लक्ष्मण-रेखा-----------


   बैंगनी- सफेद रंग की फ्राक, तथा सैंडल पहने 5 साल की रेखा, अपने चाचू का हाथ पकड़े अस्पताल आई। 

वहां उसका 7 वर्षीय बड़ा भाई लक्ष्मण भर्ति था। 

बैड के पास पहुंचते ही वह डर गई। चाचू की कमीज को अपनी छोटी-छोटी मुट्ठियों में भिच लिया और अपना मुंह उनके दोनों पैरों के बीच छिपा लिया। 

बच्ची का अपने पर भरोसा देख, गदगद हो चाचू ने उसे अपनी गोद में उठाया और पूछा- क्या हुआ...ये देख, भैया....हम भैया से मिलने आए हैं...।

गोद में उठने के बावजूद उनका डर कम नहीं हुआ। उसने चाचू का गला, अपने छोटे-छोटे हाथों से कसकर पकड़ लिया। और कंधे पर अपना मुंह छुपा लिया.....।

इतने में उसका भैया धीरे-धीरे धीमी आवाज में बोला- रेखा! कैसी है बहन? आ इधर आ....।

बैड पर लेटे हुए भैया को वह न पहचान सकी। परन्तु आवाज पहचान लिया।
चाचू के कंधे पर अपना सिर रख कर ही उसने धीरे से मुंह मोड़ कर उस ओर देखा।

दरअसल, मासूम रेखा अपने भैया को पहचान नहीं पा रही थी। कारण, उसके पैर से कमर तक चादर से ढका हुआ था और शरीर के ऊपरी हिस्से के अधिकांश हिस्सों में बैडेंज व पट्टी बांधी थी। 

5 साल की छोटी सी बच्ची ने अपने भैया को इस हाल में पहले कभी नहीं देखा था इसलिए पहचान नहीं पाई और डर गई। 

चाचू के बहुत समझाने पर भी वह गोद से उतरी नहीं। तब वे, उसे अपने गोद में लिए ही, बैड के पास रखे स्टूल पर बैठ गए। और धीरे से लक्ष्मण का सिर सहलाते हुऐ पूछा- ज्यादा तकलीफ़ तो नहीं हो रही? कुछ दिन और रहना है फिर डॉक्टर साहब छूट्टी दे देंगे। तब घर चलेंगे।

मंद-मंद मुस्कूराते हुए लक्ष्मण बोला- हां चाचू, ठीक है। मैं पहले से अच्छा महसूस कर रहा हूं। यहां, अस्पताल के सब मुझसे मिलने आते हैं और प्यार भी करते हैं। 

इन सबों के बीच रह-रह कर, टूकुर-टूकुर, तिरछी नजरों से अपने भैया को देखती और फिर मुंह फेर लेती....।

इतने में 23नं. बैड से मध्य बर्षीय एक मरीज धीरे-धीरे चलकर लक्ष्मण की बैड तक आये और उसके चाचू से पूछने लगे- आप इस बच्चे के चाचा जी है?

जी, हां.... ।

आपके भतिजे की बहादुरी की चर्चा इस बॉड में खुब हो रही हैं। बड़ा बहादुर बच्चा है। लेकिन यह सब कैसे हुआ..?

लक्ष्मण के चाचू कुछ कहने को हुए ही थे कि इतने में उन्होंने फिर पूछा- एक बात और, बच्चा करीब दस-बारह दिनों से यहां भर्ति है, पर इसके मां और पिता नहीं दिखे.....सिर्फ आपको ही देखा है और आज इस बच्ची को.....। कौतूहलवश उन्होंने जानना चाहा।

जी हां,.. रेखा के चाचू उसे गोद में लिए उनके पास आये और दो-चार कदम आगे चलकर अपने भतीजे को परेशान न कर बोलने लगे- जी, ये दोनों बच्चे मेरे बड़े भाई साहब के हैं। 

