मेरा कसूर क्या है..?---------

बेटा डोली, तेरी फ्रेंड का फोन आया है। बात कर ले। शायद तुने अपना मोबाइल बंद रखा है। चैक कर लेना....चल जल्दी आ मेरे में किया है।

अरे हां, चार्ज पर लगाते वक्त साइलेंट मोड पर किया था....मम्मी की ओर आती हुई बोली और फोन एटेंडें किया... ।
हेलो... हेलो... हां, डोली, मैं परी बोल रही हूं.....हां, बोल....शाम को फ्रि है क्या?... हां, क्यों बोल.... मेरे साथ "नर्सिंग-होम" चलेगी.... क्यों (चौंक कर) क्या हुआ...? भाभी को बेटा....अरे, हां हां चलूंगी। बड़ी खुशी की बात है।
दोनों ने खुशी-खुशी एक-दूसरे से बात की और अपनी मम्मी से पूछ, डोली शाम को गली के नुक्कड़ में उससे मिलने गई। 

करीब तीन घंटे बाद डोली घर आईं। मां ने दरवाजा खोला। उसे देख पूछी- क्या बात है... तेरा मुंह लटका क्यों है? गई थी खुशी खुशी। आई है तो तेरा चेहरा उतरा क्यों है? परी के वहां सब ठीक है ना?
 हां, ठीक है..... फिर परी से कुछ कहा- सुनी हो गई क्या? ..... नहीं, बेमन से डोली इतना कह अपने कमरे में चली गई। थोड़ी देर कुर्सी पर बैठी कुछ सोचने लगी फिर कपड़े चैंज कर बिस्तर पर औंधी लेट सिसकने लगी। उधर उसकी मम्मी बेटी पर ज्यादा ध्यान न दे किचन के काम में बिजी हो गई।

भीतर ही भीतर डोली का हृदय अपने चाचा के लिए लहूलुहान होये जा रहा था। चाचा जी की हालत पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। उसने जो देखा, आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी लेकिन वह बहुत आहत और दुःखी थी।

दुनिया में कुछ लोग विशेष गुणों के साथ पैदा होते हैं। जो "गोड-गिफ्ट" के रूप में उन्हें मिलता है।                  
         डोली उनमें से एक थी। उसके सोच-विचार तराजू समान होते थे। इसी वजह से वह घर-बाहर सबों की लाडली थी।

सतरह (17) साल की डोली एक होनहार और सुलझी लड़की थी। पढ़ाई में हमेशा अब्वल रही।

शिक्षा इंसान में प्रकाश फैलाता हैं। उसमें चेतना का भाव उत्पन्न करता हैं। और यही चेतना इंसान को इंसान होने का अहसास दिलाता हैं।वो भी इन सबों से जुड़ी थी। पढ़ाई के दौरान रिश्तों की इज्जत करना उसने जाना था। उसने अपने शिक्षक-शिकक्षिकाओं से जाना था एक विद्यार्थी के कर्तव्यों को-परिवार, समाज और देश के प्रति क्या होते हैं। इसलिए शायद वह भावुक हो दुःखी हो रही थी।

उसे पता ही नहीं चला कब रात के दस बज गए। डोली को खाने पर बुलाया जा रहा था। डाइनिंग टेबल पर पापा, मम्मी और उसका 12बर्षीय छोटा भाई पप्पू इंतजार कर रहे थे। उसे खाने के लिए आवाज लगा रहे थे। कई आवाज लगाने के बाद उसने लेटे-लेटे ही कहा - मुझे भूख नहीं है....आप सब का ले....।

पापा ने उसकी आवाज में फर्क महसूस किया, और उसकी मम्मी से पूछे- क्या बात है डोली की तबियत ठीक नहीं है?
मम्मी- नहीं, बिल्कुल ठीक है। शाम को फ्रेंड के साथ बाहर गई थी। नर्सिंग होम। खुशी-खुशी गई थी।
 उसके पापा ने चिंता जताते हुए कहा- फिर क्या हुआ....? इतने में उसका भाई बोला, मैं दीदी को बुला लाता हूं। 
और अपनी दीदी को बुलाने गया। भाई के आने पर डोली ने जरा रुखेपन से कहा- मुझे डिस्टर्ब न कर। जा जाकर खाना खा ले। मुझे भूख नहीं। 

लौट कर वह बोला, दीदी शायद गुस्से में है।
इस बार उसके पापा ने जोर की आवाज लगाई....
डोली, डोली बेटा चलो आओ, खाना खा लो। 
पापा के इस तरह बुलाने पर वह उठी। दोनों हाथों से अपने चेहरे को पोछती हुई धीरे-धीर कमरे से बाहर आई। डाइनिंग टेबल तक आने के बीच वह जरा लड़खड़ा गई।
काफी देर से बिस्तर पर उदास हो औंधी लेटी थी। भावनाओं ने उसके दिलो-दिमाग पर कब्जा कर लिया था। इसलिए शरीर निढाल सा हो जाने से डोली जरा लड़खड़ा गई थी। लेकिन टेबूल के पास खड़े भाई ने जाकर उसे सहारा दिया और गिरने से बचा लिया। 

