उत्पीड़न--------

राधे-राधे---राधे-राधे---राधे-राधे-----।
किसी ने बेल बजाई.... कौन आया होगा...?
अपने आप से पूछती हुई, हाथ के अखबार को सोफे पर एकतरफ रख कर मैं दरवाजे की ओर गई।
दरवाजा खोला तो सामने बगल वाली आभा जी खड़ी थी। मुस्करातती हुए मैं बोली- आईए.... अंदर आईए।
मुस्कुराती व संकोच करती हुई वो अंदर आई।
दरवाजा बंद कर सोफे की तरफ इशारा करते हुए मैंने बैठने को कहा। उनके बैठने पर मैं बोली-एक मिनट मैं अभी आई।
अंदर से पानी का गिलास लाकर उनके सामने टी-टेबल पर रखते हुए उन्हें पानी पीने को कहा।
गिलास रखते हुए मेरी नज़र वहीं पर रखी एक मिठाई पैकेट पर पड़ी। जिसे शायद उन्होंने रखा था।
गिलास उठाती हुई आभा जी बोली- मैं हर पूर्णिमा को सत्यनारायण जी की पूजा करती हूं। छोटे रुप में....ये वही प्रसाद है।
अच्छा... अच्छा...थेंक्यू। सोफे पर बैठती हुई मैंने कहा। फिर थोड़ी देर में पूछा- यहां आएं आप लोगों को डेढ़-दो महिने हो गये। कहिए कैसा लग रहा है? नई जगह कोई परेशानी तो नहीं हो रही...?
भाभी जी, नयी जगह शुरू-शुरू में थोड़ी बहुत परेशानी तो होती हैं पर धीरे- धीरे सब एडजेस्ट हो जाता हैं। वैसे मुझे परेशानी से ज्यादा खुशी है। अपना खरीदा फ्लेट जो है।
सही बात है.....। मैंने कहा।
इस बात पर हम दोनों हंसे....।
वो मेरे से बोली-आप क्या कर रही थी? मैंने आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया....?
नहीं.... नहीं.... मैं अखबार पढ़ रही थी। आजकल लड़कियों की कितनी दूरदशा हैं। ससुराल में उत्पीड़न का शिकार होते हुए एक विवाहिता ने ज़हर पी लिया। अब वह जिंदगी और मौत से लड़ रही है। उनकी पांच साल की बेटी भी है। आधे ससुराल वाले भाग गए। बाकी गिरफ्तार हुए हैं। अखबार खोलते ही ऐसी-ऐसी खबरें पढ़ने में आतीं हैं कि बैठे बिठाए दिमाग ख़राब हो जाता है।
लड़कियों पर ज़ुल्म और अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। चाहे वो पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़......जॉब करने वाली महिलाओं के साथ भी ज्यादती हो रही हैं। 
आभा जी- सही में बहुत दुःख होता है। उत्पीड़न चाहे किसी के साथ ही क्यों न हो... बहुत ग़लत है.....। वैसे लड़कों के साथ भी काफी अत्यचार होते हैं।जिसका हमें पता नहीं चलता।
बात जब चली है तो मैं कहना चाहूंगी, आज की लड़कियां, लड़कों के साथ कदम पर कदम मिलाकर चल रही हैं। दो पहिए, चार पहिए चला रही हैं। ट्रेन, हवाईजहाज चला रहीं हैं और तो और सुना है, लड़ाकू विमान भी चलाने का....। लड़कों के बराबर चलने वाली लड़कियां उत्पीड़न के मामले में भी समान भूमिका निभा रही हैं।
लड़के और उनके घर वाले लड़कियों के साथ जुल्म कर रहे हैं। दूसरी ओर कई लड़कियां भी पीहर वालों के साथ मिलकर लड़कों का उत्पीड़न करती हैं। वो भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। 
फर्क सिर्फ इतना है कि लड़कियों की बात सामने आती हैं। कितने लड़के हैं जिनपर मानसिक जुल्म ढाया जाता हैं जिनकी हमें कोई जानकारी नहीं।
        मैं बड़े ध्यान से उनकी बातों को सुन रही थी। मुझे भी लग रहा था कहीं न कहीं उसकी बातों में दम है। हम लड़कियां दुःख का इजहार आंसू बहा कर करते हैं लेकिन पुरुषों को ऐसा नहीं देखा। इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें कोई शिकायत नहीं। 
अचानक वह बोली- क्या मैं कुछ ज्यादा बोल गई?
    ऐसा नहीं पर महिलाओं पर अत्याचार के आंकड़े कुछ ज्यादा ही हैं। लड़कियों के हक़ में कानून बना है फिर भी....। मेने अपनी बात पूरी नहीं की, इतने में आभा जी बोल पड़ी।
    भाभी जी, मैं आपको अपने घर की बताती हूं।हम तीन बहनों में एक भाई है। सबों में भाई छोटा है। वह पढ़ा-लिखा सरकारी अफ़सर है। 
उसकी शादी क्या हुई वह कैदी बन गया। जब वह पहली बार पिता बना तब से आज तक गुलामी की जिंदगी जी रहा है। मेरे भाई को अपने ही घर-परिवार, रिश्ते-नातों से अलग कर रखा है। ऐसा नहीं की उसकी बीवी पढ़ी लिखी नहीं है। पर न जाने क्यों उसे  लगता है पति सिर्फ उसका है। उसका अपना। उस पर एक मात्र उसका ही अधिकार है।
अपने पति को उसकी समाजिक जिम्मेदारी निभाने नहीं देती। वो एक मात्र बेटा है। अपनी बुढ़ी मां को नहीं देखेगा? बहनों के आना-जाना तो उसका बंद ही हो गया।
मेरे पिताजी, भाई की शादी से पहले ही खत्म हो चुके थे। 75वर्षीय मां है जो पेंशन होल्डर है। फिर भी बच्चा होने के बाद नया फ्लेट खरीदकर अपने पीहर के नजदीक पहुंच गई।
मैंने पूछा, और आपकी मां....?
