साउंड पोल्यूशन-------

वर्तमान जो परिस्थिति है, उसमें "प्रकृति" और "इंसान" दोनों ही अनेक प्रकार के "प्रदूषणों" से घिरा हैं। 
देखा जाता है अक्सर कई प्रदुषणों का कुप्रभाव हमारे जीवन व प्रकृति जगत में पड़ता रहता हैं।

अनेक पोल्यूशनों में "साउंड पोल्यूशन" भी एक है। जिसका प्रभाव भी हमारे ऊपर पड़ता है। 
अवांछित या अत्यधिक शोर "ध्वनि प्रदूषण" कहलाता है। प्रकृति तथा मानव दोनों ही ध्वनि प्रदूषण से परेशान हैं जबकि इसके जिम्मेदार ये ही स्वयं हैं। 

"प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण" बहुत ही भयंकर होते हैं। इतने भयंकर कि संजीवों के प्राणों का नाश तक हो जाता हैं। 
आसमानी बिजली की बात करें तो उसकी गड़गड़ाहट की आवाज से हम कांप उठते हैं। दरवाजे-खिड़कियों में कंपन के साथ विकट आवाज भी इसी से होता है। 
आंधी या तुफान के आने पर हवाओं के बहाव की ध्वनि और पेड़ों की आवाज से बच्चे- बड़े सभी सहम जाते हैं। 
समुद्र में उठे तुफान से जो ध्वनि उत्पन्न होती हैं, उसे देख व सुन लोगों में डर बैठ जाता हैं। इस तरह की प्राकृतिक ध्वनि से इंसान के मन-मस्तिष्क और जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं। प्रकृति जगत भी प्रभावित होते हैं। आवाज के डर से कई लोगों का हार्ट टेक भी हो जाता हैं।  जिससे मृत्यु तक हो जाती हैं। 

प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण के अलावा, मनुष्य भी खुद कितने ही अवांछित ध्वनी उत्पन्न करता है।
कभी जानबूझकर, कभी अंजाने मे, और कभी मजबूरी में.......।

पारिवारिक या घरेलू बात करें तो देखा गया है कितने लोग ऐसे हैं जो प्यार करने या डांटने के चक्कर में इतनी बुरी तरह जोर-जोर से बोलते हैं कि उन्हें अंदाज़ ही नहीं रहता कि इसका बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। बार-बार ऐसा करते रहने से कान और मस्तिष्क प्रभावित होते हैं। कितने बच्चे हैं जो डर के मारे पेशाब तक कर देते हैं।
इसके अलावा कई घरों में जोर-जोर से T.V.चलाते हैं, मोबाइल पर चिल्ला-चिल्ला के बातें करते हैं। दिन-रात, सुबह-शाम, दोपहर, किसी भी पहर का होश नहीं रहता। ऐसा नहीं कि जानकर या किसी को परेशान करने के लिए करते हैं। लेकिन साधारण जानकारी की कमी से ऐसा करते हैं। इतने शोर से किसी को दिक्कत हो सकती है, इस का बोध बहुतों में नहीं रहता। 

इसके बाद बात करते हैं सामाजिक ध्वनि प्रदूषण की- शादी-ब्याह, त्यौहार, धार्मिक स्थल आदि जगहों पर ध्वनि-प्रदूषण खतरे से बाहर होते हैं। ऐसे जगहों पर माईक और लाउडस्पीकर के द्वारा वातावरण अत्यधिक दूषित हो जाता हैं। 
इनके साथ ही साथ राजनीतिक स्तरों से भी शोर फैलता हैं। ऐसे लोगों को बहुत कम या नहीं के बराबर ध्यान रहता हैं कि अगल-बगल पढ़ने वाले बच्चे हो सकते हैं, वृद्ध व्यक्ति, बीमार इंसान हो सकते हैं। स्कूल या अस्पताल में भी अत्यधिक आवाज का बुरा असर पड़ सकता हैं। उन्हें परेशानी हो सकती हैं। 

पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक के बाद चलते हैं औद्दोगिक ध्वनि प्रदूषण की ओर......। विभिन्न प्रकार की गाड़ियां, ट्रेन, कारखाने में धूएं के अलावा ध्वनि भी फैलाते हैं।जो अत्यन्त हानिकारक है......।

कई अध्ययनों से पता चला है कि अलग-अलग उम्र और व्यक्तियों के, शोर को सुनने तथा सहन करने की क्षमता भिन्न-भिन्न होती हैं। अधिक शोर-शराबे या ध्वनि वाले वातावरण में रहने से अस्वस्थ, चिड़चिड़ापन, अशांत, झगड़ालू, कम सुनने जैसी समस्या से ग्रसीत हो जाते हैं। जिस कारण जीवन ठहर सा जाता हैं। ठीक इसके विपरित कम शोर और शांत वातावरण वाले लोगों का शरीर व मन-मस्तिष्क स्वस्थ रहता हैं। 

ध्वनि प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रकृति और मनुष्य के लिए अत्यंत सकारात्मक परिणाम देता है। ऐसे वातावरण में भोजन करना, पढ़ना, निद्रा लेना, यहा तक कि पूजा-पाठ करना सुगमतापूर्वक होता हैं।
सोचने और एकाग्रता के लिए भी ऐसे वातावरण का होना जरूरी है। 

इंसान को तेज ही नहीं बल्कि कम (लिमिटेड) बोलना चाहिए। जिससे गला साफ रहता है, मस्तिष्क पर दबाव नहीं पड़ता तथा व्यक्तित्व पर निखार आता है। अत्यधिक बोलने से मान्यता कम मिलती है। 

एक जमाने में ऋषि-मुनियों तथा साधु-संत जंगलों और गुफाओं में जाकर ईश्वर का ध्यान करते थे। शांत वातावरण में....। जहां वे एकाग्रता से ध्यान में लीन हो जाते थे। 

आज की हमारी जिंदगी तमाम शोरगुल से भरा है। 
इसलिए इन बातों को ध्यान में रखते हुए, जहां तक हो सके पारिवारिक वातावरण के साथ-साथ दूसरे क्षेत्रों के वातावरण की ओर ध्यान देना या ख्याल रखना चाहिए- ताकि अनावश्यक ध्वनि प्रदूषण न होवे.....।

अत्यधिक ध्वनि से लोगों को परेशानी न हो, इसके प्रति हमें सचेत रहना है तथा शांत वातावरण में रहकर हमें ही सोचना चाहिए कि कैसे प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण से बच सके। इनसे हो रहे खतरों से कैसे बचा जा सके।

प्राचीन काल तो है नहीं के ऋषि-मुनियों व  साधु-संतों की तरह जंगलों और गुफाओं में चले जाएं.....। ये तो विज्ञान युग है अतः अपने आसपास के वातावरण में रहकर ही सोचना है, जितना हो सके मनुष्य द्वारा "साउंड पोल्यूशन" को कम करने या रोकने का उपाय तथा प्राकृतिक "ध्वनि प्रदूषण" को  रोकने और उससे खुद को कैसे संभाला जाएं..... इसकी तरकीब......।

मनुष्य ही प्राणियों में अधिक बुद्धिमान हैं अतः मुक्त "साउंड पोल्यूशन" के बारे में वही सोच सकता है....।

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