कांग्रेस नेता प्रणव मुखर्जी-----

भारत की सबसे पुरानी और सर्वाधिक सम्मानित कांग्रेस पार्टी के अभिन्न हिस्सा रहे प्रणव मुखर्जी (84बर्षीय) के निधन पर देश की तमाम सभ्य जनता की ओर से उन्हें श्रद्धांजलि........।
भारत की शाही कांग्रेस पार्टी के कुशल राजनेता प्रणव मुखर्जी बंगाली परिवार से थे। उनका जन्म पं.बंगाल के बीरभूम जिले में 11दिसंबर ,1935 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम कायदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी था। उनके पिता 1920 से कांग्रेस पार्टी में शामिल थे। वे सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे। ब्रिटिश शासन के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों में थे। जिसके फलस्वरूप उन्हें 10वर्षों
से अधिक जेल की सजा काटनी पड़ी थी। प्रणव मुखर्जी, ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र थे।
उनके पिता की तरह सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से हम आजाद भारत की हवा खा रहे हैं। 
वैसे इन दिनों हवा में प्रादुषण घुल गया है।
प्रणव मुखर्जी ने बीरभूम के सूरी विद्यासागर (जिनकी मुर्ति पिछले साल कलकत्ते में तोड़फोड़ की गई थी) कालेज में शिक्षा ग्रहण की थी तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएट करने के साथ-साथ कानून की डिग्री भी हासिल की थी।
वे एक कालेज प्राध्यापक, एक वकील तथा एक 
पत्रकार भी थे। इसके अलावा बंगीय ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी थे। 
उनके व उनके परिवार का ऐसा ब्रेग्राउड था। वे उच्च जाति और सभ्य परिवार से थे। 
1957में बाईस बर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ था। उनकी पत्नी का नाम शुभ्रा मुखर्जी था। उनके तीन संतानें थी। दो पुत्र और एक पुत्री। 
प्रणव मुखर्जी पढ़ने, बागबानी करने और संगीत सुनने का शौक रखते थे।
उनका राजनीतिक कैरियर 1969में भारत की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी में राज्यसभा के रूप में शुरू हुई। 
साधारणतः बच्चों पर पारिवारिक शिक्षा का असर पड़ता है। जो कि इन पर पड़ा।
प्रणव मुखर्जी पांच दशक से अधिक समय तक अपने सार्वाधिक जीवन में कांग्रेस पार्टी के अभिन्न हिस्सा बने रहे। इस बीच वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारत के विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री और भारत के राष्ट्रपति के पद पर रहे। उन्होंने भारत की राजनीति प्रशासन में अपनी दक्षता और कार्य- कुशलता साबित करते हुए अंतराष्ट्रीय मंच पर भी विशेष स्थान बनाई थी। उच्च पदों पर रहने के बावजूद प्रणव जी सदैव जमीनी स्तर से जुड़े रहे। कांग्रेस पार्टी के प्रति उनकी अटूट निष्ठा थी। वे श्रीमती इंदिरा गांधी जी के करीबी एवं प्रिय पात्र थे। प्रणव दा कांग्रेस के संकटमोचक कहलाते थे। उनकी गिनती पढ़ें-लिखे व साफ छवि वाले नेताओं में रही। जिंदगी भर कांग्रेस पार्टी के नेता बने रहे। 
भारत के प्रथम नागरिक (13वें) प्रणव मुखर्जी ने अपने जीवन का 50बर्षों से अधिक समय कांग्रेस पार्टी को दिये तथा सदैव गांधी परिवार से जुड़े रहे। 
सांस व पति को बलिदान होते देख, बहू सोनिया गांधी जी बिल्कुल टूट ही गयी थी। बाद में जब अपनी अनिच्छा से राजनीति में शामिल होने को तैयार हुई तब प्रणव मुखर्जी उनके प्रमुख सलाहकार में से थे। सांस इंदिरा गांधी के उदाहरणों से, वे बहू को हालातों से निपटने की सलाह दिया करते थे। प्रणव जी कहा करते थे उनकी सांस बुरें हालातों से कैसे निपटा करती थी।
बेहद प्रभावी राजनीतिज्ञ रहे प्रणव मुखर्जी पहले श्रीमती इंदिरा गांधी जी के करीबी रहे बाद में उनकी बहू सोनिया गांधी जी के करीब भी आये।
लम्बे समय तक कांग्रेस नेता रहे प्रणव मुखर्जी को गत 10अगस्त (2020) को सेना के "रिसर्च एंड रेफ्रल हास्पिटल" में भर्ती करवाया गया था। उसी दिन उनके मस्तिष्क की सर्जरी की गई थी। और वही उसी हास्पिटल में भर्ती करवाये जाने के दौरान वे कोरोना संक्रमित पाये गये। सर्जरी के साथ ही उनका कोरोना का भी इलाज चल रहा था। पर रविवार 23अगस्त (2020) को उन्हें "सेप्टिक शाक" आया तो वे कोमा में चले गये। गहरे कोमा में। तथा 31अगस्त (2020) शाम साढ़े चार बजे उनका निधन हो गया। 
सभ्य कांग्रेस पार्टी के सभ्य राजनेता के अंत के साथ एक स्मरणीय एतिहासिक युग का अंत हो गया। 
प्रणव जी के सम्मान में सात दिन के राजकीय शोक  की घोषणा की गई है। उनकी आत्मा के सम्मान में देश भर में 6 सितंबर (2020) तक सात दिन का राजकीय शोक रहेगा।
आजादी के बाद इस तरह के नेता देशवासियों को मिले थे और आज भी देशवासियों को ऐसे ही सभ्य, पढ़े-लिखे, योग्य, दक्ष और कार्य कुशल नेताओं की बहुत जरूरत है। तभी इनके पिता की तरह स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को हम समझेंगे व उन्हें सम्मान कर पायेंगे। छः या सात दिनों का नहीं बल्कि जीवन भर सम्मान कर पायेंगे। उनके तथा उनके परिवारजनों के त्याग और संघर्षों का मान कर पायेंगे। जिन्होंने हमें आजाद देश के आजाद नागरिक होने का हक़ दिलाया.....।
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