छोटे भाई की पत्नी--------

इन दिनों यूपी का हाथरस गांव अपनी कुकृत के लिए काफी प्रसिद्ध हो रखा है। अखबार, टीवी, रेडियो, मीडिया हर जगह हाथरस बेटी की
दर्दनाक घटना की चर्चा है। चर्चा यह भी है कि वहां के और प्रसाशनों के लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
वैसे छोटी-मोटी जगहों पर छोटी सोच वालों को, छोटी जाति के लोगों पर हावी होने का हक है। 
आज हमारा देश शिक्षित तथा आधुनिक कहलाता हैं। पर हाथरस की घटना ने अच्छे-अच्छे उच्च शिक्षित व उच्च स्तरीय कुछ लोगों को शुन्य में ले जाकर खड़ा कर दिया।
मोबाइल पर अंगुली फेरती हुई यह सब देख, सोच रही थी कि कमरे की खिड़की से पड़ोसी भाभी ने
आवाज लगाई....यामि....यामि....हो क्या....!
हां, भाभी आई.... कहती हुई मैंने दरवाजा खोला।
मम्मी है...?
नहीं.! मम्मी, चाचा जी के गई है। कोई काम था क्या? मुझे बताइए....।
मुझे 500₹ पकड़ती हुई बोली- मम्मी को दे देना।उस दिन ले गई थी। मेरे पास खुल्ले नहीं थे।
ठीक है। आइए, बैठीए। चाय बना लाऊ....?
हां, चल बना लें। थोड़ी सी बनाना।
मैं किचन में जाने लगी कि उन्होंने पूछा- क्या कर रही थी......।
मोबाइल पर बीजी थी भाभी! न्यूज देख रही थी।आकर बताती हूं....।
हाथरस...! उनके मुंह से सुने इस नाम ने मुझे जाते से रोका।
हां, कितना गलत हुआ। मेरा तो खुन खौलता है....।
इतना कह मैं चाय बनाने चली गई।
थोड़ी देर बाद आकर मैंने, भाभी को चाय और नमकीन दिया। और मैंने भी लिया।
चाय पीती हुई भाभी बोली- हाथरस मेरा ससुराल है!
चौंक कर मैंने कहा -क्या!आपका ससुराल है? कैसी जगह है भाभी..... आप वहां रहीं है कभी....? कैसा गांव है वह.... वहां के लोग कैसे हैं....मैं सवालों पर सवाल किए जा रही थी। और भाभी चुपचाप चाय पीए जा रही थी। फिर थोड़ी देर में अपनी चुप्पी तोड़ती हुई बोली- वहां से जुड़ी एक घटना याद आ रही है....।
भाभी आपके साथ भी ऐसा कुछ... मेरी बातों को काटती हुई वो बोली- नहीं, नहीं तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ नहीं पर...पर क्या...? घबड़ा कर पूछा मैंने....।
मेरी जब शादी हुई थी तब मेरे सास-ससुर गुजर चुके थे। हाथरस में मेरे, दो सगे जेठ-जेठानी रहते हैं। और ससुराल की ओर के अनेक रिश्तेदार भी रहते हैं। इसलिए शुरू-शुरु में हर साल मेरा वहां आना-जाना रहता था।
शादी के दो- तीन साल, बाद की बात है। एक बार मेरे छोटे जेठ जी अपनी पन्द्रह साल की बड़ी बेटी को अपने साथ हमारे यहां शहर घुमाने ले आये। वे लोग करीब बीस-पच्चीस दिन हमारे यहां ठहरे थे।
उस बीच एक दिन हम चारों मेरे चचेरी सास के मिलने गए। उनका परिवार अपने ही शहर में रहता हैं।
उनके घर जाने के लिए पहले लोकल- ट्रेन फिर रिक्शे से जाया जाता है।
एक दिन हम वहां गये। रात का खाना खाकर घर लौटने के लिए स्टेशन तक पहुंचने।
लोकल- ट्रेन की टिकट काटने उसके चाचा गए। वे टिकट की लाईन में जाकर खड़े हो गए और हम तीनों प्लेटफार्म के एक तरफ।
थोड़ी देर बाद मेरे जेठजी की तबीयत बिगड़ने लगी। वे अचानक से कांपने लगे, उन्हें पसीना आने लगा, बैचैनी सी होने लगी.....यह देख मैं और उनकी बेटी दोनों घबरा गये.....ये क्या हुआ इन्हें?