करीब तीन साल पहले वे मोटरसाइकिल पर परिवार को ले बजार से घर आ रहें थे। बीच रास्ते में किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी थी।
दोनों बच्चे बच गए पर भैया-भाभी नहीं बच पाए।
ओ, हो... कितनी दर्दनाक घटना है। उन्होंने कहा..।

जी, हम पहले पांच जन एक साथ रहते थे। अब तीन जन एक साथ रहते हैं।

कुछ दिन पहले की बात है, मैं अपनी दुकान पर गया हुआ था। एक पड़ोसी ने फोन कर कहा- जल्दी अस्पताल चले आओ। लक्ष्मण को कुत्ते ने बुरी तरह नौच लिया है।

यह सुन मैंने पड़ोसन एक ताई को फोन कर, रेखा को संभालने को कहा और अस्पताल चला गया।

अस्पताल के मरीज ने पूछा- हुआ क्या था....?

दरअसल, ये (रेखा को दिखाते हुए) बाहर खेल रही थी। अचानक तीन-चार कुत्तें आपस में लड़ते और भौंकते हुए दूर से आ रहे थे। उनको देख यह डर गई और भैया.... भैया...बचाओ.....बचाओ....चिल्लाती हुई घर की तरफ दौड़ी। 

सारे कुत्ते दूसरी ओर आगे बढ़ गये लेकिन एक कुत्ता इसकी ओर भौंकते हुए आने लगा। बहन की आवाज सुन, इतने में लक्ष्मण वहां पहुंच गया था। 

उसकी ओर आते हुए कुत्ते को देख, लक्ष्मण अपनी बहन को बचाने के चक्कर में आगे बढ़कर उस कुत्ते को ही पकड़ लिया। अपनी बहन तक उसे (कुत्ते को)पहुंचने नहीं दिया।
उसके पकड़ते ही कुत्ते ने अपने दांतों और पंजों के नाखूनों से लक्ष्मण को बुरी तरह से घायल कर दिया और भाग गया। दोनों के रोने और चिखने की आवाज सुन पड़ोसी दौड़ आए और इसे अस्पताल लाकर मुझे फोन कर बुलाया।

उस व्यक्ति ने कहा- तभी हर कोई इसके बहादुरी की बात कर रहे हैं। कुत्ते से लड़ गया पर अपनी बहन को बचा लिया। उसे कुछ होने नहीं दिया। ये खुद ही कितना छोटा है पर.....।

इतने में वॉड के गार्ड ने सभी मरीजों के घर वालों को बाहर जाने को कहा....विजीट समय खत्म हो चुका है आप सब अपने-अपने मरीजों को छोड़ बाहर जाये। अभी थोड़ी देर में डॉक्टर साहब राउंड में आएंगे। चलिए... चलिए....।

उस व्यक्ति से कहकर, लक्ष्मण को पुचकार सबों के साथ रेखा को गोद में लिए उसके चाचू भी बाहर निकल आये। 

करीब सात दिन बाद लक्ष्मण को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। वह ठीक हो, सही सलामत अपने घर आ गया। 

उसकी सारी पाट्टियां खुल चुकी थी। 
अब रेखा अपने भैया लक्ष्मण को पहचान गई और उसके पास जाकर बातें भी करने लगी। 

अब दोनों भाई- बहन चाचू के साथ खुशी-खशी रहने लगे। 

दोनों बच्चों के पिछे चाचू ने शादी नहीं की। बच्चों की जिम्मेदारी तो थी ही पर अपने भैया और भाभी की अकाल मृत्यु ने उन्हें अंदर से हिला कर रख दिया था। उन्हें लगता था सांसारिक रिश्ते बकवास है। यह बात उनके दिमाग में स्टोर कर गया था।

