काली माता का स्वरूप----------

कहते है, ईश्वर एक है...।
जो काली है वही कृष्ण है। जो शिव है वहीं शंकर है। पर हिन्दू धर्म को मानने वाले एक ईश्वर को अनेकों रुप में पूजते हैं। अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।

हम देवी-देवताओं को मूर्तियों में, तस्वीरों में या फोटो में देखते हैं।जो हर जगह हमें एक से नजर आते हैं। ठीक वैसे ही काली माता की मूर्ति या तस्वीर एक ही नजर आती है।

गले में मुंड माला, जीभ निकला हुआ और उनके पैरों तले शिव जी लेटे हुए। काली माता का ऐसा ही स्वरूप हर जगह दिखाई देता हैं। जिससे हम समझ जाते हैं, यह देवी काली माता जी है......।

उनका जीभ निकला क्यों रहता है...? 
किसी और देवी-देवताओं के जीभ बाहर निकले दिखाई नहीं देते, फिर इनका ही लाल रक्त रंजितजीभ बाहर क्यों निकाला रहता है....?

इस बारे में शायद बहुतों को पता है। बहुतों को ठीक से पता नहीं भी हो सकता हैं।
इसलिए आज इसकी चर्चा करेंगे......पौराणिक कथा अनुसार......।

सत्ता की लड़ाई हर जगह, हर क्षेत्र में है। क्योंकि सत्ता बहुत प्यारी चीज है। लेकिन इसका असली अधिकार और प्राप्ति (लालसा) में फर्क है। शुरू से या मूल रूप से जिन्हें सत्ता प्राप्त है, वे असल अधिकारी हैं परन्तु अचानक से सत्ता प्राप्त कर लेने की कोशिश या सत्ता छीन लेने की चेष्टा वाले सत्ता के लोभी माने जाते हैं। सत्ता की लालसा में खून-खराबे तक पहुंच जाते हैं। अपने साथ-साथ और को भी ले डूबते हैं। चाहे "पृथ्वीलोक" हो या "स्वर्गलोक".....। सत्ता की लालसा है ही ऐसी.....।

खैर, बात करते है स्वर्गलोक के सत्ता की....। जहां हमेशा से ही देवताओं का अधिकार रहा हैं....।

एक समय की बात है। अचानक से राक्षसों में स्वर्ग के सत्ता का अधिकार पाने की लालसा जागी। उन्होंने स्वर्ग में तांडव मचाना शुरू किया और देवताओं को परेशान करने लगे। वहां की शांति भंग होने लगी। देवताओं के ध्यान में विध्न पैदा होने लगा। स्वर्ग में अशांत का माहौल पैदा हो गया। देवतागण परेशान होने लगे। 

राक्षसों से स्वर्ग को बचाने के लिए सभी देवताओं ने आपस में बातचीत की और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि नारी शक्ति ही यहां शान्ति ला सकती है। वो ही हमें राक्षसों से बचा सकती है। ऐसा सोच-विचार कर देवताओं ने नारी के रुप में "देवी दुर्गा मां" की सृष्टि की....।

देवी दुर्गा मां ने अपनी नारी शक्ति से समस्त राक्षसों का बंध किया। अंत में देवी ने राक्षसों के प्रधान का बंध किया। लेकिन उसके खुन से दोबारा सैकड़ों राक्षस पैदा होते गए। जब भी वो राक्षस प्रधान का बंध करती उसके खुन से राक्षस पैदा हो जाए। देवी दुर्गा उसकी हत्या न कर पाने से अत्यंत क्रोधित हो रही थी।

दरअसल, राक्षस प्रधान को वर प्राप्त था।
राक्षसों का प्रधान "रक्तबीज" (दारुक) ने ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उनसे वर प्राप्त कर लिया था कि अगर उसका कोई भी बध करे और उसके खून का एक बूंद भी निचे गिरे तो उससे राक्षस पैदा हो जाएगा जिससे उनका नाश कभी नहीं होगा।