अपने भाई को पकड़ते हुए वह बोली- क्या, आगे भी तुम मुझे इस तरह सहारा देगा...जब बड़ा हो जाएगा तब भी मेरा इसी तरह ध्यान रखेगा...या तब तेरी सोच बदल जायेगी और मुझे भूल जायेंगा.?अब की सारी बातें भूला देगा...?
यह सुन मम्मी बोली- पागल हो गई है क्या ? एक तो उसने पकड़ा ऊपर से उसे सुना रही है। जो मन में आए बोली चली जा रही है। 
बेटी की बातें सुन थोड़ी देर के लिए पापा अपने बचपन के दिनों में चले गये। लेकिन अपने को संभालते हुए उन्होंने बेटी को स्नेह पूर्वक अपनी पास वाली कुर्सी पर बैठने को कहा। 
पापा के कहने पर उसने वैसा ही किया।

 सिर में हाथ फैराते हुए उससे पूछा- क्या हुआ है? तु किसी से नाराज़ हैं? 
वह सिर झूका कर दुःखी मन से चूपचाप बैठी रही।  वे फिर बोले, किसी ने तेरे से कुछ कहा?....वे शांत और धैर्य से अपनी बेटी की परेशानी को उससे पूछ रहे थे। उसे देख पापा समझ गये थे कोई परेशानी उसे परेशान कर रही है। 

कहते है मां, बेटे को ज्यादा चाहती है और पिता की लाडली बेटियां होती हैं। और फिर जब बच्चे बड़े हो जाएं तब उनसे एक दोस्त बनकर बात करनी चाहिए। डोली के पापा ऐसा ही कर रहे थे।

कई बार पूछने पर बुझी-बुझी आवाज में बोली, आगे जब मैं और बड़ी हो जाऊंगी तब कभी मुझे आप लोगों की जरुरत पड़ी तो क्या मुझे सहायता.... बीच में ही उसके पापा बोले पड़े, अरे बेटा तू ऐसा क्यों सोच रही है? हम है न, फिर हमारे पिछे तेरा लाडला भाई जो है। 
बेटी का मुड़ (mood)सही करने के लिए वे मज़ाक में पूछे- इसका उल्टा, अगर भविष्य में तेरी शादी के बाद हमें या तेरे भाई पप्पू को तेरी जरुरत पड़ी तब..?
संकोच करती हुई बोली- अपनी हैसियत के मुताबिक मैं हमेशा आप लोगों का साथ निभाउंगी।

शाबाश बेटा। अपने अपनों के काम आते हैं। एक -दूसरे का सहारा बनते हैं। सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ निभाते। इसी का नाम परिवार है। ऐसे ही परिवार चलता है.... तु इन बातों की चिंता न कर। अचानक ये सब क्यों सोच रही है?               
         मेरी बेटी तो होशियारी है। बहुत समझदार है। अब खाना खा ले। बड़े लाड़ से पापा ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा...।

पापा, आप जो कह रहे हैं अगर वो सच है तो आज... इतना कह वह चूप हो गई। उसका गला भर्रा गया।
मम्मी बोली-क्या? आज क्या... बात पूरी कर...।
पापा समझाते हुए फिर से बोले, बेटा मैं जो भी कह रहा हूं वास्तव है। घर-परिवार में ऐसा ही होता हैं....।
चलो, चलो खाना खा लो। फ़ालतू बातों को लेकर बैठ गई.... उसकी मम्मी ने जरा रुखेपन से कहा और सबों को खाना परोसने लगी गई।

थोड़ी चूप होकर फिर हिम्मत से अपने पापा से बोली- परिवार वाले अगर एक-दूसरे का साथ निभाते हैं तो आपने क्यों नहीं निभाया..?

मतलब....? तिलमिलाती हुई उसकी मम्मी बोली।

पापा, आज मैंने देखा नर्सिंग होम के सामने चाचा जी टोकरी में अमरूद बेच रहे थे। वे लोगों को अमरुद बेचने में वीजी थे इसलिए उन्होंने मुझे नहीं देखा पर मेरी नजर उनपर गई... डोली ने एकाएक अपने पापा का हाथ पकड़ा और बोली, मुझे जहां एक ओर शर्म आई वहीं दूसरी ओर इतना दुःख हुआ कि मैं आपको बता नहीं पाऊंगी पापा।
चाचाजी आपसे करीब आठ-दस साल के छोटे हैं। वे एक मात्र आपके भाई है। एक समय था जब आप दोनों भाई, मेरी और पप्पू की तरह एक साथ बचपन बिताये थे। एक ही परिवार में रहकर फिर आज आप उनके पास, उनके साथ क्यों नहीं है....?
आप अच्छी नौकरी करते हैं पापा.... चाचा जी को आपने हेल्प क्यों नहीं किया.... क्यों दादी और चाचा जी को छोड़ अलग हो गए...? आपको अपने छोटे भाई की आर्थिक मदद करनी चाहिए थी, पापा...।
डोली के पापा, कड़वे सच को बर्दाश्त कर रहे थे। उन्हें महसूस हो रहा था, आज मेरी बेटी मुझे बोल नहीं रही, जैसे मेरे गालों पर थप्पड़ मार रही हैं।

