रथयात्रा-------

"रथ" एक तरह की अति प्राचीनतम सवारी है और इस पर सवार हो, कहीं जाने को रथयात्रा कहा जाता है।

यहां, रथयात्रा का संपर्क उड़िया के पुरी में जगन्नाथ मंदिर के प्रभू की सवारी से है... जो हर साल होती है। जिसका खास महत्व माना जाता है।

आज इस लेख में पुरी मंदिर के रथयात्रा के बारे में कुछ जानकारियां प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर साल यहां रथयात्रा होती है।

इस साल  यानी 2021की रथयात्रा 12 जुलाई को निकाला जाएगा। साधारणतः हर साल अंग्रेजी के जुलाई महीने में ही निकालने की तिथि पड़ती है।

भारत के उड़िसा राज्य में रथयात्रा को पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो आठ से दस दिन तक चलता हैं। उड़िसा के अगल-बगल क्षेत्रों में भी इस पर्व का महत्व है। क्योंकि यह पर्व एक धाम से जुड़ा हुआ है। जिसकी विशेष मान्यता है।

रथयात्रा के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में मेला का आयोजन किया जाता हैं। पर्व की खुशी के साथ ही कई लोगों को कमाई करने का मौका भी मिलता है। परंतु इस साल कोरोना महामारी के कारण शायद ऐसा संभव नहीं हो पाएगा। 

जैसा कि हम सभी जानते हैं यह मंदिर भाई-बहनों का मंदिर है। जगन्नाथ (श्री कृष्ण), बलराम और सुभद्रा ये तीन भाई-बहन इस मंदिर में विराजमान हैं। इस तीनों की रथ सवार को घेरे यह पर्व मनाया जाता है।
 
साल में एक बार तीनों भाई-बहन रथ में सवार होकर अपनी मौसी के घर घुमने जातें हैं। और वहां जाकर सात दिन रुकते हैं फिर वापस अपने घर पुरी मंदिर लौट आते है। दरसल, यही है रथयात्रा..... और इसे ही लोग पर्व या त्यौहार के रूप में मनाते है......।

इसके अलावा यह भी कहा जाता है भगवान अपने भक्तों के बीच रथयात्रा के दौरान उनसे मिलने आते हैं।

 कारण कुछ भी हो पर रथयात्रा का महत्व खास है।

पर्व के मौके पर लोग तला पापड़ और गजामूंग प्रसाद के तौर पर खाते हैं। इसके अलावा नारियल और मालपुए का भी भोग लगता हैं।

हिन्दू शास्त्रों-पुराणों के अनुसार रथयात्रा में शामिल हो, रथ की रस्सी को खिंचने से पुण्य होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है। तथा यह भी माना जाता है,100 यज्ञों के पुण्य का लाभ भी लोग उठा सकते हैं।

जिन तीन रथों में सवार होकर जगन्नाथ, बलराम और बहन सुभद्रा अपनी मौसी (गुंडीचा मंदिर) के जाते हैं वे रथ कई महीनों पहले से तैयार किया जाता है।

तीन भाई-बहन के लिए अलग-अलग तीन रथ बनाए जाते हैं। जिनकी ऊंचाई और रंग अलग-अलग होते हैं। पवित्र व शुद्ध नीम की लकड़ी से रथों का निर्माण किया जाता हैं। इसमें किसी तरह का कील या धातु का प्रयोग नहीं किया जाता है।

•) भगवान जगन्नाथ जी का रथ- 45•6  फीट ऊंचा होता है। इसमें 16 पहियें होते हैं तथा रथ को रंग लाल और पीले रंग से रंगा जाता है।
•) भगवान बलराम जी का रथ- 45 फीट ऊंचा होता है। इनके रथ में 14 पहियें लगाए जाते हैं तथा रथ का रंग लाल व हरा  होता है।
•) बहन सुभद्रा जी के रथ की ऊंचाई करीब 44•6 फीट होता है। जिसमें 12 पहिए बनाएं जाते हैं तथा रथ का रंग लाल और काले या नीले रंग से रंगा जाता हैं।

आषाढ़ मास में तिथि अनुसार पुरी मंदिर से जब रथयात्रा शुरू होती है तब सबसे पहले बलराम जी का रथ रहता है, बीच में बहन सुभद्रा जी का और अंत में पीछे भगवान जगन्नाथ जी (श्री कृष्ण) का रथ होता हैं।

जिस रास्ते से रथ निकलता हैं उसके आगे लोग बुहार लगाते हुए जाते हैं। कहते है पहले विषेश लोग सोने के झाड़ू से बुहार लगाते थे।

रथयात्रा के दिन जगन्नाथ मंदिर से रथ निकालते हैं तो शंखध्वनि के साथ निकाला जाता है। इसके अलावा ढोल, नगाड़ों, बाजा आदि के साथ हर्षोल्लास से रथ खिंचते हुए गुंडीचा मंदिर अर्थात उनके मौसी के घर तक पहुंचाया जाता है।

इस दौरान भक्तों का तांता लगा रहता हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। हर कोई एक बार रथों की रस्सी को खिंचना या छूना चाहता हैं। ताकि प्रथानुसार पुण्य प्राप्त हो सके।

रथयात्रा के पहले से ही बाजारों में छोटे-छोटे, रंग-बिरंगे, लकड़ी के रथ पाए जाते हैं। कोई रथ एक मंजिला, तो कोई दो या तीन मंजिला रथ भी पाया जाता हैं। कोई-कोई सात मंजिला रथ भी बेचते हैं। कारण तीनों भाई-बहन सात दिनों तक अपनी मौसी के जो ठहरते हैं। रथ के अलावा जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा जी की छोटी-बड़ी मुर्तियां भी पाई जाती हैं। 

लोग इन्हें बाजार से खरीद कर लाते हैं खास कर बच्चों में काफी क्रेज रहता हैं। माता-पिता भी अपने बच्चों को सहयोग करते हैं। 

बाजार से रथ खरीद उन्हें अपनी पसंद अनुसार सजाते हैं। कोई फूलों से रथ को सजाता है, कोई रंगीन कागज से, कोई लाईटों से, फिर कोई दीया-बत्तियोंसे......।

रथ सजाने के बाद उसमें तीनों भाई-बहन को बैठाया (विराजा) जाता है। प्रसाद लगाया जाता है। अगरबत्ती या मोमबत्ती जलाई जाती हैं। रस्सी लगाकर बच्चे अपने-अपने घरों के आगे के रास्तों, गलियों व सड़कों पर रथ चलाते हैं। राह चलते कई लोग उनके रस्सी को जरा खिंच लेते हैं। यही समझ कर कि पुरी के जगन्नाथ जी का रथ है। थोड़ा पुण्य लाभ होगा। बच्चे खिंचने देते हैं और खुश भी होते हैं। कई लोग बच्चों के रथ में पैसा चढ़ाते (दान) है। कितने समझदार बच्चे हैं जो, लगाए हुए प्रसाद से उन्हें प्रसाद देते हैं।

रथयात्रा का पर्व अलग ही आनंद देता है। 

अपनी मौसी गुंडीचा मंदिर से सात दिन बाद जब वे (प्रभू) लौटते हैं तो उस दिन को "उल्टा रथयात्रा" कहा जाता है। 

घर यानी पूरी मंदिर लौटने के एक दिन पहले यहां का द्वार खोल दिए जाते हैै। 

मौसी के घर से लौटने के बाद जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा जी को स्नान कराया जाता है तथा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पुनः मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है।

इस तरह "रथयात्रा पर्व" सुसम्पूर्ण होता है.......।

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