क्वीर-------

ईश्वर की रचना में मानव समाज का तीसरा समुदाय (थर्ड जेंडर) अपने आप को लांछित व वहिस्कृत महसूस करता हैं। 
यातना भरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। 
न जाने क्यों, ईश्वर ने ऐसी सृष्टि की हैं।
जी हां, यहां बात "क्वीर" वर्ग की हैं........।

शहरों के लोकल ट्रेनों, सड़कों, ट्राफिक, शुभकार्य क्रमों आदि जगहों में इन्हें देखा जाता हैं अपनी जीविका चलाने हेतु उपार्जन करते हुए। 

इन्हें देखा जाता हैं, कभी हाथ फैलाकर, तो कभी नाच-गाने कर, दुआओं के बल पर अपनी मांग रखते हुए। मानव समाज का हर वर्ग बिना प्रतिवाद के इन्हें आगे से दे देते हैं। कारण, ऐसी धारणा है कि इनकी दुआ फलते हैं तथा कोई इनसे डरता हैं तो कोई इनकी बद्दुआओं से.....
इनके कमाई का एक मात्र यही जरीया हैं। लोगों से मांग कर और नाच-गाना कर अपनी जीविका चलाते हैं।

नर-नारी के मिलन से जो सृष्टि होती हैं, उनसे नर, नारी और क्वीर का जन्म होता हैं। इसके पीछे साइंटिफिक कारण है। चूंकि यह विज्ञान युग है अतः इसे इस दृष्टि से भी हम देख सकते हैं।

मानव सृष्टि के पहले दो वर्गों को जीवन जीने का हर अधिकार प्राप्त है। घर-परिवार, रिश्तेदार, यार-दोस्त, समाज, शिक्षा, चिकित्सा, नौकरी, शादी, संतान, नागरिकता आदि मौलिक अधिकार के अधिकारी हैं। परन्तु "मानव क्वीर" जन्म से ही हर अधिकार से बंचित रहते हैं। मृत्यु तक.....। इनका एक मात्र हथियार इनकी दुआ है। इसी के सहारे ये अपना काम चलाते हैं। 

इनका कहना है, ज़माना बदल गया है। अतः हमारे उपार्जन कम हो गये हैं। पर पेट की अग्नि साधारण नर-नारी जैसी ही है। हमें भी भूख लगती हैं और हम भी बीमार होते हैं.....। लेकिन हमारी सुनने वाला कोई नहीं। हमारे रोजगार के अन्य साधन नहीं हैं। इसके अलावा हमें कई बार प्रताड़ित होना पड़ता हैं, उत्पीड़न का शिकार भी होना पड़ता हैं। हमें परेशान किया जाता हैं। कई बार शुभकार्य क्रमों में हमारी डीमांड पूरी नहीं की जाती।

मानव रूप में जन्म लेने के बावजूद मौलिक अधिकारों से हमें बंचित रहना पड़ता हैं कारण हम मानव समाज की तीसरी श्रेणी में आते हैं। कानून, सरकार या कोई समिति हमें अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते। इसलिए हमें रास्तों पर तथा लोगों के दरवाजों पर भटकना पड़ता हैं। मृत्यु उपरान्त ही हमें इससे मुक्ति मिलती हैं....।
इस तरह की बातें "क्वीर" समुदाय करते हैं.......।

लेकिन मेरी अपनी राय अलग है। कोई इससे सहमत हो सकता है और कोई नहीं। फिर भी मैं अपने विचारों को साझा करना चाहूंगी.....।

सबसे पहली बात है, जीने के लिए पैसों की जरूरत है। जो कि कमाई के जरिए प्राप्त होता हैं। जिंदगी के अधिकांश समस्याओं का समाधान इसी से होता
हैं। यही पैसा जोश और हिम्मत देता हैं। जीवन में लड़ने की क्षमता इसी से मिलती हैं। इसलिए उपार्जन बहुत जरूरी हैं। हमेशा या बार-बार कोई आर्थिक सहायता नहीं कर सकता....।
बगैर पैसों के जलील होना पड़ता हैं। सब दबाते हैं, मसलकर रख देते हैं। अतः "क्वीर समुदाय" को भी अपने पैरों खड़े होने की सोचनी चाहिए।

