रोजगार---------

वर्तमान समय में हर कोई अपने को रोजगार से जोड़े रखा हैं। चाहे खाली जेब वाले हो या भरी जेब वाले।
मैंने आठ साल के बच्चे से अस्सी साल के वृद्ध तक को इससे जुड़े हुए देखा है।

सच है कि रोजगार आत्मनिर्भरता को बढ़ाता है। लेकिन कोई मजबूर हैं तो कोई मशगूल। वैसे रोजगार से आत्मनिर्भरता बढ़ती तो जरुर है।

जो मजबूरी में रोजगार से जुड़े होते हैं उनकी मजबूरी में रोना आता हैं। किस्मत पर रोए या मानवता पर, समझ नहीं आता। क्योंकि जिन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिए वे अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं। उसे निभाते नहीं है।

जीवन में रोजगार करने का एक समय होता है। उस समय से पहले या बाद में श्रम के माध्यम से रोजगार किया जाए तो पीड़ा होती हैं। 

पचास साल की उम्र के बाद करीब-करीब सभी लोगों में शारीरिक कमजोरी आनी शुरू हो जाती हैं। काम करने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। फिर भी सत्तर साल की उम्र तक इस कमजोरी के साथ धीमी गति से काम चलाया जा सकता हैं। लेकिन उसके बाद शरीर व मन दोनों ही थक जाता हैं। ऐसे में आराम करना या हल्के-फूलके कार्य करना हितकारी होता हैं।

अपने जीवन के रोजगार के समय वाले दिनों में, व्यक्ति जिन-जिन को अपने रोजगार से सिंचाता हैं, उन्हें चाहिए उनके इस पड़ाव में आने से वे उनकी देखभाल करें। उनके प्रति अपने कर्तव्य का पालन करते हुए ध्यान दें कि उन्हें रोजगार के लिए मजबूर न होना पड़े।

परंतु हर घर-परिवार में या कुछ लोगों की जिंदगी में ऐसा नहीं हैं। यही वजह है कि बाल रोजगारी, बुजुर्ग रोजगारी, महिला रोजगारी हमारे समाज तथा देश में भरे पड़े हैं। जिसका कोई हल नहीं है।

बड़ी विचित्र बात है- हम विभिन्न तरह के सूविचारों से सहमत होते हैं। परंतु उसे वास्तविक रूप नहीं दे पाते......।

रोजगार श्रम से होता है और उसके लिए शारीरिक क्षमता का होना जरूरी है। बाल्यावस्था और वृद्धावस्था, दोनों में शारीरिक क्षमता कम होती हैं अतः ऐसे समय में श्रम के जरिए रोजगार करना बाकई में मानव की मानवता पर भारी पड़ता है। 

रोजगार के तीन वर्ग हमारे सामने आते हैं- 

1)श्रम द्वारा रोजगार- इस वर्ग के लोग शारीरिक शक्ति  द्वारा रोजगार करते हैं। जो श्रमिक के अंतर्गत आते हैं।

2) दिमाग़ द्वारा रोजगार- इस वर्ग के लोग अपने बुद्धिमत्ता के द्वारा रोजगार करते हैं। जो बुद्धिजीवी के अंतर्गत आते हैं।

3) दोनों के द्वारा रोजगार- इस वर्ग के लोग अपने शरीर और दिमाग दोनों को प्रयोग में लाकर कम समय में जल्द और ज्यादा रोजगार करते हैं या करना चाहते हैं। जो लुटेरे तथा ठगी के अंतर्गत आते हैं। वे छोटे और बड़े दोनों रुपों में हो सकते हैं।

यही कारण है समाज का एक वर्ग गरीब तथा एक वर्ग अमीर होता हैं।
तीसरा वर्ग भी समाज में काफी फलता-फूलता नज़र आता हैं। आजकल इस रोजगार के साथ अच्छे-अच्छे घर-परिवार के पढ़े-लिखे, विद्यार्थी, महिलाऐं भी शामिल हैं। जिन्हें जल्द से जल्द कमाना होता हैं।

