कार्ड का महत्व---------

14फरवरी (2021) के दिन सुबह, लगभग 11बजे के क़रीब किसी काम से बाहर गई थी। एक गली से दूसरी गली की ओर मैने जैसे ही टर्न लिया पीछे से एक बच्ची की आवाज आई..... आंटी-आंटी।
आवाज सुनकर मैं रुकी और पीछे मुड़कर देखा। कहीं मुझे तो आवाज नहीं लगा रही...?
एक गुलाब का फूल मेरे हाथ में थमाकर स्मार्टली बच्ची (अंजान)बोली- हेप्पी वेलेंटाइन डे......।
मैं दंग रह गई। साथ ही मेरी हंसी छूट गई। इस घटना से जहां मुझे खुशी हुई वहीं वो बच्ची भी खुश दिख रही थी.....।

मैं उसकी ओर झूक कर उससे कुछ पूछती इससे पहले वो बोली पड़ी- मेरी मम्मी ने कहा, जो आपको अच्छा लगे, जो आपको पसंद आए इस दिन उसे एक गुलाब का फूल दे सकती हो। और "हेप्पी वेलेंटाइन डे" भी कहना होता है..... आंटी, मैंने आपको आते देखा। आप मुझे बहुत अच्छी लगी। इसलिए मैंने आपको गुलाब का फूल दिया। फिर अपने छोटे से दाहिनी हथेली को मुंह में रखकर शर्माती और मुस्कुराई। और दौड़कर चौथे मकान के अंदर चली गई। मकान के अंदर घुसने से पहले गेट पर रुकी और पीछे मुड़कर मुझे टाटा कर हाथ हिलाया। फिर अंदर चली गई। 

मैं बूत बनी वहां खड़ी-खड़ी सब सुन और देख रही थी। इस घटना से मैं हैरान थी। बीना उम्मीद के अचानक से यह सब हो गया कि कुछ समझ न पाई। मैं एक मिनट रुकी। फिर वहां से चल दी। मुझे जरूर काम था। वैसे इस घटना ने मुझे काफी रोमांचित कर दिया था।

बाद में मैंने सोचा बच्ची की मम्मी ने उसे उसके उम्र के हिसाब से इस दिन के महत्व को समझाया होगा। मैंने यह भी एनालिसिस किया कि - मैं उसे अच्छी लगी या नहीं, यह बात इंर्पोटेंट नहीं थी। उस बच्ची के लिए किसी न किसी को उस दिन गुलाब भेंट देना खुशी की बात थी। जो खुशी उसने हासिल की.....। 
मासूमों में यह एक खासियत होती हैं....।

मैंने एक बात और नोटिस की.... उसकी मम्मी ने उसे "कार्ड" के बारे में कुछ नहीं बताया होगा। क्योंकि आजकल "कार्ड का महत्व" हर क्षेत्र में खत्म सा हो गया है......।

पहले शादी-ब्याह, श्राद्ध, उपनयन, ग्रह प्रवेश, न्यू-ईयर, 25th दिसंबर, टिचर्स-डे, वेलेंटाइन-डे जैसे आदि मौकों पर "कार्ड" को प्राथमिकता दी जाती थी। सब अपने रिश्तेदारों, यार-दोस्तों, जान-पहचानों, करीबों, टिचर्स को कार्ड से आमंत्रित किया करते थे। 

कार्ड देने का मतलब होता था, उन्हें ससम्मान आमंत्रित करना। कार्ड न मिलने से लोग अपमानित महसूस करते थे। 
बच्चे अपने खास मौकों पर, हाथ से रंग- बिरंगे कार्ड बनाते या अपने अभिवावकों के साथ जाकर दूकान से खरीद लाते। फिर अपने दोस्तों और टिचर्स को देते। किसका कार्ड कैसा है इस पर भी चर्चा होती थी।
बड़ों के कार्ड का अर्थ अलग होता था और बच्चों के कार्ड का अर्थ अलग होता था। लेकिन कार्ड ज़रूरी और फैसन में था।

लेकिन आजकल जमाना बदल सा गया है। वर्तमान इंटरनेट और सोशल मीडिया का जमाना चल रहा है । अतः इसके साथ हम भी कदम से कदम मिलाकर चल रहें हैं। इसलिए कार्ड का आदान-प्रदान लुप्त सा हो गया है। वैसे अभी भी कहीं-कहीं इसकी मान्यता है पर वह बैकडेटट कहलाता हैं।

