कीस

मेरी ही तरह ऐसे बहुत लोग हैं जो "कीस" के बारे में नहीं जानते होंगे। खास कर निर्धन परिवार के लोग। 
"कीस" के बारे में मैंने एक पत्रिका में पढ़ा। जिसे सबों के साथ सांझा करने का सोचा.....।
कई बार ऐसा होता है कि हमें पेपर पढ़ने का समय नहीं मिल पाता या उसमें की खास खबर छूट जाती हैं। जो बहुत काम की व महत्वपूर्ण होती है। 
      टीवी या कहीं कोई आर्टीकल फोलो नहीं कर पाते। समय तथा आदत न होने के कारण भी ऐसा  होता है। परन्तु कोई खास या विशेष जानकारी हमारे नोलेज में हो तो, उसके मध्य दूसरों की मदद कर सकते हैं।
       जैसे कि एम्स अस्पताल के एक डॉक्टर साहब ने किया......।
 इसलिए "कीस" की बात, एक वास्तविक उदाहरण के साथ सामने है.....। ताकि हम भी किसी की मदद करने की सोच सके।
वैसे मानसिकता काफी महत्वपूर्ण है।
    "कीस"- यह एक शिक्षा प्रतिष्ठान का नाम है। शिक्षा केन्द्र भी कह सकते है। जो उड़ीसा में है। "कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज" पूरा नाम है....। संक्षिप्त में "कीस".....।
     भारत के उड़ीसा में "कीस", स्कूल सह एक विश्वविद्यालय है। इसे एक तरह से बोर्डिंग स्कूल समझ सकते है। 
यहां निर्धन परिवार के युवाओं को निःशुल्क आवास, भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध कराई जाती हैं।
खास तौर पर आदिवासी बच्चों को।
     वर्तमान में कई हजार आदिवासी छात्रों को "कीस" यह सुविधा दे रही हैै। उनकी शिक्षा में किसी तरह से बांधा न आए, उन्हें विषमताओं का सामना न करना पड़े इसलिए छात्र जीवन के हर ज़रूरतों को प्रदान करती है।
 "कीस" शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों को सशक्त बनाता हैं। ताकि वे भी भारत में सर्वोच्च श्रेणियों का अधिकारी प्राप्त कर सकें और अपनी जिम्मेदारी भी निभा सके....।
 विगत कुछ दिनों की बात है, एम्स अस्पताल में डॉक्टरों की विशेष टीमों के द्वारा जुड़े जुड़वां बच्चों को अलग किया गया था। सफलता भी मिली। जो चर्चा का विषय बना था जिसे करीब-करीब हम सभी जानते हैं। 
     ऑपरेशन से अलग होने के बाद जुड़वां बच्चों के स्वास्थ्य की गंभीरता और जीवन को बचाने के प्रयास में उनके माता-पिता उनसे दो बड़े बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते थे। वे जुड़वां बच्चों को बचाने की कोशिश में लगे रहते। 
माता- पिता के ध्यान न देने के कारण दोनों बड़े बच्चें अपने को असहाय और उपेक्षित महसूस करने लगे। एक तो माता-पिता से दूर, दूसरी ओर भूखे...... उनके शिक्षा और स्वास्थ्य की बात अकल्पनीय थी.....।
 सारी समस्या निर्धनता से जुड़ी थी।
 जुड़वां बच्चों के माता-पिता को उनके पास अस्पताल में रहना पड़ता था और बड़े बच्चों को अपने गांव घर पर अकेले..... ।
 ऐसी परिस्थिति में एम्स अस्पताल के एक डॉक्टर,
 अस्पताल में उनसे मिलने आए।
 सौ प्रतिशत सच है, एक अच्छा डॉक्टर भगवान् तुल्य होते है। उन्हें भगवान माना जाता है। वे अपने मरीजों की शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक पीड़ा को भी समझते हैं। अगर कोई डाक्टर अपने मरीज़ से सहानुभूति पूर्ण बात करें तो मरीज की आधी बीमारी दूर हो जाती हैं और बाकी दवा से.....।
 विश्वास नहीं होता कि एम्स अस्पताल के डॉक्टर साहब ने अपने मरीज़ (जुड़वां बच्चे) के शारीरिक मानसिक परिस्थिति को ही नहीं समझा बल्कि उनके पारिवारिक परिस्थिति को समझते हुए उनसे उस बारे में बात की....।
 जुड़वां बच्चों के माता-पिता से बात कर उन्होंने महसूस किया कि ये उनके दो बड़े बच्चों का ध्यान नहीं रख पा रहे हैं। 
बच्चे जीवन के हर अधिकार से वंचित हो रहे हैं। भोजन, प्यार, अपनापन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि से उनका जीवन और बचपन उपेक्षित हो रहा हैं।
आजकल कौन किसके बारे में इतना सोचता है पर, डाक्टर साहब ने सोचा। सिर्फ सोचा ही नहीं, उनके पास उनके साथ खड़े भी हुऐ।
डाक्टर साहब के मुताबिक-शिक्षा, एक बच्चे की तीसरी आंख है। और शिक्षा के साथ उसे प्यार और अपनापन मिलें तो उसका भविष्य बन सकता है। 
उन्होंने बच्चों के माता-पिता से बात कर उनके दो बड़े बच्चों को "कीस" में दाखिला करवाया.....।
वहां वे बच्चे बहुत खुश हैं तथा अच्छा महसूस कर रहे हैं।
डाक्टर साहब ने माता-पिता से कहा- "कीस" में आपके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। उनका बचपन वंचित नहीं होगा। उचित शिक्षा, प्यार, माहौल तथा वो सब कुछ मिलेगा जिससे वे अपने को असहाय महसूस नहीं करेंगे।
अपना जीवन जीने का अधिकार सबों को है और ऐसे बच्चों को "कीस" वह अधीकार प्रदान करता है।
एम्स अस्पताल के डॉक्टर साहब को उड़ीसा के "कीस" की जानकारी थी, अतः उन्होंने बच्चों की मदद कर उनकी अच्छी व्यवस्था करवा दी।
इसी तरह हमें भी अगर कोई हेल्फफूल क्षेत्र की नालेज रहे तो हो सकता है, जीवन के किसी मोड़ पर किसी वंचित व असहाय की ओर मदद का हाथ बढ़ा सके।
          निःस्वार्थ, किसी की सहायता करना अच्छे इंसान का सोशल व मौरल कर्त्तव्य है.......।
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