लेकिन हममें से कुछ ऐसे भी लोग हैं जो ऐसा नहीं मानते। वे बच्चों और ईश्वर के बीच अपनी घटिया सोच (धर्म-जाति) का हाईफेन (-) लगा रखते हैं....।
ईश्वर के परम भक्त "रामकृष्ण परमहंस" जी
के अनुसार सभी जाति व धर्म सच्चे और अच्छे हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि- अलग-अलग राह तय कर सब ईश्वर के चरणों तक पहूंचते हैं।
आज के आधुनिक तथा वैज्ञानिक युग में, जब मनुष्य संसार को अपनी मुट्ठी में भर लिया है, एक ग्रह से दूसरे ग्रह का ठिकाना ढूंढ निकाला है तब अफ़सोस है कि मानव समाज के ही कुछ लोग आज भी तुच्छ सोच रखते हैं। और बच्चों को फरिता समझने में अस्वीकारते हैं। उनका नजरिया ही अलग है।
दरअसल भौतिक सुख! शिक्षा, संस्कार के बहुत ऊपर आ गया है। सुख इन सबों को पीछे छोड़ दिया है।
इस लेख के जरिए देश के दो अलग-अलग क्षेत्रों की घटनाओं (फ़रिश्तों की) के बारे में जानकारी लेते हैं। मानव समाज के दो माहौल के लोगों के चिंतन का उदाहरण शेयर करना चाहूंगी...।
दोस्तों! पढ़ने के उपरांत आप लोगों को बड़ा विचित्र लगेगा परंतु घटनाएं सच हैं.....
एक घटना कर्नाटक की तो दूसरी बंगाल की.... दोनों घटनाएं आपके भौंहों में सलवटें ला देगी।
खैर, पहले कर्नाटक की बात करते है। यहां की घटना जाति से संबंधित हैं।
ऊंची जाति और छोटी जाति के बीच एक दो बर्षिय मासूम (फरिशता) हाईफिन (-) बनकर सभ्य समाज के सामने आया।
दो साल के बच्चे को मालूम ही नहीं जाति-धर्म, ऊंच-नीच, पवित्र-अपवित्र, शुद्ध-अशुद्ध, मंदिर-मज्जिद का अर्थ..... क्या होता हैं यह सब.....?
उसे मालूम ही नहीं कि उसके कदम किसी जगह को अशुद्ध करने की क्षमता रखता है।
कर्नाटक के एक जिले का एक दलित परिवार अपने दो साल के बेटे के जन्मदिन पर भगवान को अपना पालनहार समझकर हनुमान जी के मंदिर में बेटे के लिए सपरिवार आर्शीवाद लेने पहुंचा।
ईश्वर ने हमें बनाया है अतः वे हम सबों के है। जोड़/ घटाव/ गुणा/ भाग वाला गणित हमने बनाया है। ऊपर वाले ने नहीं।
लेकिन इस क्षेत्र में शाय़द यह गणित चलता है। यह बात छोटी जाति के लोगों को मालूम हैं। इसलिए वह दलित परिवार हनुमान मंदिर के बाहर खड़े हो अपने दो साल के बेटे के लिए भगवान से अर्चना कर रहा था। इसी बीच उनका नन्हा, जो इन बातों से बेखबर था अपने नन्हें-नन्हें पैरों चल मंदिर में प्रवेश कर गया। यह देख मंदिर का पुजारी जो ऊंची जाति के थे, नाराज हो गए और हंगामा खड़ा कर दिया। मानों भूचाल आ गया हो...इसमें ऊंची जाति के कई लोगों ने पंडित का साथ दिया।
एक सभा बुलाई गई। जिसमें तय किया गया दलित परिवार अर्थात छोटी जाति के बच्चे (फरिश्ता) के मंदिर प्रवेश से मंदिर अशुद्ध हो गया। उसे शुद्ध करना है। जो 25 हजार रुपए से किया जाएगा और यह पैसा जुर्माना के तौर पर उस दलित परिवार को देना होगा।
दलित परिवार से 25 हजार रुपए वसूले जाएंगे।
कितनी विचित्र बात है... छोटी जाति अशुद्ध है लेकिन उसका पैसा अशुद्ध नहीं है.....।
पर, अभी भी दुनिया और समाज में अच्छे लोग रहते हैं। ऊंची जाति के ही कुछ दूसरे लोगों ने इस निर्णय को गलत ठहराया और इसका विरोध किया।
