छप्पन भोग-------

छप्पन भोग की परम्परा जन्माष्टमी महोत्सव से जुड़ी है और जन्माष्टमी महोत्सव पर्व, श्री बाल-गोपाल के जन्मदिवस से जुड़ी है....।

जैसा कि हम सभी जानते हैं, जन्माष्टमी के दिन कान्हा के लिए छप्पन भोग का आयोजन किया जाता हैं। उन्हें छप्पन प्रकार के भोग लगाएं जाते हैं।

हर साल की तरह इस साल भी हिन्दू धर्म को मानने वाले तमाम लोग इस पावन पर्व को खुशी-खुशी मनाएंगे।

इस दिन घर-घर में नर-नारी व्रत रखते हैं। और अपने बाल-प्रभू के लिए तरह-तरह के पकवान बनाते हैं। जो पूरा व्रत नहीं रख पाते, वे फलाहारी व्रत रखते हैं। यानी कि गोपाल के पकवान के साथ ही फलहारी व्रत का आहार भी बनाया जाता हैं। कुल मिलाकर जन्माष्टमी वाले दिन हर घर में स्वादिष्ट पकवान बनते हैं।

रात के बारह बजे कान्हा के जन्म के बाद उन्हें भोग लगाकर, सब प्रसाद ग्रहण करते हैं।
         लेकिन इस दिन छप्पन भोग क्यों लगाएं जाते हैं...? आखिर, छप्पन भोग की परम्परा क्यों हैं....?

दरअसल, पौराणिक कथा अनुसार ऐसा माना जाता है कि एक समय ब्रज में बहुत बारिश हुई। चारों ओर पानी-पानी भर गया। सब पानी में डूबने लगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी चिटकी अंगुली से "गोबर्धन पर्वत' को उठाया और समस्त ब्रजबासी को उसके निचे शरण दे उन्हें विपत्ति से बचाया। सात दिनों तक लगातार बारिश होती रही और सात दिनों तक ही श्री कृष्ण ने बिना खाए-पिए, पर्वत को उठाए रखा। सात दिनों बाद ब्रज में सब सामान्य होने लगा।
उधर उनकी माता यशोदा जी ने अपने पुत्र कान्हा के लिए छप्पन तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए। सात दिनों से उनका लाड़ला भूखा जो था......।

असल में माता यशोदा रोज आठों पहर, अपने पुत्र के लिए अलग-अलग पकवान बनाकर खिलाती थीं। लेकिन गोर्वधन पर्वत उठाने के दौरान सात दिनों तक वे (गोपाल) भूखे रहें। माता उन्हें आठों पहर का पकवान बनाकर खिला नहीं पाई। इसलिए आठों पहर के हिसाब से सात दिनों के छप्पन तरह के पकवान (8पहर ×7दिन= 56भोग) बनाकर अपने लाडले को भोग लगाईं.......।

बताया जाता है कि तभी से छप्पन तरह के भोग लगाने की परम्परा शुरू हुई.....।

श्री बाल गोपाल को "दूध और माखन" अति प्रिय हैं इसलिए इनसे बनी चीजों का भोग लगाया ही जाता हैं। इसके अलावा छप्पन भोग में मिठाई, नमकीन, फल और मेवे (ड्राई-फ्रूट्स) शामिल हैं।

चरणामृत, पंजीरी और श्रीखंड..... छप्पन भोग में, इनका विशेष स्थान हैं।

भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में, अलग-अलग राज्यों में जन्माष्टमी वाले दिन अलग-अलग तरह के भोग लगते हैं।

यह बात कुछ हद तक भौगोलिक वातावरण के अनुसार वहां के पैदावार पर निर्भर करता हैं.....। 
कुछ राज्यों के पकवानों के बारे में जान लेते हैं...... सबसे पहले बात करते है कान्हा के स्थल की.....
मथुरा- यहां "पेड़े और पंजीरी" का विशेष महत्व है.....।

राजस्थान- विशेष रूप से यहां "आटे का हलवा" बनाया जाता है....।

महाराष्ट्र- यहां "गोपालकला' का भोग लगाया जाता है। जो पोहा, चीनी, दही, दूध, छाछ और नमक के मिश्रण से बनता हैं।

