त्याग त्यौहार- बक़रीद------

भारतवर्ष एक ऐसा देश है जहां तरह-तरह के धर्मों को मानने वाले तमाम लोग रहते हैं। वे अपने धर्म के अनुसार साल के समस्त पर्व खुशी-खुशी मनाते हैं। जिसमें ग़ैर धर्म के लोग भी एक-दूसरे के साथ शामिल होते हैं तथा त्यौहार का आनंद व लाभ उठाते हैं। 

आज इस लेख में इस्लाम धर्म के प्रमुख त्यौहार के बारे में कुछ जान लेते हैं।

2021 के कोविड-19 महामारी काल में 21जुलाई को, मुस्लिम धर्म वालों का प्रमुख त्यौहार "बकरीद" पड़ा है। प्रशासनिक कारणवश पिछली बार की तरह इस बार भी अन्य त्योहारों के साथ ही साथ यह त्यौहार भी फीका मनाया जाएगा। फिर भी सावधानियों को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम समुदाय के लोग ईद मनाएंगे। जिसमें हम सबों का साथ रहेंगा। अपने-अपने क्षेत्रों से.....

समय-समय पर देखा गया है इस संप्रदाय व धर्म के लोगों को भी हमने साथ पाया हैं। विभिन्न क्षेत्रों में, विभिन्न विषयों पर....

ऐसा माना गया है भारत में ईद मनाने की परंपरा मुगलों ने डाली थी। मुग़ल शासक काल में जहांगीर अपनी प्रजा के साथ मिलकर ईद का त्यौहार मनाते थे। वे इस मौके पर गैर मुस्लमानों के लिए अपने दरवार में गैर मुस्लिम बावर्ची से भोजन बनवाते और सबों के साथ मिलकर खुशी-खुशी ईद के पर्व को मनाते थे। शायद इस से जाना जाता है मुगलों के समय से भारत में ईद मनाया जाता आ रहा है। यह परंपरा तभी से शुरू हुई है......।

ईद तीन तरह की होती है- जिसमें "बकरीद" भी एक पर्व है।

इस लेख के जरिए इस ईद की कुछ जानकारियां प्राप्त करने की कोशिश करते हैं......

"बकरी ईद"- को कई नामों से जाना जाता है.... ईल-उल- अजहा, ईल-उल-जुहा, बकरीद, नमकीन ईद आदि।

पहली ईद के 70दिनों बाद बकरीद आती है। इसे "कुर्बानी पर्व" भी कहा जाता है। यह पर्व- त्याग, फ़र्ज़, बलि, भाईचारा, समर्पण, गरीबों का आहार (कम से कम एक दिन का), दान आदि संदेशों को लेकर आता हैं। जो सच्चे राह पर रह कर इन संदेशों का पालन करना सीखता है....।

गौर किया जाए तो, हम पाएंगे कि हर धर्म के त्यौहार के साथ कोई न कोई सीख जुड़ी है। उन सीखों (संदेश) को मानना या न मानना हम इंसानों पर निर्भर करता हैं। परंतु हर पर्व, मनुष्य जाति को उसके जीवन का संदेश दे जाती है। और उसे हर वर्ष पर्व के माध्यम से दोहराया भी जाता है। ताकि इंसान अपनी राह से न भटके....। परंतु ऐसा नहीं हो पाता...। साधारणतः, इंसान अपने-अपने धर्मों के अनुसार हर साल खुशियों के साथ त्यौहार मना लेता है, लेकिन उसकी गहराई में जाकर सीख पर अमल नहीं कर पाता...।यह समस्या अधिकतरों के साथ है।

खैर, बकरीद को मानने के पीछे एक हृदयविदारक घटना है। इस पर्व को मानने वाले समुदाय के मान्यतानुसार- एक बार खुदा (ईश्वर) ने हज़रत इब्राहीम की परिक्षा ली। उन्होने स्वप्न (ख्वाब) दिया कि, तुम अपनी सबसे प्रिय चीज अर्थात दुनिया में तुम्हें जो चीज सबसे प्यारी है उसकी कुर्बानी दो...। उसका भेंट चढ़ाओ.....।