मामला प्रसाशन तक पहुंचा। इसमें पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।
छोटी जाति (दलित परिवार) के लोगों को ऊंची जाति का इतना खौफ कि अपने पर हो रहें जुल्म का मामला थाने में दर्ज नहीं करवा सकते।
कारण शायद वे हीनता के शिकार हैं..... तभी जुल्मों को चुपचाप सहते हैं।
जबकि प्रशासन और ईश्वर, दोनों पर उनका भी समान अधिकार हैं।
भला हो उन ऊंची जाति के लोगों का जिन्होंने ऊंची जाति के साथ ऊंची सोच रखी और अन्याय का विरोध किया.....।
अब बंगाल की घटना का जिक्र करते है।
यहां की घटना पर्व से संबंधित है।
बंगाल का सबसे बड़ा त्यौहार "दूर्गा पूजा"माना जाता है। यह त्यौहार पांच दिनों तक मनाया जाता हैं। हर एक दिन की अलग-अलग मान्यता है। तीसरे दिन अर्थात अष्टमी वाले दिन कुमारी कन्या पुजन का प्रचलन है। आठ साल तक की आठ कन्याओं को देवी के रूप में पूजा जाता हैं।
यह प्रचलन वहां सुसम्पूर्ण किया जाता है, जहां-जहां दूर्गा देवी की पूजा होती हैं। यानी पंडालों, संस्थाओं, घरों आदि जगहों पर....।
बात है, पश्चिम बंगाल राज्य के एक जिले में "रामकृष्ण सेवा आश्रम" की...इस आश्रम में हर साल दूर्गा पूजा होती है और अष्टमी वाले दिन कुमारी कन्याओं का पुजन होता है...।
कहा जाता है, मान्यता अनुसार कन्या पुजन सिर्फ ब्राह्मण जाति की कुमारी कन्याओं का ही करना होता हैं। गैर ब्राह्मण परिवार की कन्याओं का पूजन बर्जीत है।
शायद यह नियम ब्राह्मणों द्वारा चर्चित है....।
लेकिन इस जिले के आश्रम से इस साल यह बात सामने आई है कि यहां एक मुस्लिम परिवार की आठ साल की बच्ची (कन्या) का कुमारी पूजन किया गया। जाति की बात छोड़ो गैर धर्म की बच्ची पूजी गई। जो चर्चा का विषय बना गया।
आश्रम के स्वामी जी (महाराज) से जब पूछा गया तो उनका जवाब था- हम रामकृष्ण परमहंस जी के अनुयाई हैं। उन्हें और उनकी अमृत वाणी (उपदेश) को मानते हैं।
रामाकृष्ण के अनुसार सभी जाति व धर्म सच्चे और अच्छे होते हैं। अतः हम सिर्फ कुमारी कन्या पुजन करते हैं।
उनका आगे कहना है, चंडीपाठ में ही है कि सभी कुमारी कन्याओं को देवी के रूप में देखा जाता हैं। कुमारी कन्याओं में किसी तरह का भेद-भाव नहीं किया जाता। और इसीलिए इस आश्रम में सिर्फ ब्राह्मण कुमारी कन्याओं को ही नहीं पूजा जाता, गैर ब्राह्मण कन्याओं की पूजा भी की जाती हैं।
पश्चिम बंगाल के इस जिले के एक मुस्लिम सब्जी व्यापारी की बड़ी कन्या को पिछले तीन-चार सालों से पूजा गया। अब उसकी छोटी बहन (आठ साल की) को इस साल (2021) अष्टमी वाले दिन पूजा गया।
रामकृष्ण सेवा आश्रम में हर वर्ष पूजा को मान्यता दी जाती है.... धर्म या जाति को नहीं।
दोस्तों, आज भी हमारे देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों की अलग-अलग सोच है।
ओछी या तुच्छ सोच कभी-कभी मानवता को झकझोर कर रख देती है। इस तरह की सोच का प्रभाव मासूमों (फरितों) पर भी पड़ता हैं। जबकि, हम पहले से ज्यादा आधुनिक तथा पढ़ें-लिखे हैं.....।
___________