सातों वारों की, सोमवार व्रत कथा----

जैसा कि हम जानते हैं सोमवार के व्रत में शिव-पार्वती जी का पूजन करना चाहिए।
सोमवार के व्रत तीन प्रकार के होते हैं- साधारण, सौम्य और सोलह सोमवार व्रत......।
साधारण शिव-पार्वती पूजन के पश्चात यह कथा सुननी चाहिए। जो इस प्रकार है----
           एक बहुत धनवान साहूकार था। उसके कोई पुत्र संतान नहीं था। इस चिंता में वह डूबा रहता था। 
  पुत्र संतान की कामना में वह प्रति सोमवार शिव जी का व्रत और पूजन किया करता था। तथा सांयकाल मन्दिर जाकर दीया जलाया करता था।
  साहूकार के भक्तिभाव को देख, एक दिन पार्वती जी ने शिवजी से कहा- आपका यह भक्त सदैव आपका व्रत व पूजन बड़ी श्रद्धा और भक्ति से किया करता है। आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।
  इस पर शिवजी बोले-यह संसार कर्म-क्षेत्र है। संसार में जो जैसा करता है वह वैसा ही फल भोगता है।
 पार्वती जी बोली- आप तो सदैव भक्तों पर दया करते हैं। उनके दुखों को दूर करते हैं। अतः इसके दुःख को भी आप दूर करें। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपका व्रत-पूजन क्यों करेगा?
 पार्वती जी के आग्रह को देखते हुए शिवजी बोले- इसके भाग्य में पुत्र नहीं है फिर भी मैं इसे पुत्र प्राप्ति का वर देता हूं। परन्तु वह केवल बारह वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
शिव-पार्वतीजी की यह सारी बातें साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न प्रसंन्नता हुई और न ही दुःख हुआ। पर आगे भी वह पहले जैसा व्रत और पूजन करता रहा।
कुछ दिनों पश्चात् साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई।और दसवें महीने में उसने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। घर में सबों ने खुशी मनाई लेकिन साहूकार ने पुत्र के बारह वर्ष की आयु को ध्यान में रखते हुए अधिक प्रसंन्नता प्रकट नहीं की। न ही यह भेद किसी को बताया।
जब वह ग्यारह वर्ष का हो गया तो उसकी माता ने उसके विवाह की बात की। परन्तु साहूकार ने कहा-
मैं आभी इसे पढ़ने काशीजी भेजूंगा। विवाह नहीं करुंगा। 
उसने अपने पुत्र के मामा को बुलाकर बहुत सा धन दिया और कहा- तुम मेरे पुत्र को काशीजी ले जाओ और रास्ते में जिस जगह से भी जाओ यज्ञ करते हुए तथा ब्राह्मणों को भोजन करवाते हुए जाना।
मामा अपने भांजे को लेकर चल दिए और वैसा ही किया जैसा साहूकार ने करने को कहा था।
काशीजी जाते हुए रास्ते में उनको एक शहर पड़ा। उस शहर में राजा की कन्या का विवाह हो रहा था। दूसरे राजा के लड़के के साथ। पर लड़का एक आंख से कानां था। उसके पिता को बड़ी चिंता हो रही थी। कहीं वर को देख कन्या वाले विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न करें। यही चिंता कर रहे थे कि उन्होंने साहूकार के बेटे को देखा। जो अति सुन्दर था।
वर के पिता ने अपने मन में विचार किया कि क्यों न ढुकाव के समय इस लड़के से वर का काम ले लिया जाये....! ऐसा विचार कर उसने, लड़के व उनके मामा से बात की। दोनों राजी हो गए। 
साहूकार के बेटे को स्नान करवा, वर के कपड़े पहनवा और घोड़ी चढ़ाकर ढुकाव पर ले गये और बड़ी सरलता से सब कार्य हो गये।
फिर वर के पिता ने सोचा विवाह कार्य भी इसी लड़के से करवा लिया जाय तो क्या बुराई है.....?
वर के पिता ने मामा-भांजे को बहुत सा धन दिया और उनसे, फेरे व कन्यादान का कार्य पूरा करवा लिया। सारा विवाह कार्य बहुत अच्छे से पूरा हो गया।
परन्तु जिस समय साहूकार का बेटा वहां से जाने लगा तो उसने वधू की चुन्दरी के पल्ले पर लिख दिया कि, तेरा विवाह तो मेरे साथ है लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे रह तो एक आंख से कानां है। मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूं।

वधू ने जब अपनी चुन्दरी पर ऐसा लिखा देखा तो उसने राजकुमार के साथ जाने से इन्कार कर दिया।
उसनेे कहा- मेरा पति ये नहीं है। वो तो काशी जी पढ़ने गया है।
इधर वधू की विदाई नहीं हुई और उधर साहूकार के बेटे ने काशी जी जाकर पढ़ना आरम्भ कर दिया।
लड़के की आयु बारह वर्ष हो गयी।
एक दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था। साहूकार के बेटे ने अपने मामा से कहा- मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही। इस पर मामा ने उसे अंदर जाकर सोने को कहा। अन्दर जाकर सोने के कुछ समय बाद उसके प्राण निकल गये। 
जल्दी-जल्दी यज्ञ कार्य पूरा कर मामा रोना-पीटना शुरू कर दिये।
संयोगवश उसी समय वहां से शिव-पार्वती जी जा रहें थे। रोने-पीटने की आवाज वे वहां गये। पार्वती जी ने शिवजी से कहा- यह लड़का आपके भक्त साहूकार का बेटा है। जो आपके वरदान से हुआ था। 
शिवजी बोले- इसकी आयु इतनी ही थी, हो इसे वह भोग चुका है।
पार्वती जी बोली- कृप्या, इसे और आयु दो। नहीं तो इसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।
पार्वतीजी के बार-बार आग्रह करने से शिव जी ने बालक को जीवन दान दिया। इसके बाद दोनों कैलाश पर्वत की ओर चले गए। 
वह लड़का अपने मामा के साथ यज्ञ करते हुए वापस अपने घर की ओर चल दिया।
रास्ते में वे उसी शहर में आये। और वहां यज्ञ शुरु
किया तो वहां के राजा (श्वसुर)ने उसे पहचान लिया। और महल में ले जाकर खातिरदारी की। 
इसके बाद धन और चार दासियों के साथ अपनी बेटी को उनके साथ विदा किया।
अपने शहर के निकट पहुंचने पर मामा ने भांजे से कहा- पहले तुम्हारे घर खबर कर आता हूं।
इधर साहूकार और उनकी पत्नी छत पर बैठे थे। उन्होंने यह प्रण कर लिया था कि यदि पुत्र सकुशल घर आया तो राजी-खुशी निचे उतर आएंगे, नहीं तो छत से कूद कर अपने प्राण दे देंगे। इतने में मामा आकर समाचार दिये......आपका पुत्र अपने स्त्री और बहुत सा धन साथ लेकर आया है।
यह समाचार सुन माता- पिता के खुशी का ठिकाना न रहा। और वे बड़े आनन्द के साथ उनका स्वागत किये तथा प्रसन्नता के साथ रहने लगे।
इस प्रकार जो भी मनुष्य सोमवार को भक्तिभाव से
शिव-पार्वती जी का व्रत और पूजन कर इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसके दुःख दूर होते हैं तथा मनोकामना पूर्ण होती हैं।
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