जीवन काका की नियति---------

हमारे पड़ोस के जीवन काका अपनी पत्नी नियती और तीन बच्चों के साथ रहते थे। सदाबहार व  खाता-पीता परिवार था। उनके बिते कल का तो पता नहीं पर, उनका आज (वर्तमान) स्वस्थ और तंदुरुस्त था।

एक दिन जीवन काका को पता चला उनकी पत्नी नियती को कैंसर हुआ है। वे अपने परिवार को बहुत ज्यादा ही प्यार करते थे। इसलिए उन्होंने पत्नी के इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी।  डाक्टर-वैद, कविराज-हकिम, झाड़-फूंक, टोटके, ज्योतिष सबों की सलाह से इलाज करवाते रहे।इलाज में पैसा पानी की तरह बहाते रहे। 

पर नियती के आगे घुटने टेकने पड़े। जीवन काका अपनी पत्नी नियती को बचा नहीं पाए। घर से घर की लक्ष्मी चली गई।

उनका कल बीत चुका था, आज खत्म हो गया। और आने वाला कल, उन्हें दिख नहीं रहा था।

दरअसल, घर-परिवार में औरत की उपस्थिति का होना जरूरी होता है।

पत्नी जब साथ थी तब जीवन काका को कल दिख रहा था। उन्होंने उसे अपने कल्पना की तिजोरी में बंद कर रखा था। 
आने वाले कल को हम अपनी संपत्ति जो मानते है। 
उसे बढ़े यतन से संभालकर, कल्पनाओं की बेड़ियों में बांधे रखते हैं।

लेकिन पत्नी नियती के चले जाने से आज और कल के बीच आंसू आ गये। जिस कारण काका को ठीक से कुछ दिख नहीं रहा था। 

विगत, प्रस्तुत और अनागत- इन तीनों बच्चों के सहारे वे रहने लगे। काका उसका बहुत ध्यान रखते थे। उनकी देखभाल करते हुए थक जाते पर हौसला न हारते।
तक़लिफों को सहते हुए एक दिन विगत खत्म हो गया। काका, विगत के लिए रोते- बिलखते रह गये। लाख कोशिशों के बावजूद बेटा विगत उनके हाथों से निकल गया। वह अपनी मां नियती को प्यारा हो गया। 

असहाय काका, अब प्रस्तुत और अनागत के सहारे जीने की कोशिश करने लगे। विगत और नियती चले गए लेकिन उनके परिवार में कोई और आ गया। आर्थिक संकट (अलक्ष्मी)....।
इन महमान से जुझना जीवन काका के लिए असहनीय हो गया था। 
दो बच्चों के वर्तमान सुख-सुविधाओं को उपलब्ध करवाना तथा भविष्य को संवारना ही उनका लक्ष था। लेकिन नियती ने उनका साथ नहीं दिया और एक दिन बेटा अनागत घर छोड़ कहीं भाग गया। 

वह आर्थिक संकट बर्दाश्त नहीं कर पाया। किसी ने उसे पैसों का लालच दिया और उसके साथ वो घर छोड़ कहीं दूर चला गया।

जीवन काका अकेले में रोते, नियती को याद करते और मन-ही-मन कहते- विगत और अनागत, मुझे तथा प्रस्तुत को छोड़ चले गए। दोनों मेरे हाथ से फिसल गये। मैं उन्हें पकड़े नहीं रख पाया। यह मेरी बदकिस्मती है...। विगत तुम्हारे पास चला गया.... प्रस्तुत मेरे पास है..... लेकिन अनागत.... हमारा आखरी चिन्ह.... कल्पना और उम्मीदों से भरा....
वह कहीं चला गया। अनागत की कोई खबर नहीं.....।
हे ईश्वर! तुने मुझे ये कैसा जीवन दिया है....?

ऐसे में दोनों पिता-पुॖत्र शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार रहने लगे।

एक दिन जीवन काका को अपनी पत्नी नियती का सपना आया। बोली- मैंने तुम्हारा साथ नहीं छोड़ा। अंत तक तुम्हारे साथ रहूंगी.....। घबराना मत....।

सच ही तो है...काका के साथ जो कुछ भी हो रहा था, उनकी नियती ही तो करवा रही थी।

अनागत की राह देखते-दखते, उसके बारे में सोचते-सोचते, उसकी कल्पना करते-करते जीवन काका का जीवन बित रहा था। 

एक दिन मैं, यूं ही अपने मकान के दरवाजे पर खड़ी थी। एकाएक मेरी नज़र काका के मकान की ओर गई। वहां बहुत भीड़ दिखाई दी। कुछ पुलिस और कुछ पड़ोसी वाले थे। 
कौतूहल वंश मैंने पूछताछ की... पता चला काका के मकान के अगल-बगल वालों को उनके मकान से दूर्गंध आ रही थी। दरवाजा खटखटाने के बावजूद किसी ने दरवाजा नहीं खोला। इसलिए पुलिस बुलानी पड़ी। 

दरवाजे को तोड़, जब पुलिस अंदर गई तो उन्होंने देखा, पिता-पुत्र निढाल पड़े थे। अस्पताल ले जाने पर डाक्टर साहब ने उन्हें मृत घोषित किया। बेटे की मौत तीन-चार दिन पहले और पिता की मृत्यु 24घंटे पहले हो चुकी हैं। डाक्टर ने यह भी बताया मौत "एम्टी स्टोमक' की वजह से हुई है। कई दिनों से दिनों ने शायद कुछ खाया नहीं होगा...।

मैं सोचने लगी जीवन काका का कल और आज खत्म हो गया तथा आने वाला कल कहीं खो गया।
हमारे जीवन के कल, आज और कल को शाय़द नियती ही नियंत्रित करती हैं........।
जो हमारे वश में नहीं होता........।
                          ________________