चूप रह। छोटी है छोटी ही रह। बड़ी-बडी़ बातें कर रही है। अपने पापा को सवाल पर सवाल किए जा रही है। खबरदार जो बड़ों की बातों में आईं तो...। जानती समझती है नहीं, बोले चली जा रही है।

 तेरे पापा क्या कर लेंगे? दुनिया में सब अपनी-अपनी किस्मत लेकर आता है.... घर से निकलने के बाद तेरे पापा ने उन्हें हेल्प करना चाहा था पर नहीं, दिमाग सातवें आसमान पर जो था। आदमी जैसा करता है वैसा ही फल पाता हैं। 

12 साल का पप्पू चूपचाप खड़े अपनी मम्मी को सुन रहा था और पापा व दीदी को देख रहा था।

थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसकी मम्मी फिर बोली,  तेरी दादी के खत्म होने पर हमने उन्हें बुलाया था साथ रहने को, पर नहीं जनाब नहीं आयें.... मैं यही ठीक हूं। आप लोगों के वहां मैं अपने आप को मेहमान महसूस करुंगा....न कभी कमाया, न काम धन्दा‌ किया, और न ही शादी-व्याह किया। यूं ही जिंदगी गुजार दिया।अब अमरुद बेच रहे है जनाब....। भाभी बुरी है....। बहुत बुरी....।

साधना, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ रहा हूं। अब चूप हो जाओ। जिंदगी भर अपने मन का करती रही, अपने मन का बोलती रही....अब शांत हो जाओ। बच्चे बड़े हो रहे हैं उनकी भावनाओं को समझो। तुम्हें न तब समझ थी और न अब है। जिंदगी भर एक ही रह गई जरा भी नहीं बदली। 
बीच में डोली, अपनी मम्मी से बोली- आप इतना कुछ बोल रही हो मम्मी, पर इज्जत नाम की कुछ चीज होती है। पहले छोड़ दिया बाद में बुलाने लगे। ऐसा नहीं होता। कम से कम कुछ लोगों में आत्मसम्मान होता हैं। बड़े शांत शब्दों में उसने कहा।

सिखो..सिखो... इससे सिखो....। पापा के ऐसा कहने पर डोली ने पापा को समझाते हुए कहा- आप बड़े थे, कमाऊं थे, आपको जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी। लेकिन आपने ऐसा नहीं किया पापा...।

उसके पापा उठ खड़े हुए और अंत्हग्लानी से कहने लगे- "मेरा कसूर क्या है..?" 
मैं तो चक्की के दो पाटों के बीच पिस कर रह गया। शादी के बाद मेरा बजुद ही मिट गया। 
अब कुछ नहीं हो सकता.... इतना कह बिना खाए दुःखी हो अंदर कमरे में चले गए। 

डोली भी अपने पापा के पिछे-पिछे गई और बिस्तर पर लेट पापा के पास जाकर बैठ गई।
पापा के सिरहाने बैठ बोली- पप्पू मेरा भाई है। उसके साथ कुछ ग़लत हुआ तो मुझे बुरा लगेगा। वैसे ही चाचा जी भी आपके छोटे भाई है। आपको भी उनके लिए बुरा लगना चाहिए। आप उनको ऐसे अकेले, वे सहारा न छोड़ें। दूर से ही सही लेकिन उनके लिए कुछ करना चाहिए। 
फ्रूट बिजनेस खराब नहीं पर उस तरह, ठीक नहीं लगता पापा.... वहीं नर्सिंग होम के आसपास कोई दुकान की व्यवस्था करवा दिजिए....जरा सोचिए...।
बेटी की भावनाओं की कद्र करते हुए उन्होंने उसे वचन दिया। मैं अपने भाई के लिए कुछ करता हूं।अब मैं किसी की बातों में नहीं उलझूगा.....।

उसके पापा मन-ही-मन कहने लगे, सही में बच्चों का सहारा हिम्मत दिलाता हैं। क्लेश के डर से आजतक मैं जो कदम नहीं उठा सकता आज मेरी बेटी ने वो कर दिखाया। मुझे हिम्मत दिलाई......। शुक्रिया प्रभू , ऐसी भावना हर बहन, बेटी और बहूओं में हो......।

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