिए भारी पड़ा।
कोरोना महामारी संकट के कारण "नीट परीक्षा" के समय को लगातार बदलने की बात की गई। दूर-दराज के परिक्षार्थियों की ओर से परीक्षा को टालने की मांग की गई। पर सब बेकार, क्योंकि अदालत ने टालने से साफ इंकार कर दिया।
अंततः मेडिकल प्रवेशिका परीक्षा (नीट) रविवार (13-9-2020) को संपन्न हुआ।
हजारों की संख्या में विद्यार्थी शामिल हुए।
परीक्षा को सफल तरीके से संपन्न कराने के लिए छात्रों की सुविधाओं की और विशेष ध्यान रखा गया। कोरोना महामारी संकट में परीक्षा ली जा रही है इसलिए कोरोना को ध्यान में रखते हुए बंदोबस्त किये गये....। सैनिटाइज, सोशल डिस्टेंसिंग, शरीर का तापमान, पृथक कमरे आदि इस तरह की ऐहतियात बरती गई। सरकारों की तरफ से पूरी व्यवस्था की गई। साल व समय को ध्यान में रखते हुए इस संकट काल में नीट की परीक्षा हुई।
शहर, शहर के आसपास या फिर परीक्षा केंद्र के आस पास, इन जगहों के छात्रों को दिक्कतें नहीं हुई और वे समय से पहुंच कर परीक्षा दिये।
लेकिन दूरदराज के विद्यार्थियों ने बहुत खर्च किए, कई परेशानियों का सामना भी किया फिर भी उनमें से कई छात्रों की परीक्षा छूट गई। कारण समय से वे परीक्षा केंद्र नहीं पहुंच पाए।
ऐसा होना ही था। जो परीक्षा टालने के पक्ष में थे वे भी जानते थे और जो पक्ष में नहीं थे वे भी जानते थे।
"नीट परीक्षा" के लिए विद्यार्थियों की सुविधा का ध्यान रखा गया परन्तु दूर-दराज के एक छात्र को मात्र 16मिनट की सुविधा से बंचित रखा गया।
समय, काल, पात्र को ध्यान में रखते हुए कंसीडर करना चाहिए था।
बिहार के दरभंगा के एक छात्र का परीक्षा केंद्र कलकत्ता महानगर के एपीजे स्कूल में पड़ा था।
नियमानुसार मेडिकल प्रवेशिका परीक्षा (नीट) शुरू होने के आधे घंटे (30 मिनट) पहले सभी विद्यार्थियों को परीक्षा केंद्र में पहुंचना पड़ेगा। तभी वे प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन बिहार का वह छात्र तय समय-सीमा के 30मिनट पहले न पहुंच 14मिनट पहले पहुंचा। मात्र 16मिनट का फर्क था तय समय से......पर चंद समय कंसीडर नहीं किया गया। वैसे तमाम बातों का ध्यान रखा गया।
परीक्षा केंद्र पहुंचने के लिए वह छात्र शनिवार सुबह बिहार के दरभंगा से रवाना हुआ ताकि रविवार कलकत्ता पहुंच कर "नीट" की परीक्षा दे सके। लेकिन ट्राफिक जाम के चलते पटना और मुजफ्फरपुर के बीच उसकी बस करीब छः घंटे जाम में फंसी रही। पूरा दिन, पूरी रात वह बस में सफर करता हुआ दूसरे दिन रविवार यानी परीक्षा वाले दिन दोपहर के लगभग एक बजे कलकत्ता पहुंचा।
समय न गवा उसने तुरंत टैक्सी की और परीक्षा केंद्र के गेट पर पहुंचा। 14मिनट पहले पहुंचा और समय  सीमा के 16मिनट बाद......।
इतनी दिक्कतों का सामना करते हुए पहुंचा पर उसे प्रवेश होने नहीं दिया गया।
गेट में खड़े सुरक्षा कर्मियों को और वहां तैनात पुलिसकर्मियों को छात्र ने अपनी आपबीती सुनाई, बिनती की, निवेदन किया परन्तु उसे प्रवेश होने नहीं दिया गया।
हालांकि, वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने उसका साथ दिया, उसके लिए यथा संभव कोशिश भी की। प्रिंसिपल को सारी बात बता कर पुलिस कर्मियों ने उसके लिए रीक्वेस्ट भी किया, पर समय का हवाला दिया गया और समय के आगे उस छात्र को झूकना पड़ा। दुःखी हो उसे वापस लौटना पड़ा।
कोरोना संकट काल में ये कैसी सुविधाओं के साथ नीट की परीक्षा सम्पन्न हुई?
समय, मानसिकता, खर्च, कोरोना का भय आदि किसी बात का ख्याल नहीं रखा गया।
अगर, बिहार के उस छात्र को 16मिनट कंसिडर कर दिया गया होता तो शायद उसके जीवन का यह समय बर्वाद न हुआ होता। जबकि, विद्यार्थियों के समय की बर्वादी को ध्यान में रखते हुए ही कोरोना संकट काल में नीट की परीक्षा ली गई।
दूसरी ओर राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) समय स्थगीत कर दी गई। यह परीक्षा 16 से 25 सितम्बर तक होनी थी जो अब 24 सितम्बर से शुरू होगी।
कारण कुछ विद्यार्थियों को दोनों परीक्षाओं में शामिल होना था तथा बताया जा रहा है कि कुछ अनुरोध भी मिले थे।
हमेशा मजबूरी के उचित समय और उसके अनुरोध का ध्यान देना प्राथमिकता होना चाहिए।
क्योंकि किसी-किसी पर यह बहुत भारी पड़ता है........।
बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि शायद बिहार के दरभंगा के उस छात्र ने कड़ी मेहनत की होगी, खर्च भी किया, मुश्किल सफ़र तय भी किया, जाम में फंसने से घबराहट भी हुई होगी, जल्द से जल्द परीक्षा केंद्र में पहुंचने का सोच हृदय जोर-जोर से धड़का भी होगा, जो स्वाभाविक है। फिर भी इन सबों को ओभरकम कर आखिर 14मिनट पहले केंद्र के गेट पर पहुंच गया। लेकिन समय ने साथ नहीं दिया।
अनुरोध काम नहीं आया।
मात्र 16मिनट कंसीडर नहीं किया गया.......।
जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है........।
हम सब जानते है, समय जीवन की कुंजी है......।
किसे कोसे- समय को, किस्मत को या सिस्टम वालों को.........?
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