आखरी खत--------

राघवजी, यह मेरा आखरी खत है।
पिछले छः महिनों में मैंने आपको चार-पांच खत लिखे। पर एक का भी जबाव नहीं दिया।
शुरू के महीनों में मैंने सोचा, शायद काम का बोझ कुछ ज्यादा होगा या तबियत ढ़ीली चल रही होगी! हमारी उम्र जो हो गई हैं। लेकिन अब न जाने क्यों लग रहा है आप मुझसे दूर हो गये हो और सिर्फ ख़त का रिश्ता भी अपने खत्म कर दिया।
पिछले 42सालों से हम एक-दूसरे से ख़त के जरिए जुड़े हैं। पहले कागज और कलम का सहारा लेते थे। बाद में अब मोबाइल का......।
आप अपने गांव से हमारे शहर आए थे नौकरी करने। अपने रिश्तेदार के ठहरें थे पर वहां रहने में दिक्कत हो रही थी इसलिए हमारे मकान के पल्ले मकान में किराए का एक कमरा लेकर रह रहे थे।
एक शाम हम पहली बार मिले....।
जब मैं गुनगुनाती हुई (मोरा गोरा अंग लई ले....मोहे श्याम रंग दई दे....ल ल ला लला हूं ह....) छत से कपड़े उतारने गई थी। अपने धुन में मगन हो गाती-गुनगुनाती छत की रस्सी से कपड़े उतारने लगी थी कि अचानक मेरी नज़र आप पर पड़ी।
सामने वाली छत पर खड़े हो सिगरेट पी रहे थे और मेरी ओर देख रहे थे।
कपड़ों के पिछे से मैंने भी आपको देखा था। मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था.... मेरी आवाज रुक गई थी। जैसे-तैसे कपड़े ले निचे उतर गई।
दोनों के दिल में हौले से किसी ने आहट की थी। बाद में पता चला एक-दूसरे के दिलों में प्रवेश करने की, वह आहट थी।
इसके बाद अक्सर तुम छत पर पतंग उड़ाने के बहाने से आया करते थे। अपने मकान मालिक के बच्चों को साथ लेकर। और जोर जोर से चिल्लाकर पतंग उड़ाने का आनंद लिया करते थे। एक बार छत पर चली आओ,यह सुचित करने के लिए ऐसा करते थे। जो तुमने मुझे बाद में बताया था। 
मुझे देखना चाहते थे और मैं भी बहाने से छत की ओर खिंची चली जाती थी। पतंग की डोर और मेरे मन की डोर, दोनों आपके हाथों में हुआ करती थी। 
आसमान में पतंग उड़ती थी और धरती पर मैं.....।
उस वक्त आपकी उम्र 20-21वर्ष और मेरी19-20 थी। 
इंसान, वक्त के हाथों की कठपुतली है। लेकिन बाद में पता चला इंसान की जिंदगी में उम्र का एक  ऐसा पड़ाव भी आता है, तब भी वह कठपुतली बन कर रह जाता हैं और उसी के इशारे पर चलता है। ऐसा ही कुछ हाल हमारा हुआ था।
आप उस मकान में आठ महिने थे। इन आठ महिनों में शायद ही हम आठ बार मिल पाए हों लेकिन पत्थर तथा ईंटों के टुकड़ों पर लपेटे खत आठ सौ बार एक-दूसरे तक पहुंचा था।
दोनों को ही खत, लिखने व पढ़ने की लत लग गई थी। 
खत और आंखों ने हमें एक-दूसरे से जोड़ रखा था। कुछ बातें आंखें वया करती थी और कुछ खत। हम बहुत खुश रहते थे। दोनों के स्वास्थ पर भी चाहत का असर, अच्छा पड़ा था।
मेरा नाम सरला था। लेकिन आप मुझे हर खत में हमेशा सरल कहा करते थे। जो मुझे अच्छा लगता था....।
लेकिन एक दिन आपके एक खत ने मुझे मायुस कर दिया।
आप ने लिखा था- सरल, इस नौकरी में मुझे कोई उन्नति नहीं दिखता। इसीलिए नौकरी छोड़ घर जा रहा हूं। विजनेस करुंगा या दूसरी नौकरी ढूंढगा....। तुम मुझे भूलना नहीं। मैंने अपने दोस्त से तुम्हारा पता ले लिया है और अपना दे दिया है। पर मैं अपने दोस्त के जरिए तुम्हें खत भेजूंगा और तुम भी उसके जरिए भेजना।
और फिर तुम चले गए.....।
पतंग, आवाज, उमंग, आंखें, चेहरे सब कहीं गायब हो गए....।
आठ महीनों ने मुझे बदल कर रख दिया। 
न स्पर्श, न शादी का वादा, न घर बसाने का सपना और न ही भविष्य की बात......बस एक-दूसरे को चाहा था। उस वक्त समझ नहीं थी कि जिंदगी में शादी ज़रुरी है। 
आपके दोस्त के जरिए खतों का आदान-प्रदान चलता रहा है। आपने नौकरी न कर अपना व्यापार शुरू किया।
अचानक अपने छः महीने अपनी सरल को ख़त नहीं लिखा। अभिमानस्वरुप मैंने भी नहीं लिखा।
फिर एक दिन आपका दोस्त एक खत पकड़ा गया।
इस खत ने मुझे चकनाचूर कर दिया। और तब जाकर मुझे पहली बार शादी के महत्व का अहसास हुआ। चाहत की चाह के लिए शादी बहुत जरूरी है। इस बारे में मैं बिल्कुल नासमझ थी।
मेरी उम्र और जिंदगी ने मुझे आपके अलावा और किसी को सोचने का मौका ही नहीं दिया।