दरअसल, अयासी और सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए समाज के कुछ विशेष मानसिकता वाले लोग इस वर्ग से अपने को जोड़ लेते हैं। वे ठगी कर, छिनताई कर, नये-नये पैंतरे अपना कर रोजगार करते हैं। परंतु यह रोजगार मान्य नहीं है। जानने के बावजूद इस ओर कदम रखते हैं.....।

रोजगार की बात चली ही है तो एक घटना याद आती है। जो सांझा करना चाहूंगी।

एक बार की बात है मैं बस के इंतजार में बस स्टॉप पर खड़ी थी। हम दो-चार लोग (मुसाफिर) ही वहां खड़े थे। सब एक-दूसरे से दूर-दूर खड़े थे। 

अचानक मेरे पास एक औरत आई और बोली- बहन, कुछ पैसे दे दो....।

वह मेरे से भीख मांग रही थी या सहायता, मुझे समझ नहीं आ रहा था। क्योंकि कहीं से भी वो वैसी नहीं लग रही थी....।

संकोच करते हुए मैंने कहा- तुम्हारी उम्र ज्यादा नहीं है। शरीर से भी ठीक लग रही हो फिर कुछ काम क्यों नहीं कर लेती? मांगना अच्छी बात थोडेई है.....।

इतना ही बोला था कि उसने मुझे जो जबाव दिया, उसे सुन मैं दंग रह गई।

उसने मुझे समझाते हुए बड़े आराम से कहा- बहन, यह भी तो एक तरह का काम है। इसमें भी मेहनत है। दिन भर इधर-उधर भटकना पड़ता हैं। तब जाकर कमाई होती है। यह बहुत मेहनत का काम है। 

यह बात और है, इस काम में बंधन नहीं है। अपनी इच्छा से जब मर्जी आओ-जाओ, काम करो कोई टोकने बोलने वाला नहीं। अपनी इच्छा से छुट्टी लो,आराम करो कोई कहने वाला नहीं। अगर मैं कहीं काम करुंगी तो इन सुखों से मुझे बंचित रहना पड़ेगा। मेरी आजादी खत्म हो जाएगी। इस लिए मैंने यह काम चूना है।

उसकी बातें सुनकर मैं आश्चर्य हुए जा रही थी। ध्यान से उसको सुन रही थी। रोजगार, पैसा, सहूलियत....सब चाहिए.....।

उसने फिर कहना शुरू किया- इस काम से मुझे रोज अच्छी कमाई हो जाती हैं। वो भी नगद। हाथों-हाथ। पैसों के लिए एक महीने रुकना नहीं पड़ता।

इतना कह वो कुछ पल रुकी, फिर चली गई। आगे निकल गई। और मैं वहीं खड़ी सोचती रही.....। उस वक्त उसे कहने को मेरे पास कोई शब्द नहीं थे। कारण मुझे उम्मीद नहीं थी कि इस तरह की बातें उससे सुनने को मिलेगी.....। 

कितना दिमाग रखती है....।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह किस रोजगार की श्रेणी में पड़ता है?

कुछ रोजगार अच्छे नहीं होते.... कुछ रोजगार ग़लत होते हैं। फिर भी कई लोग कैसी-कैसी सोच के साथ कमाई करते हैं। हालांकि स्तर की बात होती हैं। फिर भी....।

खैर, कुल मिलाकर देखा जाए तो करीब-करीब हर उम्र के, हर स्तर के लोग कमाई के प्रति जागरूक हैं। 

रोजगार, एक- जरुरत, नशा, मजबूरी, किस्मत, आत्मनिर्भरता का नाम हैं। उपाय और ढंग अलग-अलग हैं। लेकिन रोजगार के बिना जीवन जीना असंभव है..... । और यही सत्य है.....।

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