इसी कारण देवी दुर्गा के बार-बार बध करने पर भी उसका दमन नहीं हो पा रहा था।

ऐसे में देवी को अत्यंत क्रोध आ रहा था। क्रोध के कारण उनके दोनों नेत्रों के बीच से एक ज्योती निकली, जिसने मां काली पैदा हुई। क्रोध से पैदा होने वाली अत्यंत काले रंग की, क्रोधित, भयंकर रुद्ररुप वाली नारी की सृष्टि हुई। 

भयंकर रुद्ररुप वाली काली माता ने एक-एक कर राक्षसों को मारना शुरू किया। वो मारती जा रही थी और उनका रक्त पान किए जा रही थी।अंत में उन्होंने रसक्ष के प्रधान रक्तबीज (दारुक) को मारकर उसका सारा रक्त चूस लिया। एक भी बूंद निचे गिरने नहीं दिया। पूरा रक्त चूस कर उसके चिथड़े को फेक दिया। 

समस्त राक्षसों का बंध हुआ और स्वर्ग लोक में शांति लौट आई।
परन्तु, विजय की खुशी भी बड़ी विचित्र होती है।

काली मां को समस्त राक्षसों का बंध कर इतनी खुश हुई कि उन्होंने "विजय नृत्य" शुरू कर दिया।
गले में राक्षसों के मुंड माला पहने, हाथ में बिना धड़ के मुंड लिए नृत्य करती रही। उनके विजय नृत्य से चारों ओर प्रलय जैसा माहौल बन गया। क्रोधित, भयंकर रुद्ररुप वाली काली माता अपने नृत्य में इतनी मसगुल थी कि उन्हें कोई रोक नही पा रहा था।  चारों ओर सब बर्बाद होने के कगार पे था। 

ये क्या हुआ...? यह दृश्य देख सारे देवता सोच में पड़ गये। राक्षसों का तांडव बंद हुआ तो अब भयंकर रुद्ररुपी स्त्री का नृत्य तांडव शुरू हो गया...? देवतागण आपस में कहने लगे इन्हें नहीं रोका गया तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। सब धंस हो जाएगा।

ऐसे समय काली माता के स्वामी "शिवजी" सामने आए और वे निचे लेट गये। काली मां को इस बात का पता नहीं था। वो विजयखुशी से चारों ओर निरंतर नृत्य करे जा रही थी। नृत्य करते-करते अचानक से उनका एक पैर शिवजी के छाती पर पड़ा। जैसे ही उसका पैर पड़ा वो रुकी। अपने पति को देख शर्म और ग्लानि से उनका "जीभ' बाहर निकाल आया।  तांडव नृत्य बंद हुआ और वो शांत हुई। 

शांत होने के बाद से ही काली मां पूजी जाने लगी है। उनका वह भयंकर रुद्ररुप लुप्त हुआ। शांत होने के फलस्वरूप जीभ निकला हुआ ही स्वरूप हमरे सामने आया और तब से हम, उन्हें इसी रुप में जानते व  पूजते हैं।
यही कारण है कि इनका जीभ निकाला हुआ स्वरूप हमें हर जगह (मूर्ति और तस्वीरों) दिखाई देता है।

मां काली जी का जन्म दुष्टों को संहार के लिए हुआ था। तब उनका भयंकर रुद्ररुप बड़ा डरावना था। माता दुर्गा के अत्यंत क्रोध के फल से उनका ऐसा जन्म हुआ। परंतु शिवजी पर पैर पड़ते ही रुप परिवर्तन हुआ। 
एक ओर दुष्टों का संहार तथा दुसरी ओर वो  सदाचारियों की रक्षा करती है....।

इसलिए नारी के दो रुप होते हैं। नारी जाति शांत है परन्तु क्रोधित होने पर वह दुष्टों का नाश करने में पिछे नहीं हटती........।

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