यूनीक एक्सपेरियन्स--------

आज मैं, फ्लेट की छत पर कपड़े सुखाने गई थी। कुछ कपड़े सुखाए ही थे तब तक आशा जी भी  कपड़े सुखाने आ गई।

वो भी उसी बिल्डिंग की फ्लैट में रहतीं थीं। उनका और मेरा ऊपर-नीचे का फ्लैट हैं। पड़ोसी है अतः जान-पहचान और दोस्ती दोनों हैं।

कपड़े सुखाते हुए हमने इधर-उधर की कुछ बातें की, फिर अचानक ध्यान आने पर मैंने उनसे पूछा- उस दिन आपने "पानीपूरी" क्यों नहीं खाई...? गलत बात है...। मैंने आपसे कहा, मेरी बेटी ने भी कहा, फिर भी नहीं खाई.... पैक करवा लिया।
 घर बैठे खाने में क्या मजा....? खोमचे वाले के खड़े हो खाने का मजा ही अलग है। 

"इंडियन स्ट्रीट" खोमचे का ताज है - पानीपुरी.....।
अलग-अलग शहरों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता हैं। कहीं इसे पानीपुरी कहते है, कहीं गोलगप्पे.... कहीं पुचका तो कहीं बतासे... कहीं पटके तो कहीं और किसी नाम से जाना जाता है।
अंग्रेजी में इसे "वाटर-बॉल" भी कह सकते है। अनेक नामों वाला, यह लाजवाब चीज है..... मुंह में पानी भर आता है...।
      विभिन्न नामों के साथ-ही-साथ स्वाद भी भिन्न है। किसी शहर में यह आटे से बनता है तो कहीं सूजी का बनाया जाता हैं।
       इसे फोड़कर इसके अंदर कहीं आलू भरा जाता है, कहीं मटर-छोले। तो कहीं कच्चा पियाज छोटे-छोटे कट कर इसमें डाला जाता है। 
इसके अंदर भरने वाला पानी का टेस्ट भी अलग-अलग हैं। कोई इमली डालकर पानी बनाता है तो कोई पोधिना और नींबू से बनाता हैं। किसी-किसी शहर में तो सोंठ डालकर खाया जाता है। 
खैर, जो भी हो , जिस प्रकार से भी बनाया जाता हो "वाटर-वॉल" 'इंटरेस्टिंग आइटम' है। खाने से मुंह खुल जाता है। जीभ में स्वाद आ जाता है। 

महिलाओं का यह पसंदीदा आइटम है। हर उम्र की महिलाएं इसे खाना पसंद करतीं हैं। आजकल पुरुष भी पिछे नहीं हैं। उन्हें भी पानीपुरी की लत लगी हैं। मौका निकाल वे भी खाते रहते हैं।

उस दिन मैं और मेरी बेटी लोकल बाजार गये थे। हमारे साथ आशा जी भी गई थी। बाजार का पूरा काम कर हम पानीपुरी खाने गए। हमने बाजार में पानीपुरी खाया पर आशा जी वहां नहीं खाई। उन्होंने अपने लिए पैंट करवा लिया था। 

मैं और मेरी बेटी खा रहे थे पर उनके न खाने से हमें जरा अटपटा सा लग रहा था और यही कारण था कि आज मैंने उनसे, वहां न खाने का कारण पूछा.....।

मेरे पूछने पर उन्होंने वहां खड़े हो न खाने का जो कारण बताया उसे सुन मैं दंग रह गई। मेरे लिए यह "यूनीक एक्सपेरिमेंट्स" था। उनकी बात सुन मेरी हंसी न रुके.... मेरे साथ आशा जी भी हंसे जा रही थी। हंसते-हंसते उनका चेहरा लाल हो गया था। 

पहले बतलाने में हिचक रही थी, शर्मा रही थी, संकोच भी कर रही थी। कारण बताने से मुकर रही थी। पर मैं भी कहा छोड़ने वाली थी। उनके आव-भाव ने मेरा इंटरेस्ट और बढ़ा दिया। मैंने दबाव डाला तो उन्होंने कारण बताया....। 

मेरे जीवन में मैंने पहली बार ऐसी घटना सुनी थी।

उम्र का एक दौर आता है। उस दौर में, चाहे लड़का हो या लड़की, उनमें कुछ खास विशेषताएं नजर आती हैं। जो प्रकृति का देन होता हैं। उम्र के उस पड़ाव में वेबजह हंसी आती है, शर्म आती है, कुछ हासिल करने की इच्छा होती है, दुनिया को मुट्ठी में भरने की कोशिश रहती है। इस तरह की और कई विशेषताएं हम पर हावी होते हैं। 