चाचू की जिंदगी, अपना कारोबार और दोनों बच्चों के इर्द-गिर्द घूमती रही। बच्चे अपने चाचू को बेहद प्यार करते थे और वे इन पर जान छिड़कते थे। बच्चों को अपने चाचू से,  माता- पिता दोनों का प्यार मिलता था।

इस तरह समय बिताता गया और तीनों की जिंदगी गुजारने लगी। शायद वक्त घाव भर देता है। इस तरह कई साल बीत गए।

एक दिन अपनी दुकान के सामने धूप में कुर्सी पर बैठे-बैठे लक्ष्मण के चाचू, घंटों जीवन समुद्र की गहराई में डूबे थे।

बगल वाली दूकान के "खान साहब" धीरे-धीरे चलकर उनके पास आये और बोले- भैया! कहां खोए हो...? मैं घंटों से आप को देख हूं। क्या बात है...? किस सोच में डूबे हो....? 

खाना साहब की बातों ने उन्हें चौंकाया। स्वाभाविक हो वे बोले- खान साहब, जिंदगी के बारे में सोच रहा हूं.... लोग भविष्य के बारे में सोचते हैं और मैं अतित की सोच रहा हूं। 

 एक महीने बाद मेरा भतीजा लक्ष्मण, जेल से रिहा होगा.....। पूरे दस साल बाद.....। मैं खुशी मनाऊ या दुःख....। समझ से परे है...।
      हमारा हंसता-खेलता परिवार था। न जाने क्या हुआ, अचानक कच्ची उम्र में मेरे भैया-भाभी दोनों एक साथ, एक ही दिन हमें छोड़ अचानक चले गए... भगवान को प्यारे हो गए....।

दोनों बच्चों का सहारा था, जीने का। दोनों मेरी दो आंखें थे। पर फिर न जाने क्या हुआ..... मेरी भतीजी रेखा को 17 साल की उम्र में दुनिया छोड़ना पड़ा। और पिछले दस सालों से भतीजा जेल में है।

खाना साहब, न जाने ज़िन्दगी किस चीज का बदला ले रही है....।

दोनों बच्चे बड़े हो रहे थे।

भतीजी जवान हो रही थी पर उसने कभी अपनी सीमा (लक्ष्मणरेखा) पार नहीं की थी। हमेशा मर्यादा में रहती। उसमें जरा भी उल्हड़पन नहीं था।

बड़ी होने पर, पढ़ाई के साथ-साथ घर और रसोई को कितने अच्छे से संभाल रखा था उसने, जैसे एक सुगृहणी संभालें रखतीं है। 

पर एक दिन दो मनचलों ने उसकी ताजा जिंदगी छिन ली। 

खान साहब, मेरी भतीजी अपनी सहेली के वहां से पढ़ाई के कुछ नोट्स ले, घर आ रही थी। 
बात दिवाली के बाद की थी। इन दिनों दिन जल्दी छिप जाता है। शाम छः -साढे छः बजे की बात थी।
      
 मैंने अपने भतीजे से कहा था- बहन आ रही होगी। दिन छिप गया है। आगे जाकर उसे अपने साथ ले आ....।

अरे, चाचू आप भी न....। असंतुष्ट हुआ पर अपनेपन से कह, रिमोट से टीवी बंद कर बहन को लाने निकला।

उधर रेखा जब घर को आ रही थी तब रास्ता जरा सूनसान था। उसनेे देखा सामने से दो मनचले शराब पिये लड़खड़ाते हुए आ रहे हैं। 

उन्हें देख भतीजी डर गई और बगल में बन रहे पांच मंजिला इमारत के अंदर जाकर छिप गई। वे, उसे देख शोर मचाते हुए अंदर घुसे। कहां गई.... कहां गई रानी....।

रेखा, बचाओ- बचाओ चिल्लाती और दौड़ती हुई सिढ़ियों से ऊपर की ओर जाने लगी। वे दोनों भी उसके पीछे-पिछे जाने लगे......।

