इक मासूम परी---------

कोरोना महाकाल में नागालैंड की मासूम बच्ची ने हम अच्छों-अच्छों को शिक्षा दे डाली..... आश्चर्य होने के साथ ही हमारे लिए शर्म की बात भी है......।

सरकार के कई वरिष्ठ व्यक्तियों तथा अनेक उम्रदार, पढ़े-लिखे, समझदार आम आदमियों को उस मासूम ने मैसेज दिया है- अपने व समाज के प्रति सतर्क रहने को....।

महामारी काल के शुरू से अब तक, अक्सर देखते आए हैं- रास्ते में कितने लोगों को उठक-बैठक करते हुए, पुलिस से लड़ाई- झगड़ा करते हुए, फाइन भरते हुए अर्थात इस काल में नियमों का उल्लघंन करते हुए देखा गया।

सचेत करने के बाबजूद अनेक गैरजिम्मेदार लोग न ही अपनी परवाह करते हैं और न ही दूसरों की....। जरा भी खौफ नहीं है....अपने मन का करते हैं.....।

डाक्टर तथा प्रशासन की ओर से बार-बार सावधानी बरतने के लिए कहा जाता है बावजूद इसके बाज नहीं आते ऐसे नासमझ लोग....इसी बीच नागालैंड की एक मासूम बच्ची ने हमें बहुत कुछ सीखा दिया है। उसने सिखाया है अपने तथा समाज के प्रति अपने कर्तव्य को....।

नाम है लिपा.... उम्र मात्र तीन साल....नागालैंड के अत्यंत दूरदराज का गांव.... सामान्य किसान परिवार में आज से तीन साल पहले "लिपा" का जन्म हुआ था।

लिपा के माता-पिता खेत में काम करते हैं। बहुत सुबह-सुबह यानी प्रातः काल, जब वह नींद में बिस्तर पर रहती है तब  वे दोनों काम पर चले जाते हैं। उस मासूम को होश भी नहीं रहता जब उसके माता-पिता उसे छोड़ काम पर निकल जाते हैं। 
लेकिन उसे जानकारी है कि रोज सुबह उसके माता-पिता उसे छोड़ काम पर चले जाते हैं। जब वो नींद में रहती है। शायद उसे इस बात की आदत पड़ गई थी।

बात 6 जून (2021) की है। रात को लिपा को हल्का सा बुखार और सर्दी-जुकाम हुआ। लेकिन रोज की तरह उसके माता-पिता उसे सोता छोड़ खेत में काम करने निकल गए।
बाद में जब उसकी नींद पूरी हुई और आंख खुली तो वह तीन साल की मासूम बच्ची तैयार होने लगी।

बन-ठन कर, तैयार हो लिपा अकेले ही नन्हे-नन्हें कदमों से चल कर, अपने गांव के स्वास्थ्य केंद्र में पहूंच गई।

काले रंग की फ्राक, बालों में लाल रिबन और मुंह में माक्स लगाएं- जैसे किसी बड़े इंसान ने उसे तैयार किया हो....।

उसे वहां उस तरह देख, स्वास्थ्य केंद्र के हेल्थ आफिसर आश्चर्य हो गए। उतनी ही बच्ची, अकेली.... बड़े-बुढो की तरह बकयदा मुंह में माक्स लगाए.....इतनी सचेत हो आई है.....?

कहते है बिमारी, इंसान को समय से पहले बुढ़ा बना देता हैं और मजबूरी, बचपन छीन बड़ा बना देता है.....।

 बच्ची को वहां अकेली देख उससे आने का कारण पूछा गया।
              माक्स के ऊपर से निकली हुई दो छलकती आंखें मानों बहुत कुछ समझाने की कोशिश कर रही हों। पूछने वाले की तरफ लिपा देखें जा रही थी। 
  उसे वहां कुर्सी पर बैठाया गया। और फिर से आने कारण आराम से पूछा गया।

कुर्सी पर बैठ, तुतलाती आवाज में, अकेली तीन साल की मासूम बच्ची अपने शारीरिक परेशानी को समझने की कोशिश करती हुई बोली- मेरा बदन गर्म है....नाक से पानी बह रहा है....।

कोविड नियमों का पालन कर माक्स लगा कर आना, अपनी बिमारी के बारे में बताना....इस मासूम की घटना हमें शिक्षा देता हैं- सावधान रहकर अपने तथा समाज के प्रति कर्तव्य पालन करना चाहिए। जो कि अच्छे-अच्छे नहीं करते।
मैं खुद इस मामले में पिछे हूं।
 हम अपनी बिमारी को छुपाते हैं। डाक्टर के नहीं जाते। कई बार ऐसा होता है दवाई की दुकान से दवा ले लेते हैं या घरेलू उपचार कर लेते हैं। जब बात बड़ जाती है तब डाक्टर के जाने की सोचते हैं।

लिपा को दुनिया में आए मात्र तीन साल हुए हैं। अकेले, तुतलाती आवाज, नन्हे-नन्हे पैर, खुद तैयार होना, शारीरिक परेशानी को समझना, कोविड नियम का पालन करना..... इसके जज्बा को देख सलाम करने को जी चाहता है।

अकल्पनीय घटना है.....सोच भी सोचने में मजबूर है.....।

                           _________________