खुदा के हुक्म को मानने को हजरत इब्राहीम तैयार हो गए। परंतु उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि दुनिया में उनकी सबसे प्यारी चीज क्या है....? काफी सोच-विचार कर उन्होंने पाया, वे अपने बेटे को बहुत चाहते है। दुनिया में उनकी सबसे प्यारी चीज उनका बेटा है। अतः उन्होंने निर्णय लिया वे बेटे को ही खुदा को भेंट चढ़ाएंगे। बेटे की कुर्बानी देंगे।

बलि चढ़ाते वक्त उनका हाथ न कांपने लगे, सो उन्होंने अपने आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे की बलि चढ़ा दी। बलि चढ़ाने के बाद उन्होंने अपनी आंखों की पट्टी को हटाया।

उन्होंने जो देखा उससे वे आश्चर्य हो गए। उनके खुशी का ठिकाना न रहा। उनका बेटा सही सलामत था। जीवित था और बलि की जगह एक कटा हुआ जानवर (भेड़) पड़ा था।

खुदा ने उनके सही राह के कुर्बानी का तोफा (इनाम) उनके बेटे का जीवनदान देकर दिया। उसी दिन से कुर्बानी के इस खुशी को "बकरी ईद" के रूप में मनाया जाता है।

मुस्लिम धर्म को मानने वाले त्यौहार के रूप में इसे हर साल हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। कुछ दिन पहले से ही मार्केटिंग करते हैं। कपड़ों के अलावा तरह-तरह की चीजें खरीदते हैं। ईद को घेरे दुनिया भर में बहुत बड़ा कारोबार होता है। जिसमें हर जाति-धर्म के लोगों की कमाई होती हैं।

ईद के दिन इस समुदाय के लोग सुबह नहा धोकर, साफ सुथरा हो, नये वस्त्र पहन मंजिदों में या घर पर नमाज पढ़ते हैं। इसके बाद वे खुदा से अर्थात अपने ईश्वर से, सबों की सलामती की दुआ (प्रार्थना) करते हैं। फिर एक-दूसरे के गले मिलते हैं। एक-दूसरे को गिफ्ट देते हैं। अगर कोई अपनों से या घर से किसी कारणवश दूर रहते हैं, मिल नहीं पाते तो शेरों-शायरी के माध्यम एक-दूसरे के करीब आते हैं। 

शेरों-शायरी वाला गिफ्ट, सही में दिल को रोमांचित करता है। अद्भुत तरह का गिफ्ट है। कभी नष्ट न होने वाला गिफ्ट है। जब भी याद करो मन खुशी से भर जाता है.....।

नमाज अदा करने के बाद, एक-दूसरे से मिलने के बाद शाम को कुर्बानी की तैयारी शुरू होती है। इस प्रथा में किसी एक जानवर की बलि दी जाती है। जो कि पर्व के "प्रतिक मात्र" मानी जाती है। 

इस त्यौहार के दौरान सिर्फ जानवरों (बकरी, भेड़) की कुर्बानी देना जरूरी माना नहीं जाता, बल्कि समय और धन की कुर्बानी भी कर सकते हैं। वो भी मान्य है। 

किसी के लिए समय निकाल कर उनकी मदद करना या किसी जरूरतमंद (आर्थिक रूप से) को पैसे से मदद करना भी इस त्यौहार के प्रतिक के रूप में माना जाता है।

मुस्लिम समुदाय में बकरी ईद इस तरह से मनाते हैं। अतः दुनिया के समस्त मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोगों को ईद मुबारक.......ईद की ढेरों बधाइयां......।

किसी भी तरह का त्याग करना, साधारणतः आम लोगों के लिए आसान व सहज नहीं होता......। फिर भी प्रेरणा ले सकते है.....।

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