विश्वकर्मा पूजा-------

साधारणतः विश्वकर्मा पूजा सितम्बर महीने के 17ताः के आसपास ही होती है। इस दिन कई लोग पतंग भी उड़ाते हैं। भारत के कुछेक क्षेत्रों में ही यह पूजा की जाती है। देश के अधिकांश हिस्सों में भगवान विश्वकर्मा और उनकी महीमा के बारे में लोग अंजान हैं। उनके द्वारा किए गए निर्माण से भली-भांति परिचित हैं परन्तु निर्माणकारक को नहीं जानते।
संसार के समस्त देवी-देवताओं में भगवान विश्वकर्मा का भी स्थान अहम है। 
 सृष्टि में जीवों के रचयिता ब्रह्ममा जी है और निर्जीव अर्थात जड़ के जनक भगवान विश्वकर्मा जी है।
विश्व यानि दुनिया और कर्मा यानि काम करने वाला। दुनिया भर में लोग आज जो काम (कलाकारी) कर रहे हैं वह इनकी ही कृपा से कर रहे हैं। 
मनुष्य का एक विशाल वर्ग, भगवान विश्वकर्मा जी की कृपा से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। 
पौराणिक काल में जिस तरह उन्होंने अपने शिल्प ज्ञान से जड़ का निर्माण किया था ठीक उसी तरह 
उनकी कृपा से मनुष्य भी अपने शिल्प ज्ञान से आए दिन नये-नये जड़ का निर्माण कर अपना जीवन निर्वाह कर रहा हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं का आनंद ले रहा हैं। 
मानव समाज का जो वर्ग कारखाने और औजारों के माध्यम से निर्माण कार्य से जुड़ा हैं वे विश्वकर्मा पूजा करते हैं। हालांकि कुछ क्षेत्रों में ही ऐसा हैं.....।
भगवान विश्वकर्मा को मानने और जानने वाले, इस दिन कारखाने, दुकान या अपने कार्य स्थल की साफ-सफाई, रंगाई-पुताई कर, भगवान विश्वकर्मा जी की मूर्ति ला कर, पंडित बुलवाकर वाकायदा मंत्र उच्चारण के साथ पूजा करते हैं। अपने कामों में लगने वाले औंजारों की भी पूजा करते हैं। इस दिन औजारों का प्रयोग नहीं करते और बड़ी धूमधाम से विश्वकर्मा पूजा करते हैं। 
निर्माण कार्य से जुड़े लोगों का मानना हैं,इस दिन (17सितम्बर ) विश्वकर्मा की पूजा कर अगले पूरे वर्ष अपने निर्माण कार्य से जुड़े रहेंगे। जिससे उनके व्यापार, आय, नये-नये निर्माण आदि कार्य की उन्नति होगी। व्यापार फलेगा-फूलेगा। जिससे जीवन निर्वाह सुख से होता रहेगा।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा को वे लोग शुभ मानते हैं। इसलिए इस दिन बड़ी धूमधाम से यह पूजा हर साल करते हैं। 
चूंकि, भगवान विश्वकर्मा जी ने पौराणिक काल में अपने शिल्प ज्ञान से अद्भुत-अद्भुत जड़ का निर्माण किया था इसलिए उनका दूसरा नाम शिल्पदेव भी है। अतः भगवान विश्वकर्मा जी शिल्पदेव के नाम से भी जानें जाते है। 
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार विश्वकर्मा, भगवान ब्रह्ममा के वंशज मानते जाते है।
इन्हें वास्तुशास्त्र और तकनीकी का जनक भी माना जाता है।
पौराणिक मतानुसार विश्वकर्मा ने अनेक देवी- देवताओं के लिए अनेकों निर्माण किये हैं- कृष्ण की द्वारिका नगरी, पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर, इन्द्र का वज्र, सोने की लंका, हनुमानजी का गदा, 
कुबेर का पुष्पक विमान, सीता जी के स्वंयवर का धनुष, महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन ने जिस रथ का प्रयोग किया था वह रथ, तथा पौराणिक काल के अस्त्र-शस्र आदि का निर्माण शिल्पदेव ने ही किया था। इसके अलावा उन्होंने विष्णु चक्र और शिव त्रिशूल का निर्माण किया था। अनेक देवी- देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया था। 
देवी-देवताओं और असूरों के साथ ही साथ नर-नारी सभी इनके प्रति कृतज्ञ हैं।
इसी कारण शिल्पकला और मशिनों से जुड़े लोग इनकी पूजा करते हैं। 
इनके सम्मान व कृतज्ञता में पूजा वाले दिन काम बंद रखते हैं। 
17सितम्बर यानी विश्वकर्मा पूजा वाले दिन इनकी पूजा किए बिना अपने आने वाले दिनों को शुभकारी नहीं मानते। 
निर्माण जगत से जुड़े लोग अपना जीवन निर्वाह इन्हीं की कृपा से करते हैं अतः इस दिन इनकी पूजा कर ही आने वाले कर्म जीवन को शुभ और सुस्मपूर्ण मानते हैं। वे इस पूजा को खास महत्व देते हैं। 
मालिक, मजदूर, वर्कर सभी भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा-अर्चना कर कर्म क्षेत्र में नये-नये निर्माण की प्रार्थना करते हैं।
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