पुरी, भाई-बहनों का मंदिर-------

जैसा कि हम जानते हैं चार धामों में उड़िसा के पुरी का जगन्नाथ मंदिर भी एक धाम है। जहां तीनों देवमूर्ति भाई-बहन की हैं। इन्हें एकसाथ पूजा जाता हैं......।
इस स्थल पर आने से मन और आत्मा दोनों तृप्त हो जाते हैं। 

यह मंदिर समुद्र तट पर अवस्थित है। अतः लोग, यहां मंदिर दर्शन के साथ ही साथ समुद्र की लहरों का गर्जना (ध्वनि) और उसके किनारे बिछी सुनहरी रेतों की चादर के अपूर्व दृश्य का आनंद उठा सकते हैं।

इस लेख में पुरी मंदिर और उसकी कुछ विशेषताओं की चर्चा करेंगे।
कारण आगे अगर कोई कभी इस धाम की यात्रा करना चाहे हो सकता है उसे इन जानकारियों से कुछ फायदा हो या सहायता मिले....।

थोड़ी बहुत जानकारी के साथ किसी भी राह में आगे बढ़ने से वह राह आसान हो जाता है। राह सिर्फ यात्रा या पर्यटन की नहीं है। जीवनी जीने के लिए हमें अपने ऐसे-ऐसे राहों से गुजरना पड़ता है जिसमें पहली बार जाना पड़ता है। अतः पहले से थोड़ी बहुत जानकारी रहने से उस राह पर चलना आसान हो जाता है.....।

खैर, हम यहां पुरी मंदिर की बात करेंगे.......। यह मंदिर 665 फिट लम्बा और 640फिर चौड़ा है। इसके चारों ओर चार प्रवेश द्वार हैं। चारों द्वार पर चार पशुराज विराजमान हैं। जिसके अलग-अलग मायने हैं। जो हमें अलग-अलग संदेश देते हैं.....।

एक द्वार पर सिंह है, जो सिंहद्वार कहलाता है। दूसरे द्वार पर बाघ है, जो बाघद्वार कहलाता है। तीसरे में हस्ति है, जो हस्तिद्वार के नाम से जाना जाता है और चौथे द्वार पर अश्व विराजे है, वह द्वार अश्वद्वार के नाम से जाना जाता है। 
ये चारों द्वार हमें अलग-अलग सिख देते हैं......।

मंदिर द्वार पर 22 सिढिंयां हैं। जिससे चढ़कर जगन्नाथ जी के दर्शन होते है। असली देवता जगन्नाथ जी है जिनके एक तरफ़ बलराम देव तथा दूसरी ओर सुभद्रा जी विराजे हैं। ये तीनों भाई- बहन हैं। 
इन तीन अस्मपूर्ण मूर्तियों के पास एक सूदर्शण चक्र है। जो अष्टधातु का बना है। इस चक्र के बायीं ओर सोने की बनी लक्ष्मी जी तथा दाहिनी ओर चांदी की सरस्वती जी की मूर्ति है। ये दोनों बहनें हैं।
 तीनों मूर्तियों के पिछे माधव जी विराजे है। इसके अलावा पुरी मंदिर प्रांगण के चारों ओर अनेक देवी-देवताओं के मंदिर है। जिनमें विमला देवी, राधा-कृष्ण, गणेश जी, रामचन्द्र जी, विश्वनाथ आदि हैं।

पुरी मंदिर के उच्च चूड़ा में पितम्बर रंग का ध्वजा लहराता है। जिसे रोज संध्या को बदला जाता है।

    अब मंदिर की छोटी-छोटी पर खास विशेषताओं की बात करते हैं....... 

जब मंदिर के शिखर से रोज शाम को ध्वजा बदला जाता है, उस वक्त मंदिर के आंगन में सैकड़ों लोगों की भीड़ एकत्रित होती हैं। लोग ध्वजा बदलने के दृश्य को बड़ी श्रद्धा पूर्वक देखते हैं साथ ही ध्वजा के एक छोटे से टुकड़े को प्राप्त करना चाहते हैं। क्योंकि इस ध्वजा का बहुत ही महत्व है। मान्यता है ध्वजा के एक टुकड़े को अगर अपने घर के मंदिर या तिजोरी में रखा जाय तो उस ग्रहस्ती में कभी भी तंगी नहीं आती हैं। उस घर का चूल्हा कभी बुझाता नहीं है।
इसलिए मान्यतानुसार लोग ध्वजा के एक टुकड़े को मांगकर या खरीद कर लेते हैं।

भगवान के आहार स्थल पर यानी इस मंदिर में आज भी प्रतिदिन रसोई की विशेष व्यवस्था है। जो शायद और कहीं नहीं है। यहां रोज करीब पांच सौ चुल्हे जलते हैं तथा उनमें तीन सौ रसोईये भगवान जगन्नाथ जी का भोग बनाते हैं। रसोई में सिर्फ लकड़ी (काठ) के चुल्हे का ही उपयोग किया जाता है। हजारों लोगों को भोग मिल पाए इस हिसाब से रसोई बनाया जाता हैं।
भोग बनाने की विशेष पद्धति है। दरअसल लकड़ी के चुल्हे पर, एक के ऊपर एक सात मिट्टी का घड़ा रखते हैं। और एक बार में ही सातों घड़ों में भोग पकाया जाता हैं।
यही भोग पहले मंदिर में लगाया जाता हैं फिर लोगों को प्रसाद के रूप में दिया जाता हैं।

पुरी मंदिर की और विशेषतानुसार ऐसा माना जाता है कि अगर, भाई-बहन साथ आकर दर्शन करें तो वह विशेष फलदाई होता है। कारण इस मन्दिर के तीनों असमाप्त देवमूर्ति, भाई-बहन की हैं। यानी जगन्नाथ (कृष्ण के 8वें अवतार), बलराम और सुभद्रा-तीनों भाई-बहन हैं..... तथा इन मूर्तियों के पास रखें सुदर्शन चक्र के आसपास सोने की लक्ष्मी और चांदी की सरस्वती जी भी- दोनों बहनें हैं।

इसके अलावा अन्य विशेषताओं में यह विशेषता यह भी है कि इस पुरी मंदिर के दर्शन कर, पुजा कर अगर कोई मन्नत मांगे तो उन्हें एक फल का त्याग करना होता है। आम, केला, अमरुद कोई भी एक फल हो सकता हैं। यह त्याग साल भर के लिए या जब तब मन्नत पूरी न हो तब तक पालन करना चाहिए।

इस तरह की और भी कई छोटी-बड़ी विशेषताएं हैं। जिसे हममें से बहुत लोग जानते हैं। बहुत नहीं जानते।
 लेकिन पुरी का जगन्नाथ मंदिर चार धामों में एक है, यह बात समस्त हिन्दू समाज जानता हैं......।

यह मंदिर भाई-बहनों का मंदिर भी माना जाता है।

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