खत में अपने लिखा था- सरल, चाह कर भी मैं कुछ बोल न सका। मैं हिम्मत नहीं जुटा पाया। मेरी जिंदगी लूट रही थी और मैं ख़ामोश, लाचार हो सब कुछ देखें जा रहा था। उम्र एक संख्या है और शादी सामाजिक रीति। पर मैं अपनी सरल को इस जीवन में भूल नहीं पाऊंगा। 
और आपकी शादी किसी और से हो गई.....।
 शादी के बाद मैंने आपसे वादा लिया, आप गलती से भी कभी मेरे सामने नहीं आयेंगे। मुझे कमजोर नहीं बनाएंगे। अपने स्वच्छ चाह और सरल को बदनाम नहीं करेंगे। कुछ सामाजिक नियमों को लांघने से रिश्तों के अर्थ बदल जाते हैं। उनके मायने बदल जाते हैं। 
आपने मुझे वचन दिया था और कहा था- सरल! एक ही पल में इतनी बड़ी और समझदार कैसे हो गई....? साथ ही कहा था, "खत" को वादोंं और कसमों से दूर ही रखना।
आपने मेरी बात रखी और मैंने आपकी.....। आदान-प्रदान में धूंध आ गई थी पर गहराई, न जाने क्यों भरी नहीं थी। पहले जैसी ही थी। 
मैंने अपना ध्यान पढ़ाई फिर नौकरी में लगा दिया।
राघवजी के बाद जिंदगी ने कभी किसी को महसूस ही नहीं किया। पापा पहले ही चल बसे थे। बाद में मम्मी। कुछ साल मौसी के रही फिर लेडिस वर्किग होस्टल में....।
मेरी जिंदगी नौकरी, होस्टल, खत और यादों के इर्द-गिर्द घूमती रही।
आपने खत में बताया था आठ साल बाद आपको एक बेटा हुआ है और उसका चेहरा देख जीवन में जरा सकून मिला। पर सालभर में ही आपके भाई ने अपनी पसंद की लड़की से तथा सबों की सहमति से शादी कर ली। आपके अफसोस का ठिकाना न रहा। हर खत अफसोस भरा होता था। 
सरल, भाई की तरह मुझमें हिम्मत क्यों नहीं थी....? मैं क्यों नहीं बोल पाया...?
बेटे की खुशी और न बोल पाने के अफसोस के कशमकश से आप गुजरने लगे। आप में उम्र के साथ समझदारी नहीं आई। लाख समझाने पर भी अफसोस से उभर नहीं पा रहे थे।
15साल पहले अपने एक मोबाइल भिजवाया था। मेरे वादे को याद दिलाते हुए इसे न लौटने को कहा। 
मैंने आपका पहला भेंट स्वीकार किया था। 
कागज और कलम को छोड़ उसी से हम खत लिखकर काम चलाने लगे।
लेकिन अब आप को क्या हो गया....? लेडिस वर्किग होस्टल की लांन में बैठे-बैठे,  नई- पुरानी यादों में डूबी थी कि अचानक उनकी दी हुई मोबाइल की घंटी बजी।
चश्मा लगाकर नम्बर देखा तो, उनका था। एक सैकैंड के लिए मैं सोच में पड़ गयी! छः महीने से कोई खत नहीं, खबर नहीं अचानक से फोन?
अभिमान स्वरुप मैंने फोन उठाया और हलौ कहा...
उल्टी तरफ से किसी महिला ने, शालिनता से कहा- आप सरला जी बोल रही है...?
जरा चौंकते हुए ही मैंने कहा- जी,हां...आप कौन ?
मैं करुणा... राघवजी की विधवा....आप फोन काट न देना....। एकाएक मेरे मुख से रुंधन के साथ "क्या"...? शब्द निकला।
सरला जी, छः-सात महिने पहले मेरे बेटे ने लव-मैरिज की। उसके कुछ दिन बाद अचानक उन्हें स्टोक हुआ और वे चल बसे। पहले भाई ने अपनी मर्जी से शादी की फिर बेटे ने...पर वे अपने मन की घर-परिवार में किसी को कुछ बोल नहीं पाये। जिसका अफसोस उन्हें जिंदगी भर पीछा करता रहा और इस बार वो सह नहीं पाए। आपके बारे में उन्होंने मुझे बहुत कुछ बतलाया था। जानने के बाद, मैंने आपको गलत नहीं समझा बल्की मेरे मन में आपके लिए सम्मान बना रहा। आपने अपनी जिंदगी रोक ली पर मेरी जिंदगी चलते रहने दी। सिर्फ मैं ही नहीं हम दोनों आपकी बहुत इज्जत करते हैं।
जिंदगी में उन्होंने मुझे कभी शिकायत का मौका नहीं दिया पर वो आपको ही....सिर्फ आपको..... अपनी पूरी जिंदगी सच्चे दिल से चाहते रहे। उन्हें आप ग़लत न समझना।
उनके जाने के बाद मैं ऐसी हालत में नहीं थी... वरना यह समाचार आप तक पहुंचाती। पर अब अपने को कुछ संभाल पाई हूं इसलिए फोन मिलाया। हलो... हेलो... सरला जी, आप मुझे सुन रहीं है....।
हलो...बहनजी, सरला जी बेहोश पड़ी है। मैं बाद में बात करती हूं। अभी उन्हें डॉ दिखाना है....।
दूसरे दिन करुणा जी ने फिर से सरला जी को फोन मिलाया... होस्टल की तरफ से उन्हें बताया गया- सरला जी अब हमारे बीच नहीं रही। कल शाम फोन पर बात करते हुऐ ही अचानक उन्हें 
"हार्ट- एटक" आ गया था....सोरी.....।
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