तामिलनाडु- इस दिन यहां "नैवेद्य" बनाने का महत्व माना जाता है। जिसमें मिठे काजू डाले जाते हैं। इसके अलावा कच्चे केले के "चिप्स" और पके "केले का हलवा' बनता हैं।
बंगाल- बंगाल में ताल (एक प्रकार का फल) के पकोड़े बनाने का रिवाज है। ताल के गुद्दे को निकालकर उसमें गेहूं का आटा, गुड़ या चीनी तथा नारियल का चूर्ण मिलाकर पकोड़े बनाएं जाते हैं। तथा दूध से तरह-तरह की मिठाईयां भी बनाईं जाती हैं।

इन राज्यों के अलावा पूरे देश भर में..... *नारियल, मूंगफली, अखरोट, मगन(खरबूज के बीज) आदि से- लड्डू, कतली,बर्फी.....
*खसखस, सिंघाड़े का आटा, आलू, शक्करकंद, लौकी, मखाने आदि से- खीर व हलवा..... बना कर भोग लगाया जाता हैं।

श्री बाल गोपाल के लिए ओर भी न जाने कितने ही स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। छप्पन भोग के पकवान के अलावा कई परिवारों में फलहारी व्रत का भोजन भी बनता हैं। जिसमें सिंघाड़े तथा कूटू का आटा मुख्य तौर पर हैं। इनसे परांठे, पुड़ी और पकोड़ी बनाएं जाते हैं। साबूदाने का पुलाव, सिंघाड़े की बर्फी, आलू का हलवा, अरबी और कच्चे केले की नमकीन व टिक्की, दही व खीरे का रायता, हर चटनी आदि शामिल हैं।
यानी देखा जाए तो, भक्तगण बालगोपाल के लिए छप्पन भोग के आयोजन के साथ ही अपने लिए भी अच्छे पकवानों की व्यवस्था करते हैं।
 खैर, छप्पन भोग की प्रस्तुति के साथ ही कान्हा जी के श्रृंगार और झांकियों की व्यवस्था की जाती हैं......।

उनके लिए झूला, खाट, बिस्तर तथा पोषाक में अंगरखा, धोती, मुकुट, मोर पंख, बांसुरी, कुंडल, चुड़ियां, बगलबंदी, कुंदन हार आदि की खरीदारी करते हैं। 

इसके अलावा कोरोना महामारी के कारण आजकल माक्स का चलन है इसलिए कान्हा के लिए माक्स भी ख़रीदा जाएगा। तीसरी लहर आने वाली है। जो बच्चों के लिए घातक है। हमने बाल गोपाल भी अभी जन्म लेंगे अतः तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए उनके (बच्चे कान्हा)लिए माक्स जरुरी है।

छप्पन भोग और श्रृंगार के साथ ही कई जगहों, मंदिरों, इस्कॉन मंदिरों पर अनेक कार्यक्रमों के साथ जन्माष्टमी पर्व मनाया जाएगा। हम सब मनाएंगे। कुल मिलाकर बड़े हर्षोल्लास के साथ यह पावन उत्सव मनाया जाएगा.....।

दोस्तों! इस पर्व को ध्यान में रखते हुए, दूसरे पहलू की बात करना चाहूंगी.... बात करुंगी भगवान श्रीकृष्ण अर्थात बाल गोपाल के पोशाक व झांकियों के सामानों की...। सिर्फ इनके स्थल मथुरा की... बाकी जगहों की रहने देते हैं।

हमें पता होना चाहिए, हमारे भगवान के पोशाक, श्रृंगार तथा झाकियों के लिए कई सारी चीज़ें, एक विशेष धर्म के अनेक लोग या यूं कह सकते हैं अधिकांश लोग अपने हाथों से बनाते हैं। जिन्हें हम अपनों से दूर करते हैं ।

आजकल हमारे देश में अधिकतर क्षेत्रों में विशेष धर्म के अनेक लोगों के साथ, हमारे अनेक लोग अन्याय कर रहे हैं। जबकि, उस विशेष धर्म के लोगों द्वारा बनाए गए सामानों से हम अपने पर्व को खुशी-खुशी मना रहे हैं।
   संसार के हर इंसान को भगवान ने बनाया है। अतः ईश्वर की अराधना (पर्व) के साथ उनकी बनाई सृष्टि को मान देना हमारा दायित्व और कर्तव्यों में पड़ता है.....। तभी असल में ईश्वर को मानना होगा.....।

यह मेरी सोच है....
जरा सोचिएगा......।

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