पहली बार जब लड़कों की मुछों की लकीर नज़र आती हैं तो वे संकोचाते हैं, शर्माते हैं, छुपाने की कोशिश करते हैं। ठीक उसी तरह लड़कियों के साथ भी अलग-अलग बातों को लेकर शर्म और संकोच होता हैं।आशा जी भी इन्हीं परिस्थितियों की शिकार हुई थीं। 

उन्होंने बताया, तब मेरी उम्र 14-15 साल की थी। मेरे घर मेरी एक सहेली आई थी। हम दोनों एक ही स्कूल व क्लास में पढ़ते थे। हम दोनों पूरी दोपहर मैथ (Math) प्रेक्टिस किये। शाम को मैं, उसे बस स्टॉप तक छोड़ने गई। 
जाते में हमने पानीपुरी खाने का सोचा और एक पानीपुरी वाले के खड़े हो गए। वो दूसरों को खिला रहा था। उन्होंने हमें जरा रुकने को कहा।

उस उम्र में ज्यादा बोलना और हंसना हमारे लिए आम बात थी। इसलिए एक तरफ खड़े हो हम बातें किए जा रहे थे और हंसे जा रहे थे।

थोड़ी देर बाद उन्होंने हमें बुलाया। हाथ में दौने (पत्ता) लिए और हमने खाना शुरू किया। 

पानीपुरी खाते वक़्त मुंह को जरा ज्यादा खोलकर फिर खाया जाता है। मैं भी वैसे ही खा रही थी। दो-चार खाने के बाद जब अगला पानीपुरी मुंह में डाल रही थी तभी अचानक मेरी नज़र, थोड़ी दूर खड़े दो-तीन लड़कों पर पड़ी। जो एक साथ खड़े थे। तुरंत एक लड़के ने मुंह फाड़कर मुझे चिढ़ाया। और सिर हिलाकर हंसने लगा। उसके साथी भी हंसने लगे। 
      शायद वे सब हमें पहले से फोलो कर रहे थे....।

जिस तरह मुंह खोलकर मैं खा रही थी उसी तरह उस लड़के ने मुझसे ज्यादा मुंह खोलकर मुझे दोबारा चिढ़ाया। शर्म के मारे मेरे हाथ से पत्तल, पानीपुरी दोनों ही गिर गये।

शीतल की मम्मी, तब से अब तक मुझसे बाहर पानीपुरी खाई नहीं जाती। मैं आपको बता नहीं सकती उस उम्र में तब मेरी क्या दशा हुई थी। मेरी सहेली उल्टे मुझे घर छोड़ने आई थी। 

डर नहीं था। हमारे जमाने में उस वक्त घर-बाहर डर का माहौल नहीं होता था। जो बात आज है।  पर शर्म से मैं दबे जा रही थी। मुझसे चला तक नहीं जा रहा था।

आज तक मुंह फाड़कर चिढ़ाने वाली बात, मैं भूल नहीं पाई। इसलिए मुझे संकोच होता है। वही बात ध्यान आ जाती है। 

 उम्र बढ़ने के साथ-साथ समझ आई, वो बात सामान्य ही थी। लड़कों ने हमें न छेड़ा था न ही सताया था। बस दूर खड़े हो चिढ़ाया था। वे भी चढ़ते उम्र के थे। थोड़ी बहुत शरारत ही की थी....।
 लेकिन..... लेकिन.....।

उस उम्र वाली शर्म आज नहीं है परन्तु....।
मुंह फाड़कर खाने वाला सिस्टम आज भी मुझे उन दिनों की याद दिलाता है। इसलिए उस दिन बाहर पानीपुरी खा न सकी। 
अब तक वो हादसा मैं भूल नहीं पाई.....।

हादसा ? ....... कहकर, मैं जोर-जोर से हंसने लगी।
फिर बोली- भाईसाहब को इस बात की खबर है..?

आप भी न.... चलिए-चलिए, नीचे चलते हैं....। आशा जी बोली।
हंसते हुए हम दोनों नीचे की ओर जाने लगे....
जाते हुए मैं बोली- कुछ भी हो, मजा आ गया....। आज मुझे "अनोखा-अनुभव" हुआ....।
      ऐसा भी होता है.....?
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