उनकी बेटी मोना, घबराते हुए बोली- पापा! क्या हुआ.... तबियत खराब लग रही है..... पानी पियेंगे....इस बीच मैंने कहा- बगल वाली बैंच में भाईसाहब को बैठाओ। और मैं चाय के स्टोल से पानी लाने गई। 
पानी से भरा जग पकड़ाते हुए मैंने कहा- पापा को पानी पिला दो।
पानी पिलाने के बाद मोना का रुमाल लेकर उसे गिला किया और कहा- पापा के मुंह, सिर,गले व गर्दन में लगा दो। 
इतने में वे बैंच पर लेट गए। यह देख दो-चार आदमी वहां इकट्ठे हो गए।
एक ने कहा- उनके जूते-मौजे उतार दो और पैरों में भी पानी लगाओ। शायद गर्मी चढ़ गई है।
उनके साथ-साथ औरों ने भी यही सलाह दी....।
यह सुन मोना अपने पापा के जूझ उतारने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाई। लेकिन भाईसाहब ने जूते समेत अपना पैर हिलाकर ना कहा.....।
उसने अपने पापा की ओर देखा तथा फिर जूते उतारने के लिए हाथ आगे को किया। फिर भाईसाहब ने जूते समेत अपना पैर हिलाया।
दो-एक बार ऐसा करने पर मैंने मोना को हटाया और खुद उनके जूते उतारने को अपना हाथ आगे बढ़ाया। 
मुझे लगा वे घर के बाहर जूते उतारना नहीं चाहते। उन्हें नंगे पैर पसंद नहीं.....। इसलिए मैं मोना को हटाते हुए जबरन आगे बढ़ी...... क्योंकि मेरा मानना है, पहले जान फिर कायदे- कानून......।
परन्तु, इस बार उन्होंने अपना पैर नहीं हिलाया। जूते उतारने को मना नहीं किया।
मैंने उनके दोनों जूते उतारे। फिर मौजे उतारकर मोना को पकड़ाया। मेरे हाथ में पानी डालने को कहा तथा जेठ के पैरों और तलवें में पानी लगाकर हल्के-हल्के हाथों से मलिस किया।
जब मैं जूते उतारने लगी थी, तब अनायास ही मेरी नज़र वहां खड़े एक आदमी पर पड़ी थी। मैंने देखा वह व्यांगतमक तरीके से मुस्कराया था। उस वक्त मुझे आधी-अधूरी बात समझ आईं थीं। पर बाद में व्यांगत्मक मुस्कुराने कारण.....
खैर, उसके थोड़े ही देर में उसके चाचा टिकट लेकर आ गये।
अपने बड़े भाई को ऐसी हालत में देख वे भी घबरा गये। और पूछा- भाईसाहब को क्या हुआ है.....?
उन्होंने मुझे हाथों के इशारे से रुकने तथा हटने को कहा।
मोना से पानी मांगकर मैंने अपने हाथ धोये और जग वापस कर आईं।
वे धीरे-धीरे उठ कर बैठे। इतने में दूर से आवाज और रोशनी के साथ ट्रेन उसी प्लेटफार्म की लाईन में आने लगी जिस प्लेटफार्म पर हम थे।
इन्होंने, भाईसाहब से पूछा, चढ़ने सकेंगे? खास भीड़ नहीं है।
उन्होंने हां कहा। इतने में ट्रेन आकर रुकी। 
हम चारों चढ़े ही थे कि ट्रेन चल दी...... क्योंकि लोकल- ट्रेनें ज्यादा देर रुकती नहीं हैं.....।
उनकी यह घटना, मुझे गहरे सोच की खाई में ले गई। मैं सोच में डूबी थी कि अचानक कानों में अवाज आई...यामी! कुछ समझी...?
गहरी और लम्बी सांस लेकर मैंने कहा- ये कैसी सोच है.....इतनी तबियत खराब होने के बावजूद उन्होंने फर्क किया....?
भाभी बोली- मैं भी किसी की बेटी हूं.... वैसे छोटे भाई की पत्नी भी बेटी समान होती है। 
कई परिवार के नियमों में ऐसा हैं कि बेटी से पैर नहीं छूआते, ससुर और जेठ को छूते नहीं है......पर भाभी ऐसी हालत में ऐसे नियमों का पालन.... मैं उत्तेजित हो बोल पड़ी।
जो समझ तुमको है, वह समझ उन्हें नहीं। दरअसल, माहौल का फर्क है.....भाभी ने कहा..।
     तभी तो हाथरस कांड की चपेट में और महिलाएं भी आई, पर वहां किसी को कोई फर्क नहीं। बल्कि तरह-तरह की सफाई देने में लगे हैं..... मैं तुरंत बोली....।
इतना सुन वो धीरे-धीरे उठी और बोली- बहुत देर हो गई, चलती हूं.... किसी से कहना मत , हाथरस मेरा ससुराल है.....बड़े शर्म की बात है......।
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