आजकल लोगों के आमंत्रण करने का, बधाई देने का स्टाइल बदल गया है। एक-दूसरे को फोन के जरिए , मैसेज, वाटस-एप, वीडियोकॉल ओर भी इस तरह के अनेक उपायों के जरिए अपना काम चलाते हैं। इस तरह के उपायों को सराहा भी जाता हैं। आनंद सह ग्रहण भी करते हैं। 

पहले कार्ड न मिलने पर नाराजगी जताई जाती थी। बहुत कुछ सुनने को मिलता था पर अब ऐसी बात नहीं रही। कार्ड के प्रति लोगों की रुचि खत्म सी हो गई है। कुछ लोग हैं, जो प्रथा और रिवाज का जरा ख्याल रखते हैं। पर पहले जैसी बात नहीं रही। 

हर क्षेत्र में इसका प्रभाव पड़ा है। शायद, कार्ड- व्यापारी कुछ और सोचने को मजबूर हुए होगें। कारण आजकल इस व्यापार में मंदी पढ़ी है....।

खैर, घरेलू और सामाजिक स्तरीय कार्ड लुप्त से हो गए हैं परन्तु प्रसासनिक क्षेत्र के कार्डों का महत्व अत्यधिक बढ़ गया हैं। 

जन्म से मृत्यु तक के कार्ड के लिए लोगों को दौड़ना पड़ता हैं। कतारों में घंटों खड़े रहना पड़ता हैं। सरकारी कार्ड बनवाने के लिए मुंह मिठा करवाना पड़ता हैं, कुछ अधिकारियों से विनती और निवेदन के साथ ही गिड़गिड़ाना भी पड़ता हैं। गांव और कुछ अनपढ़ महिलाओं को अपना आन तक खोते देखा गया हैं। हालांकि यह बात कुछ-एक क्षेत्र की हैं। परन्तु साधारण से साधारण तथा अति साधारण व गरीबी रेखा के नीचे वालें लोग इससे अवगत हैं। जबकि सरकारी कार्ड पाने का अधिकार हर नागरिक का मौलिक अधिकारों में से हैं....। राशनकार्ड, आधार कार्ड, पैनकार्ड, स्वास्थ्य कार्ड, मैट्रो कार्ड, मंथली कार्ड, अस्पताल के कार्ड, स्कूल के कार्ड, और भी अनेक योजनाओं के न जाने कितने प्रकार के कार्ड है।इस तरह के नाना-प्रकार के कार्डों की हमें अत्यंत आवश्यकता पड़ती हैं। हर परिवार में उसके हर सदस्यों के पास सरकारी कार्ड का रहना जरूरी होता हैं। वरना कई सुख-सुविधाओं से बंचित रह जाते हैं।

 समाज का एक वर्ग हमेशा कई सरकारी कार्ड के बारे में जानते तक नहीं है। उनको खबर नहीं पहुंच पाती या उन्हें समझाने वाला नहीं होता। 
 आजकल हम सोशल मीडिया में काफी एक्टिव रहते हैं और उसी के जरिए ओनलाइन अपना कार्य पूरा कर लेते हैं। लेकिन जिनके पास यह सुविधा या इसकी जानकारी नहीं है उन्हें हम सहायता कर सकते हैं। 
 आप नोट करेंगे सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर 
तरह-तरह के सुविचार पोस्ट किए जाते हैं। जो हमारे मानवता और मानसिकता को प्रोत्साहित करता हैं। पर यही तक जाकर रुकना नहीं हैं। इसे हकीकत में रुप देना है। 
खासकर युवाओं को बढ़-चढ़ कर आगे आना होगा। समाज के उस वर्ग को कार्ड की सुविधाओं से अवगत कराना होगा। वो भी निस्वार्थ भाव से....। 
सरकार के साथ-साथ हमारा युवा वर्ग अपने-अपने क्षेत्रों में एक छोटी सी कोशिश करें तभी सुविचारों के सही मायने रहेंगे....। 

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इंसान अपनी इंसानियत भूल गया है। 2020 उसका साक्षी है। फिर भी हमें हमेशा अपनी क्षमता के अनुसार उस विशेष वर्ग के लिए एक कदम आगे बढ़ये रखना है। कारण आज की तारीख में सरकारी कार्ड का महत्व बहुत ज्यादा ही हो गया है। भले ही पिछले उन कार्डों के प्रति हमारी रुचि कम ही हो गई हो......।

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