 ईश्वर की दी हुई पीड़ा को सहना मजबूरी हैं पर औरों की दी पीड़ा सहना मजबूरी नहीं हैं। सरकार या कानून पर भरोसा न कर, बल्कि स्वयं अपनी जिम्मेदारी लेना ठीक हैं।

इन्हें चाहिए ट्राफिक में खड़े गाड़ियों के आगे, लोकल ट्रेनों में लोगों के आगे हाथ न फैलाकर, उनके आगे कोई प्रोडक्ट (सामान) वाला हाथ बेचने के लिए बढ़ाया जाए तथा मुनाफा सहित पैसे लिए जाए तो कमाई होगी। अधिकतर लोगों को यह अच्छा लगेगा और सहयोग करने के लिए लेंगे। घर बैठे सिलाई-कढ़ाई या बुनाई का काम भी किया जा सकता है, किसी "एनजीओ" या "समिति" के माध्यम से घर बैठे कुटीर उद्योग का काम भी किया जा सकता है। इससे नित्य कमाई होगी।
इसके अलावा अपने दुआओं वाला कार्य भी साइड से करते रहे तो इनकम होती रहेगी।

यह बात सही है कि बहुत लोग इन्हें परेशान करते हैं लेकिन अधिकतर लोग इनसे डरते हैं। इसके बद्दुआओं से ही सिर्फ नहीं बल्कि इनके आव-भाव, कारनामों और बातों से भी लोग डरते हैं। कई बार पैसों के लिए ये, लोगों को इतना परेशान करते हैं कि पूछो मत....। बात लोगों की इज्जत और शर्मनदिगी पर बन आती हैं। जबर्दस्त बसूली करते हैं। कारण उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं है। 

लेकिन मेरा मानना है, अपने दायरे में रहकर ये इस तरह कमाई कर ही सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर दो-एक क्वीर की बात कहना चाहूंगी.... अभी हाल ही में केरला से एक क्वीर डॉ बन हमारे सामने आई है। इससे पहले पं. बंगाल में महिला महाविद्यालय की प्रधानाचार्या के रूप में भी एक क्वीर का उदाहरण हमारे सामने आया। किसी फिल्म निर्देशक की बात भी हम जानते है। जिन्हें अपने कार्य हेतु कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। 

हालांकि यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें न जाने कितने जहर के घुट पीने पड़े, ये तो वे ही जानते हैं। उनके लिए यह रास्ता आसान न रहा होगा.... । फिर भी दौलत, शोहरत हासिल किए है...।

खैर, समय-समय पर न्यूज के माध्यम से पता चलता है कानून और सरकार की ओर से मानव क्वीर के अधिकारों के लिए कदम उठाने की कोशिश की जा रही हैं। जो अवश्य ही उनके हित हेतु सही होगा। 

"थर्ड जेंडर" यानी "मानव क्वीर" की बातों को ध्यान में रखते हुए इतिहास को दोहराना चाहूंगी। उस युग में जाना चाहूंगी, जहां से हम कुछ प्रेरणा ले सकते हैं।
    "जोधा-अकबर"- धारावाहिक T.V.सीरीयल....। कुछ साल पहले करीब-करीब हम सबों ने देखा हैं। काफी हीट सीरीयल रहा....।

समस्त पाठकों को याद दिलाना चाहूंगी इस सीरियल में,  अकबर के महल में रानियों की सुरक्षा हेतु इन्हें (क्वीर) तैनात किया गया था। जो कि इनके कमाई का साधन रहा होगा....।

तर्क-वितर्क की बात न कर, क्या इससे हम कुछ सीख नहीं सकते......?
मेरा मानना है बिल्कुल सीख सकते हैं....। इतिहास से सीखकर हम अपने वर्तमान और भविष्य को सवार सकते हैं। जिससे सबका भला होगा.....। 

हमें इतिहास से जानकारी हासिल करना हैं, प्रेरणा लेना हैं और आगे बढ़ते रहना हैं.....।

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