होली और प्राकृतिक रंग ------

दोस्तों! बिना रंग के "होली" मनाना असंभव है....। चाहे इसका इस्तेमाल चरणों में छूआकर करें या गालों पर लगाकर...परंतु बिना रंग के होली बेरंग है। इसीलिए तो इसे "Colour Festival" कहा जाता है।

       छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष सभी तरह-तरह के रंगों का प्रयोग कर इस त्योहार को मनाते हैं और आनंद उठाते हैं। लेकिन हमने कभी गौर किया है कि होली के अपने निजी रंग भी होते हैं ....? 
जी हां, होली के स्वयं निजी दो रंग होते हैं। वे हैं -सुप्रभाव और कुप्रभाव....। ठीक से मनन किया जाए तो हम पाएंगे इन दोनों के भी अनेक प्रकार होते हैं। बस ठीक से देखने और महसूस करने की बात है।
खैर, आज इस लेख के जरिए होली के कुप्रभाव के विशेष पार्ट (हिस्से) की बात करेंगे। उस कुप्रभाव के असर से हमें अपने को और अपनों को बचाना है। 
    पर कैसे ....? 
           पिछले दो सालों में हम सभी कोरोना जैसी महामारी से बहुत नुकसान झेल चुके हैं। इसलिए अब हमें अपने कदम फूंक -फूंक कर रखने की जरूरत है। ताकि शारीरिक तथा आर्थिक नुकसान उठाना न पड़े। बिना क्षति के त्योहार मनाया जा सके....। इसलिए घरेलू प्राकृतिक रंगों से होली खेली जाए।

         आजकल बाजार में तरह-तरह के रंग पाए जाते हैं। जो कैमिकल युक्त और प्राकृतिक भी होते हैं। समय के बदलाव के साथ लोग सचेत हो गए हैं और प्राकृतिक रंगों की ओर उनका रुझान बढ़ रहा है। 
         प्राकृतिक रंगों को हम घरों में भी बना सकते हैं। इस तरह के रंगों को बनाकर त्योहार मनाया जा सकता है और जरुरत पड़ी तो इससे कमाइ भी की जा सकती हैं। जो सिजनल बिजनेस के रूप में किया जा सकता है। 
         इसके लिए पहले से प्लानिंग और कुछ सामान की जरूरत हैं। दो-चार दोस्त या दो-चार महिलाएं मिलकर यह काम कर सकते हैं।
         साधारणतः होली में खेले जाने वाले रंग दो प्रकार के होते है। तरल और पावडर के रुप में.....।
यानी पानी वाला रंग और गुलाल.....।
         
    जान लेते हैं, तरल रंग और गुलाल बनाने की विधि- 
           1) तरल रंग - इसे बनाने के लिए अलता, फूडक्लर, कॉफी, चाय पत्ती, कत्था, मेहंदी पत्ते, कच्ची हल्दी, शलगम, उजाला ( नील) ऐसेंस, पानी तथा बोतलें आदि की आवश्यकता पड़ती हैं।
            इनमें से कॉफी, चाय पत्ती, मेंहदी पत्ते, कच्ची हल्दी और शलगम को पानी में थोड़ी देर उबाल कर ठंडा होने के लिए छोड़ दें।
            ठंडा होने पर अच्छे से मसल लें और उसमें थोड़ा एसेंस (पसंदीदा) मिलाकर छान लें। फिर बोतलों में भर लें।
 कत्था और फूडक्लरस और उजाला को अलग-अलग ठंडे पानी में मिलाएं और फिर उसमें ऐसेंस मिलाकर बोतलों में अलग-अलग भर लें। इस तरह प्राकृतिक घरेलू तरल रंग (लिक्विड रंग) तैयार हो जाएगा।
           
         2) पावडर रंग (गुलाल)- इसके लिए अलग-अलग किस्मों के फूलों की पुंखडियां, गाजर, शलगम, कच्ची हल्दी, मेहंदी पावडर, कत्था, उजाला (नील) फूडक्लर, अरारुट, ऐसेंस, पानी और पोली बैग की आवश्यकता पड़ती है।
            उपयुक्त उपकरणों में फूलों की पंखुड़ियां, कच्ची हल्दी, शलगम, गाजर आदि को कम पानी में अलग अलग उबाल लेंगे। ठंडा होने पर अच्छी तरह हाथों से मसलकर अरारुड और ऐसेंस मिला कर धूप में कागज पर फैलाकर सुखा लेगे। थोड़ा सुखने पर फिर दोबारा मसल लेंगे और फिर अच्छे से सुखाएगे। बाकी बचे उपकरणों को अरारुड में अलग अलग मिलाकर ऐसेंस डाल देंगे। फिर उन्हें भी कागज में फैलाकर धूप में सुखा लेगे। इस तरह कई रंगों के गुलाल बना पोली बैग में पैक कर लेंगे।

    इस प्रकार प्राकृतिक रंगों (तरल तथा सुखा) को घरों में बनाकर होली में प्रयोग किया जा सकता हैं। जो हमारी त्वचा के लिए हानिकर नहीं है।
    कैमिकल और अभ्रक मिश्र रंगों से होली न खेलना उचित है। ऐसे रंग आंखों और त्वचा के लिए अत्यंत हानिकारक है।
    खैर, साथियों आप किसी भी रंग से होली खेलें वो आपका अपना फैसला है लेकिन अपना और अपनों का ध्यान रखते हुए होली का त्योहार मनाया उचित है।
         होली के अपने निजी दो रंगों के दूसरे रंग (कुप्रभाव) को बेरंग कर दे। एक ही रंग रहने दें -
                       राधा-कृष्ण जी का प्रेम रंग ..
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