विनायक जी का स्वरूप--------

पौराणिक कथा अनुसार शिव-पार्वती जी के छोटे पुत्र गणेश जी है और कार्तिक जी बड़े पुत्र है।
गणेश जी अनेक नामों से जाने जाते हैं। उन नामों में विनायक भी एक नाम है।

शिव-पार्वती जी के बड़े पुत्र बहुत सुंदर है जबकि गणेश जी का स्वरूप भिन्न है। जो की हस्ती मुंड रुप में है। 

देवी-देवताओं से संबंधित हर पौराणिक कथा, शास्त्र कथा या व्रतकथा जब भी हमारे समक्ष आता है, तब हर कथा के साथ कोई संदेह, ज्ञान और सिख जरुर ले आता हैं। किसी भी कथा या कहानी को ध्यान से पढ़ा जाय तो उससे हमें एक संदेश जरुर मिलता है। 

दूध को गर्म करने के बाद उसे ठंडा होने को रख देते हैं तब ऊपर मलाई आ जाता है। वैसे ही धर्म कथा ध्यान से सुनने या पढ़ने पर हमें एक संदेश जरुर मिलता है। समझाने और अपनाने की बात अलग है।
खैर, यहां बात गणेश जी के स्वरूप की है। हाथी के शीश तथा सुंड के रुप में उन्हें देखते आए हैं। उनका सुंड दाहिने, बायी और सीधे दिशा में देखने को मिलता हैं। अलग-अलग दिशाओं वाले सुंड के गणेश जी अलग फलदाई वाले होते हैं। 

गणेश जी का हर स्वरूप एक जैसा ही दिखता है। लेकिन क्यों...? इसके क्या कारण है.....?

पौराणिक कथा अनुसार जाना जाता है कि एक बार यूं ही पार्वती जी के मन में आया कि उन्हें एक पुत्र संतान का सुख प्राप्त हो....तभी वो अपने शरीर के मैल से एक पुत्र संतान की सृष्टि की..... और उसे खूब आशिश दिया। जिस कारण वे शांत, सदाचारी, बुद्धिमान और फलदाई हुए। जिन्हें हम गणेश जी के नाम से जानते है। 

परंतु यह बात शिवजी को पता नहीं था। सृष्टि के पश्चात् पार्वती जी थोड़ी देर के लिए अन्दर गई। इसी बीच शिवजी आ गये। गणेश जी ने उनका रास्ता रोका। उन्हें अंदर जाने नहीं दिया। शिवजी के समझाने पर भी वे नहीं माने। बहुत समझाने की कोशिश की गई परन्तु गणेश जी नहीं माने। इस पर शिवजी को गुस्सा आया। गुस्से में उन्होंने बालक गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। 
इतने में वहां पार्वती जी आ गई। उन्होंने शिवजी को बालक का परिचय देते हुए अपने पुत्र के प्राणों की विनती करने लगी।

शिवजी अपनी पत्नी पार्वती जी की बात टाल नहीं सकते थे। वे उनकी बात मान गए। तब उन्होंने अपने सहयोगियों को यह कह कर भेजा कि प्रातः काल उत्तर दिशा की ओर जाओ तथा जो भी सर्व प्रथम दिखाई दे,उसका शिश ले आओ.....।

शिवजी की आज्ञा पाकर प्रातः काल सहयोगी उत्तर दिशा की ओर गए। उन्हें सर्व प्रथम एक हाथी नजर आया। वे उसका शिश अपने साथ ले आए।

शिवजी ने बालक गणेश के धड़ पर हाथी का सिर स्थापित किया और उसे  प्राण दिए। 
कहते हैं तब से गणेश जी का स्वरूप हाथी के सिर वाला सुंड का है। 

गणेश जी की पूजा के साथ ही हाथी भी हमारे लिए पुजनिय हैं। वैसे इनकी सवारी (वाहन) चूहा है। लेकिन हमारे लिए हाथी का महत्व ज्यादा है। मौका मिलने पर हम हाथी को खिलाते हैं। उसे हाथ से छूटकर नमस्कार करते हैं या फिर दूर से ही हाथ जोड़ते हैं। पर उनके वाहन (चूहा) का खास महत्व नहीं है।

पौराणिक कथा अनुसार गणेशजी के स्वरूप कथा में हमारे लिए संदेश छिपे हैं। जिसे अपने-अपने बुद्धिमत्ता से हमें जानना होगा।

एक छोटा सा उदाहरण के तौर पर.... हालांकि कई लोग जानते हैं फिर भी उल्लेख करना जरूरी है। ताकि संदेश की सरलता झलके.....।

एक बार मजाक ही मजाक में शिव-पार्वती जी ने अपने दोनों पुत्र, कार्तिक और गणेश के समक्ष एक शर्त रखी। कौन ब्रह्मांड के एक चक्कर लगाकर आ सकता हैं...? जो पहले आएगा वहीं शर्त जीतेगा...।

इस पर दोनों पुत्र तैयार हो गए। कार्तिक जी मन ही मन खुश हो रहे थे कि यह शर्त तो मैं ही जीतूंगा। अपनी सवारी मोर पर बैठ, उड़ता हुआ जल्दी-जल्दी ब्रह्मांड के एक चक्कर लगा आऊंगा। गणेश की सवारी तो चूहा है जो धीरे-धीरे चलाकर देरी से पहुंचेंगा। और मैं शर्त जीत जाऊंगा।

शर्त अनुसार दोनों पुत्र रवाना हुए। कार्तिक जी मोर पर बैठ कर उड़ते हुए आगे निकल गए। गणेश जी चूहे पर सवार हो अपने माता-पिता (शिव-पार्वती) के चारों ओर सात परिक्रमा कर उनके सामने आकर बैठ गए। कुछ ही देर बाद कार्तिक जी खुशी-खुशी माता-पिता के सामने आए और बोले- मैंने ब्रह्मांड का एक चक्कर लगा लिया है। 
इस पर शिवजी बोले- पुत्र कार्तिकेय, जीत गणेश की हुई है। वह पहले आया है। 

कार्तिक जी के कारण पूछे जाने पर पिता शिवजी बोले-  माता-पिता ही बच्चों की दुनिया है, ब्रह्मांड है। गणेश ने अपनी बुद्धिमत्ता से चूहे पर सवार हो माता पिता के सात परिक्रमा कर यह शर्त जीती है।

इसलिए कथाओं के संदेशों का लाभ, हमें अपने बुद्धिमत्ता से अर्जन (प्राप्त) करना है......।

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