लक्ष्मण वहीं तक पहुंचा था कि उसे आवाज आई, बचाओ-बचाओ.....। वह रुका। सोचने लगा कोई लड़की मुसिबत में.... बचाओ-बचाओ, बचाओ-बचाओ...। इस बार वह अपनी बहन की आवाज पहचान गया और जोर से चिल्लाया- रेखा.... रेखा....।

बहन ने भी अपने भैया की आवाज सुन ली थी।
     इतनी देर रेखा चिल्ला रही थी। पर रोई नहीं थी। लेकिन भैया की उपस्थिति के अहसास ने उसे रुला दिया। 
     
अपनों का सहारा, कभी इंसान को बल देता हैं और कभी-कभी कमजोर बना देता है। क्योंकि इंसान को निर्भर बोध होने लगता है।
रेखा दूसरी श्रेणी में पड़ी। अतः इस बार वो कांपती आवाज़ में रोती हुई चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगी- भैया, मुझे बचा लो...मुझे बचा लो भैया। ये लोग मुझे पकड़ लेंगे... भैया जल्दी आओ... मुझे बचा लो...।

लक्ष्मण पागलों की तरह चिखता हुआ इमारत पर चढ़ने लगा.... कौन है... कौन है.... रुक जाओ... रुक जाओ....। रेखा मैं आ रहा हूं.....। 

लेकिन जब तक भाई, बहन को बचाने आता, तब तक देर हो चुकी थी। उसकी बहन को और ऊपर जाने का रास्ता नहीं मिला। वह आखिरी मंजिल तक पहुंच चुकी थी और दोनों शराबी उसको पकड़ने उसकी ओर झपटे। इतने में रेखा अपनी लाज बचाने के लिए ऊपर से कूद पड़ी। 

एक शराबी उसको पकड़ने के इतने नजदीक आ गया था कि वो भी उसके साथ पांचवीं मंजिल से निचे गिर गया।
      
रेखा........ लक्ष्मण अपनी बहन को गिरते हुए देख जोर से चिल्लाया।

धड़ाम..... धड़ाम....की दो आवाजें आई।
पहले रेखा गिरी फिर शराबी.......।

लक्ष्मण के मुख से रेखा नाम की चिख सुन दूसरा शराबी भागकर निचे की ओर जाने लगा। 

अपनी बहन को निचे गिरता देख, आनन-फानन में लक्ष्मण निचे की ओर दौड़ा। 
एक मंजिल उतरने पर अचानक उसकी नज़र दूसरे शराबी पर पड़ी। उसे देखते ही लक्ष्मण अपना आपा खो बैठा। वहां पड़े पत्थर, ईंट, लकड़ी, रॉड जो भी दिखा उसी से शराबी को मार-मार कर खत्म कर दिया। लक्ष्मण ने उसकी जान ले ली।

मेरे भतीजे को पुलिस पकड़ कर ले गई। हत्या के आरोप में उसे दस साल की सजा हो गई। 

मेरी भतीजी बड़ी हो रही थी पर उसने लक्ष्मणरेखा पार करने की कोशिश नहीं की थी। वह सीमा में ही रहती थी। फिर भी....देख लिजिए.....उसके साथ क्या हुआ......।

थोड़ा रुक कर वे फिर बोले- बचपन में मेरे भतीजे ने एक जानवर से अपनी बहन को बचाया था। पर जब भतीजी बड़ी हुई, तब  इंसान से वह अपनी बहन को बचा नहीं पाया।

जानवर से लड़ गया, तब इंसानों ने उसकी तारीफ की, बहदूर बोला, उसका इलाज कर इंसान ने ही उसे स्वस्थ्य किया। परन्तु, जब वह अपनी बहन के लिए इंसान से लड़ा तब इंसान ने उसे ग़लत साबित कर सज़ा दे दी.....।

ख़ान साहब! बैठे-बैठे हिसाब लगा रहा हूं पर हिसाब मिल नहीं रहा....।
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