थिएटर डे--------

                 
                  हर वर्ष दुनिया भर में 27 मार्च को 
"थिएटर डे"(रंगमंच दिवस) आयोजित किया जाता है।
      अंतराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट) ने इस दिवस की नींव 1961 में रखी, जो अब तक समस्त विश्व के विभिन्न रंगमंच केन्द्रों में पालन किया जाता है।
      दुनिया के बड़े-बड़े ग्रुप तथा छोटी से छोटी नाटकीय संस्थाऐं इस दिवस को अपने-अपने तरीके से मनाती हैं।
      हमारे समक्ष सीधे तौर पर जब व्यक्ति (कलाकार) अकेले या समुह में फिजिकली, मंच  (स्टेज) से अपनी कला के जरिए कुछ महत्वपूर्ण संदेश देता हैं, तो उसे रंगमंच कहा जाता है। इसे आप नाटक, अभिनय,कला नोटंकी आदि कुछ भी कह सकते हैं।
           "अंतराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान" से पता चलता है कि 1961 के 27 मार्च से "अंतराष्ट्रीय रंगमंच दिवस" मनाया जाने लगा है। जो की भारत में 2002 से पालन किया जाने लगा। 
           परंतु रंगमंच की कलाकारी इससे बहुत पुरानी है। अगर आप इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पता चलेगा,यह प्रथा पौराणिक युग से चली आ रही है। पुराणों में इसका उल्लेख है।
           कोई भी दिवस को मनाने का अर्थ उसे याद रखना या याद दिलाना है। जैसे हम अपने घरों में परिवार के सदस्यों के जन्म दिवस मनाते हैं।
           रंगमंच दिवस को मनाने का कारण भी है। इस क्षेत्र से जुड़े लोग और कलाकार इसका पालन करते हैं।
           दरअसल, देखा जाए तो "रंगमंच" एक व्यवसाय है। नाटकीय व्यवसाय ..... इसके माध्यम कलाकारों को जीविका और साधारण लोगों को मनोरंजन मिलता हैं। जब मोबाइल, टेलीविजन, सिनेमा आदि साधन उपलब्ध नहीं थे तब साधारण से साधारण लोगों के मनोरंजन का जरिया एक मात्र नाटक का मंच अर्थात "थिएटर" था।
           ऊंचे मंच....उन पर लगे बड़े बड़े रंगीन पर्दे.... पर्दों के पिछे सजावटी मंच.... ध्वनि.... संगीत....बाजे.... और विभिन्न पोशाकें पहने कलाकारों की बुलंद आवाजें.....हर दर्शकों में जोश और उमंग भर जाता था।
           समाज और राष्ट्र की कड़वी सच्चाई, वहां हो रही छोटी-बड़ी घटनाऐं रंगमंच में परोसी जाती थी। नज़रों के सामने कुछ लोगों को मंच रुपी दर्पण में अपना चेहरा दिखता था तो कुछ लोग भावुक हो जाते थे। विश्व का हर मानव समाज रंगमंच पर दिखाई देता था। कभी हंसते हुए, कभी रोते हुए ....।
           थिएटर का प्रभाव लोगों में काफी पड़ता था। जैसे सिनेमा का प्रभाव उसे देखने वालों पर पड़ता हैं। हम भी अपने को उन्हीं की तरह ढालने की कोशिश किया करते है। कुछ इस तरह का इतिहास रहा रंगमंच का....।
           विश्व के अलग-अलग भाषाओं में रंगमंच ने अपनी पकड़ बना रखी थी। समाज को अच्छा संदेश देती, लोगों को मनोरंजन देती। बावजूद इसके रंगमंच समाज में निचले पायदान पर था। एक मात्र मनोरंजन का जरिया होने के बावजूद.... किंतु-परंतु वाली बात थी।
           अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट) की ओर से इस दिवस को मनाने का मूल कारण- रंगमंच को ऊपरी पायदान पर लाना......इसके अलावा दुनिया के अलग अलग समाज और लोगों को रंगमंच की संस्कृति की जानकारी देना, प्रत्येक मानव समाज को महत्वपूर्ण संदेश देना, संदेशों को महसूस करना, रंगमंच के प्रति ज्यादा से ज्यादा रुचि लेना, इस व्यवसाय को बढ़ावा देना, इनसे जुड़े लोगों और कलाकारों की भावनाओं की कदर करना, उन्हें सम्मान करना, उनके ओहदे को बढ़ाना आदि था।
           
           
                 आज भले ही दुनिया, रंगमंच से दूर हटकर मनोरंजन का दूसरा जरिया- इंटरनेट ढूंढ चूंकी है, भले ही रंगमंच का महत्व पहले से कम हो गया हो लेकिन "थिएटर डे" हमारे पुराने मनोरंजन के जरिए को कभी भूलने नहीं देगा।
           कहीं न कहीं रंगमंच के कलाकार आज भी हमारे नये मनोरंजन के जरिए से जुड़े हैं।
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