कर, आज और कल----------

बैंक मैनेजर प्रकार शुक्ला जी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा भविष्य में उन्हें नरक की यातनाऐं
सहन करनी पड़ेगी। 

ईश्वर और समय का प्रकोप इंसान के तीनों काल को बदल कर रख देता हैं। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता। अपने आप ही सारे काम बनते-बिगड़ते चले जाते हैं। कसूरवार, इंसान या उसका कर्म होता है.....।

मैनेजर साहब का कल यानी बचपन एशो-आराम से बीता। आज यानी वर्तमान शानो-शौकत से बीत रहा है। किसी भी चीज की कमी नहीं। शारीरिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक सब हेल्दी हैं।
जबकि भविष्य नहीं देखा जो कि स्वाभाविक है।

पत्नी और एक बेटी के साथ उनका हंसता-खेलता परिवार है। वर्तमान ठीक है। बेटी को डाक्टर बनने के लिए उसे वैसे ही तालीम दी जा रही थी।

एक समय आया जब बेटी डाक्टरी पढ़ने विदेश गई। माता-पिता को भी उसके साथ जाना पड़ा। तीनों भविष्य के सपनों को एक धागे में पिरो विदेश गये। भविष्य में बेटी बड़ी डाक्टर बनेगी। यह सोच, कल्पना कर गर्व महसूस करना स्वाभाविक था।
            लेकिन भविष्य नाम की चीज बहुत ज्यादा आंख-मिचौली खेलती है। जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। फिर भी हमें इस पर भरोसा है। और हमारी कोशिशें जारी रहती हैं।

मैनेजर साहब कुछ दिन विदेश रुक कर अपनी पत्नी को बेटी के वहां छोड़ वापस आ गए।
स्वदेश लौट यहां रहते हुए कुछ दिन पश्चात उन्होंने अपनी पत्नी से कहा- बेटी को तो अब वही रहना है। तुम कुछ समय रुक कर आओगी तब तक मैं अपना मकान बेचकर पैसा कैश कर लेता हूं। फिर कुछ साल बाद रिटायर हो जाउंगा तो वे सारे पैसे भी सब इक्ट्ठे एक जगह रख देंगे और पैंसन से अपना चल जाएगा। तब तक बेटी भी डॉ बन जाएगी। कहीं गांव की ओर किराया का मकान ले रहे लेंगे।

पत्नी और बेटी ने उन्हें समझाया बाद में देखा जाएगा। अभी मकान बेचने की जरूरत नहीं। पर मैनेजर साहब अपनी जीद्द में अड़े रहे। लाख समझाने पर भी जब वे नहीं माने तब बेटी को विदेश में अकेले छोड़ वो (पत्नी)चली आई। 

पत्नी के आने पर कई महीनों घर पर क्लेश होता रहा। शायद आने वाला कल उन पर भारी पड़ रहा था।
उधर विदेश में बेटी का भविष्य बन रहा था और इधर इन पति-पत्नी का बिगड़ रहा था। 

मैनेजर साहब ने पत्नी को बेटी के चले जाने को कहा। बच्ची का कैरियर बन रहा था सो पत्नी को ही समझोता करना पड़ा। वह फिर से भारी मन लिए बेटी के पास चली गई। 

बुरे वक्त ने दस्तक दे दिया था......।

अपनी बेटी को हल्के में कुछ-कुछ बताया। बाकी अपने भीतर ही रखा। ताकि उसके कैरीयर में इसका प्रभाव न पड़े।

इधर मैनेजर साहब को तो जैसे बर्बादी के पंख लग गए थे। पत्नी को विदेश बेटी के पास भेजकर उन्होंने वही किया जो ठान लिया था। मकान बेच दिया। दूर गांव, कस्बे की ओर किराय का मकान ले, रहने लगे। पैसे तहस-नहस होते रहे। 

कोई तारीफ करता, कोई सहानूभूति प्रकट करता, कोई जरूरत से ज्यादा इज्जत करता, तो कोई सेवा भाव दिखाता। फिर कोई दया की भीख मांगता। बस इसी में लक्ष्मी लुटती रही। 

कुछ साल बाद वे रिटायर हो गए। पैंसन मिलने लगे। विदेश से नाता करीब-करीब खत्म ही कर दिया था। बहुत पैसा था अतः उनका वर्तमान जीवन अच्छे से बित रहा था। 

उधर बेटी सर्जेंट बन गई। वहीं के बड़े अस्पताल में बड़ी डाक्टर बन गई। नाम, शोहरत, पैसा  कदम चूमने लगे।
 लेकिन इसी बीच बेटी ने अपने पिता को नोटिस किया। मां से पूछने पर पता चला पिता की नादानी के बारे में....... मां ने अब बेटी से कोई बात दबाकर नहीं रखी।

विदेश से बेटी संपर्क करना चाहती थी पर होता नहीं था।

एक समय आया जब मैनेजर साहब का शरीर जबाव दे चुका था। 80 वर्ष की आयु में उन्हें देखने वाला कोई नहीं था। लक्ष्मी चंचल होती है सो वो भी
न जाने कैसे और कहां निकल गई। 
पैसे निकालते तो मान मिलता, खाने को मिलता। वरना नहीं....।

आज उन्हें अफसोस है। शरीर तथा दिमाग दोनों साथ नहीं दे रहे थे। ठीक से चला नहीं जाता। उठा-बैठा नहीं जाता। जीवनी के अन्य काम भी अकेले नहीं कर पाते। सारे पैसे लूट गए। पैंसन के कागज और नियमों को भी याद नहीं। बहुत बुरी हालत हो गई थी। भूलने की बीमारी ने उन्हें अपने गोद में उठा लिया था। उनका जीवन नर्क से बद्तर हो गया।

एक दिन विदेश में बेटी के फोन आया। फोन उठाने पर पता चला पुलिस का है। जो स्वदेश से बोल रहे है। 
 शहर के किसी रास्ते में (फुटपाथ) वे औंधे मुंह पड़े थे। पुलिस वहां से उठाकर इलाज के लिए अस्पताल भेजी। जहां दो दिन पहले उनकी मौत हो गई। जेब से यह नंबर मिला इसलिए.....
बीच में ही डॉक्टर बेटी ने कहा- सोरी सर, पिछले पन्द्रह-बीस सालों से कोई संपर्क नहीं है... डेडी अपने वर्तमान में ही जीते रहे..... भविष्य को उन्होंने हल्के से लिया, सोचा नहीं....न शारीरिक तौर पर और न ही आर्थिक तौर पर...... लाख समझाने के बावजूद "डेडी" नहीं माने....।
मैं और मेरी मम्मी इस जिम्मेदारी को नकारते हैं। आप लोगों को अपनी तरफ़ से जो करना है करें।
मैं ईमेल भेज दूंगी, हमें किसी तरह की कोई आपत्ती नहीं।

हमारे जीवन के तीन काल अजीब होते हैं। जो हमारे साथ तरह-तरह के खेल खेलता हैं। लेकिन भविष्य यानी बुढ़ापा बहुत ही दर्दनाक होता है।अगर जी गये तो इससे जुझने की तैयारी करके आज रखना है। वरना...... सोच कर भी रूह कांप उठता है।
परंतु यह भी सच है काल को हम नियंत्रण नहीं कर पाते। इसमें समय और नियती का बड़ा योगदान है....।
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