चौबीस घंटे के लिए एक काम वाली बाई लगा गई।
मेरे भाई की हिम्मत नहीं कि कुछ कहे....। रोना-धोना, चिखना-चिल्लाना, अपने घर फोन करना, पड़ोसियों को इकट्ठा करना......इस तरह के कारनामे करतीं है।
बेइज्जती के डर से मेरा भाई चुप रहता है।
उसे बच्चें, पैसे और पीहर से मतलब है। हां, ऑफिस से कभी आने में देरी हो जाती है तो वकीलों की तरह सवालों पर सवाल करती है। मां से मिलने गए थे या बहनों से....?
रोज सुबह उठकर मेरे भाई को चाय बनानी पड़ती है। घर का सामान लाना पड़ता है फिर ऑफिस जाता है। और जब शाम को घर आता है तो, बीवी टीवी या बच्चों में लगी रहती है। कभी कभार मन किया तब चाय, पानी का पूछ लेती है।
मुझे आभा जी की बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। इसलिए मैंने कहा- आप तीनों बहनें अपने अपने हस्वेड के साथ जाकर उनसे या उनके पीहर वालों से बात क्यों नहीं करते.....?क्या बजह है ऐसा करने का....?
भाभी जी, मुझे तो लगता है ससुराल के प्रति एक नेगेटिव सोच लेकर ही उसने शादी की थी। 
और आप बात करने की कह रही है ....कई बार कोशिश की गई। लेकिन जब-जब हमने ऐसा किया तब-तब मेरे भाई पर ज्यादा दबाव पड़ा। उसे मानसिक तनाव दिया गया। 
सुसाइड की धमकी देती है। 
वह डर जाता है।
भाई हमसे कहता है, मेरी मौत के साथ ही मेरी समस्या खत्म होगी। आप लोगों को कुछ कहने, बोलने की जरूरत नहीं। फिर कभी मजाक में कहता है- शायद पिछले जन्म में मैंने अपनी पत्नी को सताया होगा......।
यह मजाक नहीं उसके अंदर की पीड़ा बोलती है।
जानती है भाभी जी, पिछले साल मेरी मम्मी खत्म हो गई। तब उसने सत्कार कार्य निष्ठा और नियमों के अनुसार भाई को साथ लेकर किया। दान-दक्षिणा, भजन-कीर्तन, बाल-भोजन आदि सारे काम सुसंयोजित तरीके से संपन्न किये। देखने और सुनने वाला विश्वास ही नहीं कर सकता कि मेरा भाई इसके उत्पीड़न का शिकार है। हालांकि काफी रिशतेदार इस बात से परिचित हैं।
मम्मी के जाने के बाद मेरा भाई बिल्कुल शांत हो गया है। पहले थोड़ा बहुत बोलता था फिर चुप हो जाता लेकिन अब शांत सा हो गया है। उसके सामने कभी कभार हम बहनों से फोन पर बात कर लेता है, बस।
मेरे भाई की तरह कितने हैं जो पत्नी पीड़ित हैं, पत्नी के उत्पीड़न का शिकार हैं.....।
थोड़ी देर वो चुप रही और मैं भी...। मुझे यह बातें हज़म नहीं हो रही थी। और वो बैठे-बैठे अपने हाथों की अंगुलियों की गांठों को धीरे-धीरे फोड़ रही थी।
उन्हें देख लग रहा था कि वो बहुत टेंशन में आ गई है। मैंने उनसे पूछा- चाय पीयेगी....? चाय बनाऊ...
मेरी बात का जवाब दिये बगैर कहने लगी- शरीफ़ और पढ़ा-लिखा इंसान अपनी बेइज्जती से डरता हैं। मेरे भाई के साथ ऐसा ही हुआ।
राधे-राधे....राधे-राधे... राधे-राधे..... ।
एक मिनट आभा जी किसी ने बेल बजाई। कोई आया है....। मेरे दरवाजे खोलने पर एक बच्चे ने कहा-आंटी जी, मम्मी है...?
हां, बेटा .... कहती हुई वह खुद ही उठकर दरवाजे की तरफ आई।
बच्चा- मम्मी, आपको पापा बुला रहे है।
हां... हां... चलो बेटा। बहुत देर हो गई। 
मुस्कुराती हुई आभा जी बोली- मैं भी न, अपने भाई को लेकर बैठ गई। पता नहीं आप क्या सोच रही होगी....? अच्छा चलती हूं। आईयेगा हमारे....।
मैंने भी मुस्कुराते हुए सिर हिलाकर हां कहा। और उनके जाने के बाद दरवाजा बंद कर सोफे पर बैठ बंद घरों में हो रहे पुरुष उत्पीड़न के बारे में सोचने लगी। यह संभव है....?
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